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दिल्ली हाईकोर्ट ने 22 सप्ताह की गर्भावस्था समाप्त करने की अनुमति दी, कहा प्रजनन स्वतंत्रता और मानसिक स्वास्थ्य सर्वोपरि

Shivam Yadav

XX बनाम दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार एवं अन्य - दिल्ली हाईकोर्ट ने 30 वर्षीय महिला को 22 सप्ताह की गर्भावस्था समाप्त करने की अनुमति दी, कहा मानसिक स्वास्थ्य और प्रजनन अधिकार सर्वोपरि।

दिल्ली हाईकोर्ट ने 22 सप्ताह की गर्भावस्था समाप्त करने की अनुमति दी, कहा प्रजनन स्वतंत्रता और मानसिक स्वास्थ्य सर्वोपरि

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को एक 30 वर्षीय अविवाहित महिला को अपनी 22 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था समाप्त करने की अनुमति दी। अदालत ने कहा कि गर्भ जारी रखने से उसकी शारीरिक और मानसिक सेहत पर गंभीर असर पड़ेगा। यह मामला W.P.(CRL) 2949/2025, XX बनाम Govt. of NCT of Delhi and Anr शीर्षक के तहत जस्टिस रविंदर दुडेज़ा की पीठ ने सुना। याचिकाकर्ता ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत तत्काल मेडिकल टर्मिनेशन की मांग की थी।

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पृष्ठभूमि

याचिका के अनुसार, महिला लगभग दो वर्षों तक अमन सिंह के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रही। आरोप है कि सिंह ने बार- बार विवाह का झूठा आश्वासन देकर शारीरिक संबंध बनाए। वर्ष 2024 के अंत में वह पहली बार गर्भवती हुई और उसे गर्भपात के लिए मजबूर किया गया। जून 2025 में दोबारा गर्भवती होने पर जब उसने गर्भपात से इनकार किया तो उसके साथ मारपीट की गई और बाद में उसे छोड़ दिया गया। इसके बाद महिला ने सरिता विहार थाने में भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज कराई।

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उसके वकीलों का तर्क था कि गर्भ जारी रखने से न केवल उसे गंभीर मानसिक आघात होगा बल्कि सामाजिक कलंक का भी सामना करना पड़ेगा। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का हवाला दिया, जिनमें कहा गया है कि प्रजनन की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा है।

अदालत की टिप्पणियाँ

अदालत ने एम्स की मेडिकल रिपोर्ट का अवलोकन किया, जिसमें दो वरिष्ठ चिकित्सकों ने याचिकाकर्ता की जांच की थी। दोनों डॉक्टरों ने पुष्टि की कि वह गर्भपात के लिए चिकित्सकीय रूप से फिट है और इसमें कोई गंभीर जोखिम नहीं है।

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जस्टिस दुडेज़ा ने Suchita Srivastava v. Chandigarh Administration (2009), X v. Principal Secretary, Health & Family Welfare Deptt. (2022) और XYZ v. State of Gujarat (2023) जैसे फैसलों का उल्लेख किया और कहा कि हर महिला, चाहे विवाहित हो या अविवाहित, अपने शरीर की स्वतंत्रता और प्रजनन अधिकार की अधिकारी है।

पीठ ने टिप्पणी की, ''पीड़िता की पीड़ा को और नहीं बढ़ाया जा सकता यदि उसे गर्भ जारी रखने के लिए मजबूर किया जाए। उसका निर्णय सर्वोपरि है।''

न्यायाधीश ने यह भी स्पष्ट किया कि चिकित्सा गर्भपात अधिनियम, 1971 की धारा 3(2)(b) के तहत बलात्कार या यौन शोषण के मामलों में 24 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति है। कानून के अनुसार, ऐसे हालात में गर्भवती महिला की मानसिक सेहत को गंभीर क्षति मान लिया जाता है।

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फैसला

चिकित्सकीय राय और संवैधानिक सिद्धांतों को देखते हुए हाईकोर्ट ने एम्स, नई दिल्ली में तत्काल गर्भपात की अनुमति दी। साथ ही निर्देश दिया कि भ्रूण से संबंधित सभी नमूने सुरक्षित रखे जाएं ताकि चल रही आपराधिक जांच (एफआईआर संख्या 459/2025) में डीएनए परीक्षण के लिए इस्तेमाल हो सके।

इसके साथ ही यह रिट याचिका निपटाई गई। अदालत का यह फैसला महिलाओं को अपने शरीर और जीवन के बारे में निर्णय लेने के अधिकार की एक और सशक्त पुष्टि है।

केस शीर्षक : XX बनाम दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार एवं अन्य

केस संख्या : डब्ल्यू.पी.(सीआरएल) 2949/2025

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