केरल उच्च न्यायालय ने गुरुवार को एक अहम फैसले में कोचिन इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (CIAL) के पूर्व प्रबंध निदेशक वी.जे. कुरियन की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने सतर्कता जांच को रद्द करने की मांग की थी। न्यायमूर्ति ए. बदरुद्दीन ने यह आदेश सुनाते हुए सतर्कता एवं भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (VACB) को कथित बेनामी शेयर खरीद के मामले में त्वरित जांच (क्विक वेरिफिकेशन) आगे बढ़ाने की अनुमति दे दी।
पृष्ठभूमि
यह विवाद साल 2004 से जुड़ा है जब CIAL ने कथित रूप से 1,20,000 शेयर सेबेस्टियन नामक एक व्यक्ति को आवंटित किए थे, जो कंपनी का कर्मचारी नहीं था। शिकायत में आरोप है कि सेबेस्टियन वास्तव में कुरियन का मुखौटा था, जिसके ज़रिए उन्होंने कर्मचारियों के लिए आरक्षित ‘एम्प्लॉयी स्टॉक ओनरशिप प्लान’ (ESOP) के तहत भारी मात्रा में शेयर हासिल किए।
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अब 65 वर्षीय कुरियन का कहना है कि शेयर का आवंटन निदेशक मंडल के निर्णय के अनुसार हुआ था और उस समय कोई ESOP योजना लागू ही नहीं थी। उनके वकीलों का तर्क है कि इसमें उनका कोई व्यक्तिगत हाथ नहीं था और आरोप पूरी तरह निराधार हैं।
दिलचस्प बात यह है कि 2016 में हुई एक पिछली सतर्कता जांच (QV No.33/2016/EKM) में कुरियन को कई अन्य आरोपों - जैसे कंपनी संसाधनों का दुरुपयोग और असंगत संपत्ति - से बरी कर दिया गया था। हालांकि उस जांच में बेनामी शेयर होल्डिंग का आरोप कभी देखा ही नहीं गया था।
अदालत की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति बदरुद्दीन ने दोनों पक्षों की दलीलों को ध्यान से सुना। लोक अभियोजक ने बताया कि भले ही पिछली जांच में कोई गड़बड़ी नहीं मिली थी, लेकिन मौजूदा शिकायत में एक नया और गंभीर आरोप - बेनामी स्वामित्व - सामने आया है।
अभियोजक ने कहा, "पिछली जांच में यह विशेष आरोप शामिल ही नहीं था।"
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कुरियन की ओर से दलील दी गई कि अगर जांच करनी भी है तो वह सरकार की पूर्व अनुमति के बिना नहीं हो सकती, जैसा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 2018 की धारा 17A में प्रावधान है। इस धारा के तहत किसी लोक सेवक द्वारा अपने आधिकारिक कर्तव्यों के तहत लिए गए निर्णय की जांच से पहले सरकार की मंजूरी लेना ज़रूरी है।
बेंच ने इस तर्क की गहराई से जांच की। अदालत ने कहा कि धारा 17A तभी लागू होती है जब कथित काम किसी सरकारी अधिकारी के आधिकारिक निर्णय का हिस्सा हो।
न्यायाधीश ने साफ कहा, "किसी तीसरे व्यक्ति के नाम पर शेयर खरीदना आधिकारिक कर्तव्य नहीं माना जा सकता।" इसलिए इस मामले में धारा 17A का संरक्षण नहीं मिलेगा।
अदालत ने सर्वोच्च न्यायालय के कई फैसलों का हवाला भी दिया, जिनमें राजस्थान राज्य बनाम तेजमल चौधरी (जिसमें कहा गया कि धारा 17A पूर्वव्यापी नहीं है) और प्रदीप निरंकरनाथ शर्मा बनाम गुजरात राज्य (जिसमें कहा गया कि भ्रष्टाचार जैसे संज्ञेय अपराध का आरोप होने पर पुलिस को बिना प्राथमिक जांच के मामला दर्ज करना होता है)।
न्यायमूर्ति बदरुद्दीन ने कहा, "बेनामी तरीके से सार्वजनिक संपत्ति खरीदना भ्रष्टाचार अधिनियम की धारा 17A के दायरे में नहीं आता।"
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निर्णय
आख़िरकार, उच्च न्यायालय ने मुवाट्टुपुझा स्थित विशेष न्यायाधीश (सतर्कता) के उस आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया जिसमें उन्होंने आरोपों की त्वरित जांच के निर्देश दिए थे। अदालत ने कहा कि VACB इस जांच को आगे बढ़ा सकती है, बशर्ते सरकार से पहले से मांगी गई औपचारिक मंजूरी मिल जाए, हालांकि न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि इस संदर्भ में शायद यह मंजूरी आवश्यक भी न हो।
न्यायालय ने कहा,
"इस आदेश के अनुसार आगे की कार्रवाई पीसी एक्ट की धारा 17A के तहत मांगी गई स्वीकृति मिलते ही की जा सकती है।" इसी के साथ अदालत ने कुरियन को जांच से मिली अंतरिम रोक भी हटा दी।
अब सतर्कता विभाग के पास पूरी छूट है कि वह जांच करे कि क्या पूर्व CIAL प्रमुख ने वाकई किसी मुखौटे के ज़रिए गुपचुप तरीके से शेयर इकट्ठा किए थे - एक ऐसा आरोप जो साबित होने पर बड़ा तूफ़ान ला सकता है।
केस का शीर्षक: वी.जे. कुरियन बनाम केरल राज्य एवं अन्य
केस संख्या: आपराधिक प्रक्रिया संहिता संख्या 991/2023