दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपनी नाबालिग बेटी का कई वर्षों तक यौन शोषण करने के आरोपी एक जैविक पिता की ज़मानत रद्द कर दी है। न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने 16 सितंबर 2025 को यह फैसला सुनाते हुए कहा कि निचली अदालत ने पूरी तरह से अप्रासंगिक और गलत दलीलों के आधार पर ज़मानत दी थी, जबकि मामला बेहद गंभीर था और इसमें पॉक्सो अधिनियम के तहत गंभीर आरोप शामिल थे।
पृष्ठभूमि
मामला 16 वर्षीय लड़की 'डी' से जुड़ा है, जिसने अपने पिता राजीव बब्बर पर बार-बार यौन शोषण, उत्पीड़न और शारीरिक हिंसा के आरोप लगाए। याचिका के मुताबिक, शोषण तब शुरू हुआ जब वह मुश्किल से दस साल की थी और करीब पांच साल तक चलता रहा। लड़की का कहना था कि जब भी उसने विरोध किया तो पिता उसकी मां को बुरी तरह पीटते, जिससे वह डरकर चुप रही।
यह पूरी घटना जून 2021 में तब सामने आई जब एक काउंसलिंग सत्र के दौरान वह रो पड़ी और पहली बार सारी बात बताई। इसके आधार पर, पुलिस ने आईपीसी की कई धाराओं और पॉक्सो एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज की। राजीव बब्बर को 7 जून 2021 को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन नौ दिन बाद ही उन्हें ज़मानत मिल गई थी - जिसे अब हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है।
अदालत की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति कृष्णा ने कहा कि निचली अदालत ने बच्ची के मानसिक आघात और उसकी असहायता को पूरी तरह नजरअंदाज किया और इसे सिर्फ माता-पिता के आपसी वैवाहिक विवाद का मामला मान लिया।
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पीठ ने कहा,
"इससे ज़्यादा गंभीर कुछ नहीं हो सकता कि एक बच्ची को उसका खुद का पिता यौन शोषण का शिकार बनाए… केवल वैवाहिक कलह का नतीजा कहकर इस अपराध की गंभीरता को अनदेखा नहीं किया जा सकता," आदेश में दर्ज है।
अदालत ने बताया कि जब्त मोबाइल फोन की फॉरेंसिक रिपोर्ट में अश्लील वीडियो पाए गए, जो लड़की के इस आरोप को मजबूती देते हैं कि पिता उसे पोर्न देखने पर मजबूर करते थे। अदालत ने इस पर भी चिंता जताई कि आरोपी के एक रिश्तेदार, जो दिल्ली पुलिस में वरिष्ठ पद पर हैं, ने संभवतः जमानत दिलाने में दबाव डाला।
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न्यायमूर्ति कृष्णा ने कहा कि जमानत उस समय दी गई जब जांच अभी पूरी भी नहीं हुई थी। निचली अदालत का यह तर्क कि परिवार अब अलग रह रहा है इसलिए डर की कोई बात नहीं, पूरी तरह गलत बताया गया। उन्होंने कहा कि पिता से उपजा भय केवल दूरी से खत्म नहीं हो जाता।
फैसला
हाईकोर्ट ने माना कि ट्रायल कोर्ट ने आरोपों की गंभीरता, पीड़िता की नाजुक स्थिति और सबूतों से छेड़छाड़ की आशंका जैसे अहम पहलुओं को पूरी तरह अनदेखा किया।
"एफआईआर दर्ज होने के सिर्फ नौ दिन के भीतर इतनी गंभीर धाराओं में जमानत देना, जबकि जांच जारी थी, पूरी तरह अनुचित था," न्यायमूर्ति कृष्णा ने कहा।
इसी के साथ 15 जून 2021 की जमानत आदेश को रद्द कर दिया गया। अदालत ने राजीव बब्बर को सात दिन के भीतर निचली अदालत में आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया और उनकी जमानत व जमानती बांड भी रद्द कर दिए।
इस फैसले के साथ नाबालिग की ओर से दाखिल याचिका स्वीकार कर ली गई, और अब मामला दोबारा ट्रायल पर केंद्रित हो गया है।
केस का शीर्षक:- डी.ए. (नाबालिग) अपनी माँ और प्राकृतिक अभिभावक के माध्यम से श्रीमती रूपी बब्बर बनाम राज्य (दिल्ली सरकार) और अन्य।
केस संख्या: W.P. (CRL) 1248/2021 & CRL.M.A. 14372/2021