सोमवार को बेंगलुरु स्थित कर्नाटक हाईकोर्ट में खचाखच भरे कोर्टरूम में यह बहस हुई कि क्या एक गैर-हिंदू को मैसूर के ऐतिहासिक दशहरा उत्सव का मुख्य अतिथि बनाया जा सकता है। विवाद सरकार के इस निर्णय को लेकर था कि बुकर पुरस्कार विजेता लेखिका बनू मुश्ताक को 22 सितंबर 2025 को चामुंडेश्वरी मंदिर में दीप प्रज्वलन करने और कार्यक्रम का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया गया है।
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पृष्ठभूमि
यह याचिकाएँ भाजपा सांसद प्रताप सिंहा, कार्यकर्ता एच.एस. गौरव और अन्य द्वारा दायर की गई थीं। उनका कहना था कि मुश्ताक- जो मुस्लिम हैं और मुखर लेखिका हैं- को आमंत्रित करना हिंदू आस्थाओं का अपमान है। उनका तर्क था कि मुख्य अतिथि की भूमिका में ''दीप प्रज्वलन'' और देवी को पुष्प अर्पण जैसे वैदिक अनुष्ठानों में भाग लेना शामिल है, जो कि केवल हिंदू ही अगम परंपरा के अनुसार कर सकते हैं।
याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने यह भी कहा कि मुश्ताक के पूर्व के बयान ''अहिंदू और अकन्नड़'' रहे हैं, जिससे उनकी मौजूदगी और भी अस्वीकार्य है। उन्होंने धार्मिक अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया और जोर दिया कि यह आमंत्रण संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन है, जो धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं।
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अदालत की टिप्पणियाँ
मुख्य न्यायाधीश विभु बखरू, जिन्होंने आदेश सुनाया, याचिकाकर्ताओं की दलीलों से असहमत दिखे। अदालत ने कहा,
“याचिकाकर्ताओं का अपने धर्म का पालन और प्रचार करने का अधिकार किसी भी तरह से उत्तरदायी संख्या 4 को आमंत्रण देने से प्रभावत नहीं होता।”
न्यायमूर्ति सी.एम. जोशी ने सहमति जताई और जोड़ा कि विभिन्न आस्थाओं के लोगों का राज्य समारोहों में शामिल होना किसी संवैधानिक उल्लंघन की श्रेणी में नहीं आता।
राज्य के महाधिवक्ता के. शशिकिरण शेट्टी ने अदालत को याद दिलाया कि दशहरा एक राज्य प्रायोजित सांस्कृतिक उत्सव है, मात्र मंदिर का धार्मिक कार्यक्रम नहीं। उन्होंने यह भी बताया कि 2017 में भी कवि डॉ. निस्सार अहमद ने इसी आयोजन का उद्घाटन किया था। उनका कहना था,
''यह आस्था का मुद्दा नहीं, बल्कि योग्य नागरिकों को सम्मानित करने का मामला है।''
अदालत ने मुश्ताक के सार्वजनिक सेवा रिकॉर्ड को भी रेखांकित किया- हासन नगर परिषद में पार्षद से लेकर महिला मंचों और अस्पताल बोर्डों की अध्यक्षता तक। 2025 की बुकर पुरस्कार विजेता के रूप में उनकी उपलब्धियों को मान्यता देते हुए अदालत ने कहा कि विभिन्न दलों और सरकारी प्रतिनिधियों वाली समिति ने उन्हें आमंत्रित करने का निर्णय विधिसम्मत रूप से लिया था।
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निर्णय
याचिकाओं को खारिज करते हुए अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि किसी भी संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ है। आदेश में कहा गया,
''एक विशेष आस्था का व्यक्ति यदि अन्य धर्म के उत्सव में शामिल होता है, तो यह संविधान का उल्लंघन नहीं है। ''
इसी के साथ हाईकोर्ट ने साफ कर दिया कि इस वर्ष का मैसूर दशहरा समारोह चामुंडी पहाड़ियों पर बनू मुश्ताक के उद्घाटन से ही शुरू होगा।