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आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने संपत्ति विवाद केस में क्षतिपूर्ति बढ़ाकर ₹8.55 लाख रुपये की

Shivam Yadav

भवनाम चीन वेंकट रेड्डी बनाम दंतला सुब्बा रेड्डी एवं अन्य - आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने गंभीर चोट व स्थायी विकलांगता वाले संपत्ति विवाद मामले में क्षतिपूर्ति बढ़ाकर 8.55 लाख रुपये तय किए।

आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने संपत्ति विवाद केस में क्षतिपूर्ति बढ़ाकर ₹8.55 लाख रुपये की

अमरावती, 11 सितंबर - आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने आज एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें संपत्ति विवाद से जुड़े हिंसात्मक संघर्ष में भुवनम चीन वेंकट रेड्डी को दिए गए मुआवजे की राशि 8.55 लाख रुपये तक बढ़ा दी गई। यह मामला इसलिए खास रहा क्योंकि इसमें सिविल और आपराधिक दोनों मुकदमे एक साथ चल रहे थे, जिससे न्यायालय की सूक्ष्म जांच की मांग हुई।

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मामला का पृष्ठभूमि

यह विवाद 2006 में शुरू हुआ था, जब संपत्ति को लेकर वर्षों से चले आ रहे झगड़े ने हिंसात्मक रूप ले लिया। भुवनम चीन वेंकट रेड्डी ने दावा किया कि प्रतिवादी दंतला सुब्बा रेड्डी और अन्य लोगों ने बिना किसी अधिकार के उनके कंपाउंड की दीवार तोड़ दी थी। अगले दिन सुबह दोनों पक्षों में बातचीत के दौरान मामला हिंसक संघर्ष में बदल गया। पीड़ित ने आरोप लगाया कि प्रतिवादी ने चाकू से हमला कर गंभीर चोटें पहुंचाईं, जिसमें मस्तिष्क के अंदर गंभीर रक्तस्राव भी शामिल था।

पीड़ित ने कई अस्पतालों में इलाज करवाया, जिसमें खर्चा ₹5 लाख से अधिक हो गया। इसके अलावा, उन्हें स्थायी विकलांगता का सामना करना पड़ा-जिसमें एक तरफ शरीर की लकवा मार जाना और दृष्टि संबंधी समस्या शामिल थी। वहीं, प्रतिवादियों का कहना था कि ये सभी चोटें खुद भुवनम और उसके परिजनों ने आत्मरक्षा में लगाईं थी। मामला इतना पेचिदा था कि इसमें एक साथ सिविल और आपराधिक दोनों मुकदमे चलाए गए।

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न्यायालय के विचार

न्यायमूर्ति रवि नाथ तिलहरी और न्यायमूर्ति महेश्वर राव कुंचेम की अध्यक्षता वाली पीठ ने दलीलों, मौखिक साक्ष्यों और दस्तावेजी साक्ष्यों का गहनता से परीक्षण किया। अदालत ने बताया कि प्रतिवादियों के दावों के बावजूद, आपराधिक कार्यवाही के परिणामस्वरूप प्रथम प्रतिवादी को भारतीय दंड संहिता की धारा 326 के तहत दोषी ठहराया गया। बचाव पक्ष का यह तर्क कि चल रही आपराधिक कार्यवाही के कारण दीवानी मुकदमा विचारणीय नहीं था, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357 का हवाला देते हुए दृढ़ता से खारिज कर दिया गया।

पीठ ने कहा,

''वास्तविक तात्पर्य इस कानूनी ढांचे का यही है कि दोनों सिविल और आपराधिक न्यायालय समान रूप से कार्य कर सकते हैं ताकि पक्षों को दोहरा लाभ या हानि न हो।''

न्यायालय ने पाया कि निचली अदालत ने पीड़ित के विकलांगता प्रतिशत को सिर्फ तस्वीरों पर आधारित होकर 40% आंका था, जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सही नहीं था। मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार विकलांगता दर 70% थी। इस आधार पर हाई कोर्ट ने 50% स्थायी विकलांगता मानते हुए मुआवजे की राशि तय की।

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अंतिम फैसला

अंततः आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा तय ₹4.04 लाख के मुआवजे को संशोधित करते हुए ₹8.55 लाख कर दिया। इस राशि में शामिल हैं:

  • विकलांगता के कारण आय हानि के लिए ₹4.80 लाख
  • चिकित्सा व्यय के लिए ₹1 लाख
  • शारीरिक पीड़ा और मानसिक कष्ट के लिए ₹50,000
  • सहायक कर्मचारी खर्च के लिए ₹75,000
  • विवाह संबंधी संभावनाओं पर प्रभाव के लिए ₹1.5 लाख

न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि यह मुआवजा 9% वार्षिक ब्याज सहित 31 मार्च 2009 से लेकर राशि भुगतान तक देना होगा। भविष्य में इसके ऊपर 6% वार्षिक ब्याज भी लागू रहेगा। प्रतिवादियों द्वारा दायर दूसरी अपील को खारिज करते हुए, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस मामले में कोई अतिरिक्त लागत नहीं लगेगी।

इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया कि भारत में सिविल और आपराधिक दोनों कार्यवाहियां समान रूप से प्रासंगिक हैं, और न्यायालय दोनों के बीच संतुलन बनाकर निष्पक्षता सुनिश्चित करता है।

Case Tittle: भवनाम चीन वेंकट रेड्डी बनाम दंतला सुब्बा रेड्डी एवं अन्य

Case Number: फर्स्ट अपील संख्या 1025 और 233 वर्ष 2016

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