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सुप्रीम कोर्ट ने 20 साल पुराने आर्म्स लाइसेंस मामले में IAS अधिकारी पर चली अभियोजन कार्यवाही रद्द की, कहा-सैंक्शन आदेश "गैर-कारणयुक्त" और अवैध

Vivek G.

रॉबर्ट लालचुंगनुंगा चोंग्थू @ आर. एल. चोंग्थू बनाम बिहार राज्य, सुप्रीम कोर्ट ने 20 साल पुराने आर्म्स लाइसेंस मामले में आईएएस अधिकारी पर चले अभियोजन को अवैध सैंक्शन और भारी देरी के कारण रद्द किया।

सुप्रीम कोर्ट ने 20 साल पुराने आर्म्स लाइसेंस मामले में IAS अधिकारी पर चली अभियोजन कार्यवाही रद्द की, कहा-सैंक्शन आदेश "गैर-कारणयुक्त" और अवैध

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में हुई एक महत्वपूर्ण सुनवाई के दौरान, जस्टिस संजय करोल की अगुवाई वाली पीठ ने आईएएस अधिकारी रॉबर्ट लालचुंगनुंगा चोंगथू के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया। उन पर 2004 में कथित रूप से आर्म्स लाइसेंस गलत तरीके से जारी करने का आरोप था। अदालत ने 20 साल पुराने मामले को बिना किसी प्रगति के घसीटे जाने पर नाराज़गी जताई और कहा कि अधिकारी के खिलाफ जारी सैंक्शन आदेश “यांत्रिक” और कानूनी रूप से अस्थिर था।

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यह विवाद इस आरोप से जुड़ा था कि चोंगथू, जो उस समय सहारसा के जिलाधिकारी थे, उन्होंने बिना पर्याप्त पुलिस सत्यापन के हथियारों के लाइसेंस जारी कर दिए। लेकिन कोर्ट को यह विश्वास नहीं हुआ कि राज्य ने अभियोजन शुरू करने से पहले सभी तथ्यों की गहन जांच की।

पृष्ठभूमि

विवाद की जड़ 2002–2005 के बीच है, जब अपीलकर्ता सहारसा में डीएम-कम-लाइसेंसिंग अथॉरिटी के रूप में तैनात थे। 2005 में एक एफआईआर दर्ज हुई जिसमें यह आरोप लगाया गया कि कई लाइसेंस ऐसे व्यक्तियों को दिए गए थे जिनकी पहचान या पता सत्यापित नहीं था। 2006 में दायर की गई एक पूरक चार्जशीट में स्पष्ट रूप से कहा गया कि अधिकारी के खिलाफ लगाए गए आरोप “झूठे” थे। इसके बावजूद वर्षों बाद पुनः जांच का आदेश दिया गया।

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चौंकाने वाली बात यह है कि अधिकारी का नाम शामिल करते हुए अंतिम चार्जशीट 2020 में, यानी एफआईआर के 15 साल बाद दायर हुई और अभियोजन का सैंक्शन 2022 में जारी हुआ। 2024 तक मुकदमे में एक कदम भी आगे बढ़ना तो दूर, कोई कार्यवाही शुरू तक नहीं हुई थी।

कोर्ट के अवलोकन

पीठ ने यह जानने की कोशिश की कि आखिर राज्य ने जांच में एक दशक से अधिक समय क्यों लगा दिया। एक बिंदु पर न्यायालय ने टिप्पणी की,
“एक नागरिक को कब तक आपराधिक मुकदमे की तलवार के नीचे रखा जा सकता है, खासकर जब मामला वर्षों तक निष्क्रिय पड़ा रहा?”

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अदालत ने धारा 197 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत जारी सैंक्शन आदेश में गंभीर खामियाँ पाईं। जस्टिस करोल ने इसे अस्पष्ट और बिना किसी कारण का बताते हुए कहा:

“सैंक्शन सिर्फ इतना कहता है कि ‘दस्तावेज़ों का अवलोकन किया’-इसमें यह नहीं बताया गया कि क्या देखा गया और कैसे निर्णय बना।”

कोर्ट ने यह भी दोहराया कि सैंक्शन कोई औपचारिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक “संवैधानिक सुरक्षा कवच” है ताकि सरकारी अधिकारियों को आधारहीन अभियोजन से बचाया जा सके।

एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू था अत्यधिक देरी। कोर्ट ने ज़ोर देकर कहा कि तेज़ सुनवाई का अधिकार जांच चरण से ही शुरू हो जाता है और दशकों की देरी आरोपी की रक्षा करने की क्षमता को कमज़ोर कर देती है, जो Article 21 का उल्लंघन है।

पीठ ने कहा, “कार्रवाई अनंतकाल तक नहीं चल सकती। किसी न किसी जगह समाप्ति ज़रूरी है और न्याय की मांग भी यही है।”

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निर्णय

रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने सैंक्शन आदेश को रद्द कर दिया, उसे अवैध कहा, और इसके परिणामस्वरूप-
क cognizance लेने तथा आगे की सभी आपराधिक कार्यवाही को समाप्त कर दिया।

निर्णय स्पष्ट करता है कि जब अभियोजन की नींव ही अवैध हो, तो पूरी प्रक्रिया नहीं चल सकती।

Case Title: Robert Lalchungnunga Chongthu @ R. L. Chongthu vs. State of Bihar

Case Number: Criminal Appeal (Arising out of SLP (Crl.) No. 10130 of 2025)

Case Type: Criminal Appeal – Challenge to refusal to quash cognizance under Section 482 CrPC

Court: Supreme Court of India, Criminal Appellate Jurisdiction

Bench: Justice Sanjay Karol (author of the judgment)

Decision Date: 2025

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