भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को सही ठहराया, जिसमें एक अधिवक्ता के खिलाफ आपराधिक मामले को रद्द कर दिया गया था। यह मामला कानूनी कार्यवाही के अनुकूल परिणामों के झूठे वादों और वित्तीय गड़बड़ी के आरोपों से जुड़ा था, जिससे शिकायतकर्ता को गंभीर मानसिक परेशानी हुई थी।
मामले की पृष्ठभूमि
एक ग्राहक ने एक अधिवक्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई थी, जिसमें उसने आरोप लगाया था कि अधिवक्ता ने उसे एक दीवानी विवाद में अनुकूल निर्णय दिलाने का आश्वासन दिया और इसके बदले में बड़ी रकम वसूली। इसके अलावा, शिकायतकर्ता ने यह भी दावा किया कि अधिवक्ता ने उसकी भूमि खरीदी लेकिन बिक्री राशि में शेष 86.45 लाख रुपये का भुगतान नहीं किया। इस वित्तीय नुकसान और तनाव के कारण ग्राहक ने आत्महत्या का प्रयास किया।
अधिवक्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420 के तहत धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया गया था। इसके अलावा, आरोपपत्र में धारा 420, 323, 506 और 109 के तहत अपराध जोड़े गए थे। हालांकि, आरोपी अधिवक्ता ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सीआरपीसी की धारा 482 के तहत मामला रद्द करने की मांग की।
बॉम्बे हाईकोर्ट का निर्णय
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि एफआईआर में दर्ज आरोपों के आधार पर कोई आपराधिक अपराध नहीं बनता। अदालत ने कहा:
"गलत सलाह देना या मुकदमे के अनुकूल परिणाम का झूठा वादा करना, जो कि अवैध उद्देश्य के लिए दिया गया हो और सार्वजनिक नीति के खिलाफ हो, ऐसा कोई वादा नहीं है जिसे कानूनन लागू किया जा सके। इसलिए, यह संपत्ति की डिलीवरी के लिए की गई कोई प्रेरणा नहीं है और इस कारण यह आईपीसी की धारा 415 के तहत ठगी नहीं मानी जा सकती।"
इसके बाद, हाईकोर्ट ने अधिवक्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।
बॉम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले से असंतुष्ट शिकायतकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जस्टिस सुधांशु धूलिया और के. विनोद चंद्रन की पीठ ने हाईकोर्ट के निर्णय में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और कहा:
"हम भारत के संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का उपयोग कर हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं देखते।"
सुप्रीम कोर्ट ने इस कानूनी सिद्धांत को बरकरार रखा कि केवल वादे का उल्लंघन, जब तक कि शुरू से ही बेईमानी का इरादा न हो, आईपीसी की धारा 420 के तहत धोखाधड़ी नहीं माना जा सकता।
केस का शीर्षक: चन्द्रशेखर रमेश गलांडे बनाम सतीश गजानन मुलिक और अन्य।