निचली अदालत को कड़ी फटकार लगाते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि रोमेल हाउसिंग एलएलपी को मुंबई के दहिसर स्थित करीब 17 एकड़ जमीन का कब्ज़ा वापस दिया जाए। जस्टिस अमित बोरकर की पीठ ने 16 सितंबर 2025 को कहा कि सेशंस कोर्ट ने गलत किया जब उसने मजिस्ट्रेट के उस आदेश को रद्द कर दिया था जिसमें बिल्डर को कब्ज़ा लौटाने का निर्देश था।
पृष्ठभूमि
विवाद अप्रैल 2017 से जुड़ा है, जब समीयर शेख ने एफआईआर दर्ज कराई कि रोमेल हाउसिंग की टीम डंडों और लोहे की रॉड के साथ जमीन पर पहुंची, कर्मचारियों को पीटा और करोड़ों की जमीन पर कब्ज़ा कर लिया।
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रोमेल हाउसिंग का कहना था कि उसने यह जमीन वैध मालिकों से पंजीकृत सेल डीड के ज़रिये खरीदी थी और के.एन. शेख से कब्ज़ा छोड़ने के बदले 47 लाख रुपये का भुगतान भी किया था। बिल्डर का कहना था कि उसने जमीन को टिन की चादरों से घेरा, पोर्टेबल केबिन लगाए, सुरक्षा गार्ड रखे और टैक्स चुकाया-जो नियंत्रण के स्पष्ट संकेत हैं।
इसके बावजूद, अगले ही दिन पुलिस ने रोमेल की संरचनाएं हटा दीं। इसके बाद लंबी कानूनी लड़ाई चली, जिसमें 2018 में हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 145 के तहत जांच का आदेश दिया ताकि यह तय किया जा सके कि 22 अप्रैल 2017 को वास्तविक कब्ज़ा किसके पास था।
अदालत की टिप्पणियाँ
जस्टिस बोरकर ने जोर दिया कि धारा 145 का मकसद शांति भंग होने से रोकना है, न कि मालिकाना हक तय करना। उन्होंने कहा, “जांच का उद्देश्य यह पता लगाना है कि असली कब्ज़ा किसका है, यहां तक कि एक अतिक्रमणकारी को भी विधिसम्मत प्रक्रिया के बिना हटाया नहीं जा सकता।”
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अदालत ने नोट किया कि रोमेल ने पंजीकृत कंवेंस डीड, सरेंडर डीड, बैंक स्टेटमेंट, और टिन की चादरों, केबिनों तथा नियुक्त सुरक्षा का सबूत पेश किया। घटना वाले दिन पुलिस पंचनामा की तस्वीरों में भी साइट पर रोमेल के टिन और केबिन दिखे।
सेशंस कोर्ट ने, जज के अनुसार, “सिविल ट्रायल जैसी कठोर साक्ष्य मानक अपनाए” और धारा 145 की त्वरित और सारांश प्रकृति को नजरअंदाज किया। बिना रजिस्ट्री वाले दस्तावेज़ों पर तकनीकी आपत्तियां वास्तविक कब्ज़े के दृश्यमान प्रमाणों पर भारी नहीं पड़ सकतीं।
फैसला
सेशंस कोर्ट के 2022 के आदेश को रद्द करते हुए हाईकोर्ट ने मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के 2019 के उस निर्देश को बहाल किया जिसमें जमीन का कब्ज़ा रोमेल हाउसिंग को लौटाने को कहा गया था। कोर्ट रिसीवर को निर्देश दिया गया है कि बिल्डर द्वारा आवश्यक शुल्क जमा करने के बाद पुलिस की सहायता से संपत्ति का कब्ज़ा सौंपा जाए।
जस्टिस बोरकर ने निष्कर्ष में कहा, “21 दिसंबर 2019 का आदेश बहाल किया जाता है,” और यह भी स्पष्ट किया कि प्रतिवादी सहयोग करें और प्रक्रिया में बाधा न डालें।
मामले का शीर्षक: रोमेल हाउसिंग एलएलपी एवं अन्य बनाम समीर सलीम शेख एवं अन्य
मामले का प्रकार: आपराधिक पुनरीक्षण आवेदन संख्या 108/2023 (सीआरपीसी की धारा 145 के विवाद से उत्पन्न)
निर्णय की तिथि: 16 सितंबर 2025