केरल हाईकोर्ट ने किशोर प्रेम संबंध मामले में पॉक्सो केस रद्द किया, सहमति और भविष्य को देखते हुए फैसला

By Shivam Y. • September 10, 2025

XXX बनाम केरल राज्य एवं अन्य - केरल उच्च न्यायालय ने सहमति से किशोरावस्था में हुए प्रेम और मामले के असामान्य तथ्यों का हवाला देते हुए 18 वर्षीय के खिलाफ POCSO मामले को रद्द कर दिया।

सोमवार को केरल हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए 18 वर्षीय युवक पर दर्ज पॉक्सो (POCSO) केस को खत्म कर दिया। जस्टिस जी. गिरीश ने यह आदेश सुनाते हुए कहा कि मामले की परिस्थितियां असामान्य हैं और यह दो किशोरों के बीच सहमति से बने रिश्ते का मामला है। अदालत ने साफ किया कि इस तरह के मुकदमे को जारी रखना भविष्य को बर्बाद करने जैसा होगा।

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पृष्ठभूमि

यह मामला तिरुवनंतपुरम के चिरयिनकीझु पुलिस स्टेशन में दर्ज क्राइम नंबर 336/2023 से जुड़ा है। अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपी युवक अपनी 17 वर्षीय सहपाठी और प्रेमिका को बहला-फुसलाकर ले गया और दो बार यौन संबंध बनाए - एक बार अपने दोस्त के घर और दूसरी बार लड़की के ही घर पर।

उस पर यह भी आरोप था कि वह लड़की को रात में एक सुनसान चट्टानी इलाके में ले गया और शादी का झूठा वादा कर शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश की।

आरोपी पर आईपीसी की धारा 376(2)(n), 361, 363, 342, 354A और पॉक्सो एक्ट की धाराएं लगाई गई थीं।

अदालत की टिप्पणियां

सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष ने दलील दी कि यह मामला दरअसल दो किशोरों के आपसी सहमति वाले रिश्ते का है और अब दोनों परिवारों के बीच समझौता हो चुका है। लड़की और उसके माता-पिता भी मुकदमे को आगे बढ़ाना नहीं चाहते।

न्यायमूर्ति गिरीश ने केस रिकॉर्ड देखने के बाद पाया कि शिकायतकर्ता लड़की उस समय महज छह महीने कम उम्र की थी।

उन्होंने टिप्पणी की-

"अगर यह घटनाएं छह महीने बाद हुई होतीं, तो किसी भी अपराध का आरोप नहीं लग सकता था।"

जज ने आगे कहा,

"किशोरावस्था की उथल-पुथल ने इस मामले को आपराधिक रूप दे दिया है।"

अदालत ने यह भी नोट किया कि पीड़िता ने हलफनामे में साफ लिखा है कि वह आरोपी के साथ अपना रिश्ता आगे भी जारी रखना चाहती है।

फैसला

हाईकोर्ट ने माना कि इस मुकदमे को जारी रखना 'बेहद कठोर और अनुचित' होगा। इसलिए याचिका स्वीकार कर ली गई और आरोपी के खिलाफ लंबित केस को रद्द कर दिया गया।

जस्टिस गिरीश ने यह भी कहा कि आने वाले समय में दोनों युवक-युवती विवाह कर सामान्य जीवन बिता सकते हैं। ऐसे हालात में जब परिवार और पीड़िता खुद मुकदमा नहीं चलाना चाहते, तो अभियोजन जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है।

इस आदेश के साथ ही सेशंस केस नंबर 1897/2023 की कार्यवाही समाप्त हो गई और युवक को गंभीर आरोपों से राहत मिल गई।

केस शीर्षक: XXX बनाम केरल राज्य एवं अन्य।

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