जयपुर - गुरुवार की देर सुबह चली सुनवाई के दौरान राजस्थान हाई कोर्ट ने यह सवाल खड़ा किया कि स्थानीय थाने आखिर किस आधार पर लोगों को “आदतन अपराधी” घोषित कर देते हैं। न्यायमूर्ति अनूप कुमार धांध ने, शांत लेकिन सख्त स्वर में आदेश सुनाते हुए, भरतपुर के पुलिस अधीक्षक द्वारा कपिल सिंह (45), निवासी घाटारी गांव, के खिलाफ खोली गई हिस्ट्री-शीट को रद्द कर दिया। शुरुआत में साधारण लग रही कार्यवाही तब बदल गई जब न्यायमूर्ति ने पुलिस कार्रवाई की खामियों को एक-एक कर सामने रखना शुरू किया।
Background (पृष्ठभूमि)
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि हालांकि वर्षों के दौरान उसके खिलाफ दस आपराधिक मामले दर्ज हुए थे, लेकिन अधिकतर में या तो अंतिम रिपोर्ट नकारात्मक आई, या वह बरी हुआ, या एफआईआर ही रद्द हो गई। एक मामला अभी लंबित है और सिर्फ एक ही दोषसिद्धि-एफआईआर नंबर 80/2014, जयपुर-उसके खिलाफ दर्ज है।
उसके वकील ने लगभग खीझ भरे अंदाज़ में कहा, “एक आदमी जिसके खिलाफ केवल एक दोषसिद्धि है, उसे ऐसे कैसे कहा जा सकता है जैसे अपराध उसका पेशा हो?” अदालत ने इस बिंदु को गंभीरता से नोट किया।
Court’s Observations (अदालत की टिप्पणियाँ)
न्यायमूर्ति धांध ने पुलिस नियम, 1965 की धाराएँ 4.4 और 4.9 का क्रमवार विश्लेषण किया-यही वे प्रावधान हैं जो निगरानी रजिस्टर में नाम जोड़ने और हिस्ट्री-शीट खोलने की प्रक्रिया निर्धारित करते हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि हिस्ट्री-शीट तभी खोली जा सकती है जब यह तथ्यों पर आधारित उचित विश्वास हो कि व्यक्ति वास्तव में अपराध के प्रति “आदतन” रूझान रखता है-सिर्फ एफआईआर दर्ज होना काफी नहीं है।
“पीठ ने टिप्पणी की, ‘सिर्फ विश्वास पर्याप्त नहीं; विश्वास मजबूत और तार्किक आधारों पर टिकना चाहिए।’”
न्यायमूर्ति ने सुप्रीम कोर्ट के प्रसिद्ध निर्णय Govind v. State of Madhya Pradesh का हवाला देते हुए याद दिलाया कि निगरानी की शक्ति कानूनी हो सकती है, लेकिन यह किसी नागरिक की गरिमा और स्वतंत्रता में बिना उचित कारण दखल नहीं डाल सकती। ऐसी कोई भी कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के मानकों पर खरी उतरनी चाहिए।
एसपी के आदेश की जांच में अदालत ने पाया कि उसमें कोई कारण दर्ज नहीं किया गया था-न यह बताया गया कि पुलिस ने किस आधार पर याचिकाकर्ता को “आदतन अपराधी” मान लिया, न कोई तथ्य, न कोई विश्लेषण। केवल दर्ज मामलों का हवाला देकर आदेश जारी कर दिया गया था।
एक तीखी टिप्पणी में न्यायमूर्ति ने कहा कि पुलिस के पास यह “लाइसेंस” नहीं है कि जिसे चाहे या न चाहे, उसका नाम निगरानी रजिस्टर में डाल दे। यह शक्ति मनमाने ढंग से नहीं, बल्कि न्यायसंगत और नियमबद्ध तरीके से इस्तेमाल होनी चाहिए।
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Decision (निर्णय)
अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता कानूनी परिभाषा के अनुसार आदतन अपराधी नहीं है और पुलिस की कार्रवाई पूर्णतः गैर-कानूनी थी। इसलिए 23 अप्रैल 2025 को एसपी भरतपुर द्वारा जारी आदेश को रद्द करते हुए अदालत ने एसपी और थाना प्रभारी, भुसावर को निर्देश दिया कि यदि याचिकाकर्ता का नाम निगरानी रजिस्टर या हिस्ट्री-शीट में दर्ज कर दिया गया है, तो उसे तुरंत हटा दिया जाए।
इसके साथ ही याचिका स्वीकार कर ली गई और सभी लंबित आवेदनों का निपटारा कर दिया गया। आदेश वहीं समाप्त होता है जहाँ अदालत का हस्तक्षेप समाप्त होता है-याचिकाकर्ता को एक अवैध पुलिस टैग से मुक्त करते हुए।
Case Title: Kaptan Singh vs. State of Rajasthan & Others
Case No.: S.B. Criminal Writ Petition No. 1134/2025
Case Type: Criminal Writ Petition
Decision Date: 04 December 2025