एक अहम फैसले में, कर्नाटक हाईकोर्ट ने चेन्नई स्थित डायरेक्टरेट जनरल ऑफ जीएसटी इंटेलिजेंस (DGGI) द्वारा मिनेसोटा आधारित कंपनी NCS Pearson Inc. को जारी किया गया शो-कॉज नोटिस रद्द कर दिया है। यह कंपनी भारत में जीमैट (GMAT) परीक्षा आयोजित करती है। कोर्ट ने कहा कि “जानबूझकर जानकारी छुपाने” के आरोप पर जारी यह नोटिस कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है।
पृष्ठभूमि
पियर्सन, जो पियर्सन व्यू (Pearson Vue) डिवीजन चलाता है, लंबे समय से कंप्यूटर आधारित परीक्षाएं आयोजित करता है, जिनमें जीमैट भी शामिल है। विवाद इस बात पर उठा कि जिन जीमैट टेस्ट को “टाइप-III” कहा जाता है और जिनमें मानव मूल्यांकनकर्ता (human scorers) शामिल होते हैं, क्या उन्हें जीएसटी कानून के तहत ऑनलाइन इंफॉर्मेशन डेटाबेस एक्सेस एंड रिट्रीवल (OIDAR) सेवाओं के रूप में माना जाए या नहीं।
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कंपनी ने सबसे पहले 2020 में एडवांस रूलिंग अथॉरिटी (AAR) से स्पष्टीकरण मांगा। AAR ने कहा कि टाइप-III टेस्ट OIDAR की परिभाषा में नहीं आते। लेकिन अपीलीय प्राधिकरण (AAAR) ने बाद में इस फैसले को पलट दिया। इसके बाद पियर्सन हाईकोर्ट पहुंचा, जहां मामला अब भी लंबित है। इसके बावजूद, फरवरी 2024 में DGGI ने शो-कॉज नोटिस जारी कर जुलाई 2017 से जून 2021 तक के लिए टैक्स की मांग की।
अदालत की टिप्पणियाँ
जस्टिस एस.आर. कृष्ण कुमार ने पूरी कानूनी प्रक्रिया का अध्ययन करते हुए कहा कि राजस्व विभाग ने पहले ही AAR और AAAR की कार्यवाही में भाग लिया था, जिससे उन्हें पियर्सन की सेवाओं की पूरी जानकारी थी। “जब अधिकारियों के पास सभी संबंधित विवरण मौजूद थे, तब यह नहीं कहा जा सकता कि याचिकाकर्ता ने जानकारी छुपाई,” कोर्ट ने टिप्पणी की।
बेंच ने आगे स्पष्ट किया कि सीजीएसटी एक्ट की धारा 74 लागू करने के लिए स्पष्ट सबूत होना चाहिए कि करदाता ने जानबूझकर जानकारी छुपाई और टैक्स चोरी करने का इरादा था। अदालत ने कहा, “सिर्फ चूक या वर्गीकरण को लेकर मतभेद को ‘जानबूझकर जानकारी छुपाना’ नहीं माना जा सकता।”
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जज ने यह भी रेखांकित किया कि टाइप-III टेस्ट का वर्गीकरण अभी हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में विचाराधीन है। ऐसे में लंबित मामले के दौरान नया शो-कॉज नोटिस जारी करना “मनमाना अधिकार प्रयोग” है।
निर्णय
कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि यह शो-कॉज नोटिस क्षेत्राधिकार के बुनियादी आधार से वंचित है और संविधान के अनुच्छेद 265 का उल्लंघन करता है, जो बिना कानून के कर वसूली को प्रतिबंधित करता है। परिणामस्वरूप, अदालत ने इसे रद्द कर दिया। यह फैसला फिलहाल पियर्सन को टाइप-III टेस्ट पर टैक्स वसूली की कार्यवाही से बचाता है, जब तक कि वर्गीकरण का बड़ा मुद्दा अंतिम रूप से तय नहीं हो जाता।
मामला: मेसर्स एनसीएस पियर्सन इंक. बनाम भारत संघ एवं अन्य
दिनांक: निर्णय दिनांक 16 जुलाई 2025
मामला संख्या: रिट याचिका संख्या 7635/2024 (टी-आरईएस)