बुधवार को केरल हाईकोर्ट ने एक सख्त टिप्पणी करते हुए एर्नाकुलम निवासी 62 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ लगाए गए आरोपों को रद्द कर दिया, जिस पर अवैध मनी लेंडिंग का आरोप था। न्यायमूर्ति पी.वी. कुन्हिकृष्णन ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने "प्रिंटेड फॉर्मेट" में आरोप तय किए - जो न्यायिक प्रक्रिया में अस्वीकार्य तरीका है। बेंच ने सोमसुंदरम की आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार किया, जिन पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420 (धोखाधड़ी) और केरल मनी लेंडर्स अधिनियम, 1958 की धारा 13 और 17 के तहत आरोप लगाए गए थे।
पृष्ठभूमि
यह मामला क्राइम नंबर 884/2011 से संबंधित है, जो एर्नाकुलम टाउन नॉर्थ पुलिस स्टेशन में दर्ज हुआ था। अभियोजन का आरोप था कि सोमसुंदरम ने बिना वैध लाइसेंस के "SARO Finance Company" चलाया, ग्राहकों से अत्यधिक ब्याज वसूला और उनसे चेक तथा स्टांप पेपर लिए।
शुरुआत में पुलिस ने केवल केरल मनी लेंडर्स अधिनियम के तहत चार्जशीट दायर की थी। लेकिन आगे की जांच के बाद एक पूरक आरोपपत्र (Supplementary Charge Sheet) दाखिल किया गया, जिसमें धारा 420 IPC (धोखाधड़ी) भी जोड़ी गई।
सोमसुंदरम ने पहले ही Crl.M.C. No. 8883/2019 के तहत हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था, जहां अदालत ने उन्हें अनुपस्थित रहते हुए डिस्चार्ज याचिका दाखिल करने की अनुमति दी थी। दिलचस्प बात यह है कि मामले के दूसरे आरोपी को पहले ही बरी कर दिया गया था। लेकिन जब तक सोमसुंदरम याचिका दाखिल कर पाते, निचली अदालत ने आरोप तय कर दिए थे। इसी वजह से उन्होंने Crl. Rev. Pet. No. 265 of 2025 के माध्यम से उस आदेश को चुनौती दी।
अदालत के अवलोकन
न्यायमूर्ति कुन्हिकृष्णन ने ट्रायल कोर्ट की तीखी आलोचना की। केस फाइल की जांच के बाद उन्होंने आश्चर्य जताया कि एर्नाकुलम की अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत ने प्रिंटेड फॉर्मेट में आरोप तय किए, जिसमें सिर्फ नाम और केस डिटेल्स भर दिए गए थे।
“मैं हैरान हूं कि किसी अदालत ने इस तरह का आरोप तय किया। यह किसी अदालत के लिए उचित तरीका नहीं है,” न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा।
उन्होंने आगे स्पष्ट किया कि दंड प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C.) की धारा 240(1) और नई भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 263(1) के तहत, आरोप लिखित रूप में तय किए जाने चाहिए — न कि किसी पहले से बने फॉर्म में भरकर।
हालांकि कानून में आरोप का एक प्रारूप दिया गया है, लेकिन न्यायाधीश ने जोर दिया कि अदालतें उस प्रारूप को टेम्पलेट बनाकर बार-बार इस्तेमाल नहीं कर सकतीं।
“अदालत किसी फॉर्मेट में खाली जगह छोड़कर हर केस की डिटेल्स भरने की प्रक्रिया नहीं अपना सकती,” बेंच ने कहा, यह जोड़ते हुए कि ऐसे शॉर्टकट “न्यायिक प्रक्रिया की गंभीरता को कमजोर करते हैं।"
निर्णय
याचिकाकर्ता के तर्कों में दम पाते हुए, हाईकोर्ट ने 9 दिसंबर 2019 को जारी आदेश, जिसके तहत आरोप तय किए गए थे, को रद्द कर दिया।
न्यायमूर्ति कुन्हिकृष्णन ने सोमसुंदरम को तीन सप्ताह का समय दिया ताकि वे निचली अदालत में नई डिस्चार्ज याचिका दाखिल कर सकें। साथ ही निर्देश दिया कि मजिस्ट्रेट उनकी उपस्थिति पर ज़ोर न दे और याचिका पर चार महीने के भीतर निर्णय ले।
“विवादित आदेश को रद्द किया जाता है। किसी भी नए आरोप से पहले याचिकाकर्ता को डिस्चार्ज की मांग करने का अवसर दिया जाए,” आदेश में कहा गया।
इसके साथ ही अदालत ने यह स्पष्ट किया कि प्रक्रिया संबंधी गलतियाँ - चाहे वे कितनी भी मामूली क्यों न लगें - अगर न्यायिक मर्यादा को प्रभावित करती हैं, तो उन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता।
Case Title: Somasundaram v. State of Kerala
Case Number: Criminal Revision Petition No. 265 of 2025
Date of Order: 08 October 2025