14 नवंबर 2025 को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में एक सुनवाई कुछ अलग ही माहौल लेकर आई। जस्टिस विनोद एस. भारद्वाज ने 11 साल पुराने लुधियाना सड़क दुर्घटना मामले में आखिरकार फैसला सुनाया। कोर्ट में आज बहस से ज़्यादा भावनाएं दिखीं-कम टकराव, ज़्यादा आत्मचिंतन-क्योंकि न्यायाधीश ने सिर्फ कानूनी दलीलें नहीं, बल्कि इस लंबे मानवीय सफर को भी ध्यान से सुना। मामला लक्षय जैन से संबंधित था, जिसे 2014 में हुए हादसे में लापरवाही से गाड़ी चलाने का दोषी ठहराया गया था। अब वह ट्रायल कोर्ट और सेशन कोर्ट द्वारा दी गई सज़ा में राहत मांग रहा था।
पृष्ठभूमि
यह मामला जून 2014 की एक दुर्घटना से जुड़ा है, जो लुधियाना के शिव मंदिर के पास स्थित PSPCL ऑफिस के बाहर हुई थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार, तेज़ रफ़्तार में चल रही एक स्विफ्ट कार ने मोटरसाइकिल को टक्कर मार दी थी, जिस पर रवि कुमार और उनकी मां चंदर कंता सवार थीं। बाद में इलाज के दौरान चंदर कंता की मौत हो गई। ट्रायल कोर्ट ने लक्षय को IPC की धारा 279, 337 और 304-A के तहत दोषी ठहराया और दो साल तक की जेल सहित अन्य सजाएं दीं।
लंबे मुकदमे के दौरान 9 गवाहों ने बयान दिए, जिनमें शिकायतकर्ता, CMC अस्पताल के डॉक्टर, जांच अधिकारी और परिवहन विभाग के अधिकारी शामिल थे। बचाव पक्ष ने एक गवाह पेश किया, जिसने दावा किया कि आरोपी ने ही घायलों को कार में बैठाकर तुरंत अस्पताल पहुंचाया था-एक तथ्य जिसने सज़ा पर विचार करते समय अहम भूमिका निभाई।
कोर्ट की टिप्पणियाँ
सुनवाई के दौरान आरोपी के वकील ने एक अलग ही रास्ता अपनाया। उन्होंने दोष सिद्धि को चुनौती देने की बजाय केवल सज़ा में राहत पर दलीलें दीं। उन्होंने बताया कि दुर्घटना के समय लक्षय की उम्र केवल 21 वर्ष थी, उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है, उसने पुलिस से सहयोग किया और वह घटनास्थल से भागा भी नहीं बल्कि खुद घायलों को अस्पताल ले गया। वकील ने यह भी बताया कि मृतका के परिवार के साथ अब समझौता हो चुका है और उनके मन में कोई दुर्भावना नहीं बची है।
जब बचाव पक्ष ने “ग्यारह साल की लंबी कानूनी प्रक्रिया” का ज़िक्र किया, तो अदालत ने विशेष रूप से ध्यान दिया। एक समय न्यायाधीश ने टिप्पणी की, “पीठ ने कहा, ‘सज़ा का उद्देश्य सुधार होना चाहिए, न कि संदर्भ से कटे हुए दर्द का बोझ बनाना।’”
फैसले में अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के कई महत्वपूर्ण निर्णयों का हवाला दिया, जिनमें जुगल किशोर प्रसाद और चेल्लम्मल शामिल थे। ये दोनों निर्णय बताते हैं कि ऐसे युवा अभियुक्त जिन्हें आपराधिक प्रवृत्ति नहीं है, उन्हें दंड के बजाय सुधारात्मक दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए। जस्टिस भारद्वाज ने अपराधशास्त्री बेकारिया जैसे विचारकों को भी उद्धृत किया और कहा कि कठोरता हमेशा न्याय की शक्ति नहीं बढ़ाती।
उन्होंने आगे जोड़ा, “पीठ ने कहा, ‘जहां अपराध मानवीय भूल के कारण हो, न कि आपराधिक इरादे से, वहाँ कानून सुधार की संभावना को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता।’”
निर्णय
अंत में हाई कोर्ट ने पुनरीक्षण याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया। लक्षय जैन को अब आगे की जेल नहीं काटनी होगी। अदालत ने उसे दो साल की probation (निगरानी पर रिहाई) का लाभ दिया, जिसके तहत उसे शांति और सदाचार बनाए रखना होगा और probation अधिकारी की निगरानी में रहना होगा। यदि वह शर्तों का उल्लंघन करता है, तो उसे शेष सज़ा काटनी पड़ेगी।
एक दिलचस्प निर्देश में, अदालत ने उसे 50 स्थानीय प्रजाति के पेड़ लगाने और पाँच साल तक उनकी देखभाल सुनिश्चित करने का आदेश दिया-या तो रखरखाव की लागत जमा करके, या फिर उतने श्रम-घंटों का शारीरिक श्रम करके जिसकी कीमत तय होगी।
सुनवाई इसी पर खत्म हो गई। न कोई तेज़ बहस, न कोई नाटकीय पल-सिर्फ एक शांत लेकिन दृढ़ संदेश कि न्याय सख़्त होते हुए भी दयालु हो सकता है।
Case Title: Lakshay Jain vs. State of Punjab and Another
Case Number: CRR-2697-2025 (O&M)
Case Type: Criminal Revision Petition
Court: High Court of Punjab & Haryana, Chandigarh
Bench / Judge: Hon’ble Mr. Justice Vinod S. Bhardwaj
Reserved On: 30 October 2025
Decision / Pronounced On: 14 November 2025