सोमवार को पटना हाई कोर्ट ने एक पारिवारिक अदालत द्वारा दिए गए आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया, जिसमें भागलपुर के एक व्यक्ति को अपनी पत्नी को मासिक भत्ता देने का निर्देश दिया गया था। सुनवाई के दौरान माहौल कई बार तनावपूर्ण हो गया, खासकर जब अदालत ने पति के “परित्याग” संबंधी तर्कों और उनके कानूनी आधार पर कड़े सवाल उठाए।
पृष्ठभूमि (Background)
यह मामला 2019 में दायर एक भरण-पोषण याचिका से शुरू हुआ था, जिसमें पल्लवी कुमारी ने अपने पति विवेक कुमार सिंह से आर्थिक सहायता की मांग की थी। इस वर्ष की शुरुआत में फैमिली कोर्ट ने विवेक की शुद्ध मासिक आय-जो ₹90,000 से अधिक बताई गई थी-के आधार पर ₹22,000 मासिक भरण-पोषण तय किया।
सिंह ने इस आदेश को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि यह आदेश तथ्यों को नजरअंदाज करते हुए दिया गया है। उनके वकील का कहना था कि पल्लवी बिना किसी उचित कारण के matrimonial home छोड़कर चली गईं, सुलह की सभी कोशिशें उनके “उदासीन रवैये” की वजह से विफल रहीं, और उन्होंने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत पुनर्स्थापन याचिका भी दायर कर रखी है।
अदालत के अवलोकन (Court’s Observations)
मौखिक सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति अरुण कुमार झा ने रिकॉर्ड का निरीक्षण करते हुए मुख्य प्रश्न पर ध्यान केंद्रित किया: क्या पति सिर्फ परित्याग का दावा करके, बिना किसी सक्षम अदालत द्वारा स्पष्ट निष्कर्ष के, भरण-पोषण देने से बच सकता है?
अदालत इस तर्क से असहमत नजर आई। बहस के दौरान न्यायमूर्ति झा ने टिप्पणी की, “जब तक लंबित वैवाहिक वाद में यह घोषित न हो जाए कि पत्नी का अलग रहना अनुचित है, तब तक उसे भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता।”
न्यायाधीश ने यह भी कहा कि फैमिली कोर्ट ने स्वयं विवेक द्वारा बताए गए वेतन को आधार बनाया था, और ₹22,000 की राशि उनकी नेट सैलरी का लगभग 25% बैठती है। अदालत ने याद दिलाया कि यह अनुपात सुप्रीम कोर्ट के राजनेश बनाम नेहा फैसले के अनुरूप है।
सुलह कार्यवाही से जुड़े पति के तर्कों पर भी अदालत ने साफ कहा कि पुराने आदेशों में दर्ज सामान्य टिप्पणियां “किसी महिला के वैध भरण-पोषण अधिकार को खत्म नहीं कर सकतीं।” जब तक पत्नी के खिलाफ कोई ठोस निष्कर्ष दर्ज न हुआ हो, ऐसे अवलोकन निर्णायक नहीं माने जाएंगे।
निर्णय (Decision)
सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद न्यायमूर्ति झा ने फैमिली कोर्ट के आदेश को सही ठहराते हुए कहा कि इसमें किसी प्रकार की “अवैधता या अनुचितता” नहीं है। अदालत ने स्पष्ट किया, “यह पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार का मामला है, और केवल अलग निष्कर्ष के लिए तथ्य पुनः परखा नहीं जा सकता।”
पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी गई। हालांकि अदालत ने एक रास्ता खुला छोड़ा: यदि किसी सक्षम अदालत द्वारा भविष्य में यह पाया जाता है कि पत्नी का अलग रहना अनुचित था, तो पति भरण-पोषण आदेश में संशोधन के लिए आवेदन कर सकता है।
निर्णय यहीं समाप्त होता है।
Case Title: Vivek Kumar Singh vs. State of Bihar & Pallawi Kumari
Court: Patna High Court
Case Type: Criminal Revision No. 754 of 2025
Parties:
- Petitioner: Vivek Kumar Singh
- Respondents: State of Bihar & Pallawi Kumari
Original Case: Maintenance Case No. 01/2019 (Family Court, Bhagalpur)