दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को उस दंपति की अपील खारिज कर दी जिसे एक नाबालिग बच्ची के साथ लगातार मारपीट और यौन शोषण का दोषी ठहराया गया था। जस्टिस स्वराणा कांत शर्मा की बेंच ने ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई सज़ाओं को सही ठहराया और साफ कहा कि आरोपियों को किसी भी तरह की राहत नहीं दी जा सकती।
पृष्ठभूमि
यह मामला अगस्त 2021 में सामने आया था जब पीसीआर कॉल के बाद पुलिस ने छह साल की बच्ची को गंभीर जलने के ज़ख्मों के साथ पाया। डीडीयू अस्पताल में मेडिकल जांच के दौरान बच्ची ने खुलासा किया कि उसके पिता एच उसे गर्म चिमटे से मारते थे, पंखे से लटकाते थे और यौन शोषण करते थे। माँ आर पर आरोप था कि वह उसे पीटती, लात मारती और भूखा रखती थी।
Read also:- आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने रियलमी को विरोध के बीच स्टॉक निकालने के लिए पुलिस सुरक्षा देने का आदेश दिया
बाद में मजिस्ट्रेट के सामने धारा 164 सीआरपीसी के तहत दिए बयान और कोर्ट में गवाही ने ये तस्वीर और साफ कर दी। ट्रायल कोर्ट ने आर और एच को जेजे एक्ट की धारा 75 (बच्चे पर क्रूरता) और आईपीसी की धारा 323 (जानबूझकर चोट पहुँचाना) में दोषी माना। इसके अलावा, एच को पोक्सो एक्ट की धारा 6 (गंभीर यौन शोषण) और आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) में दोषी ठहराया।
कोर्ट की टिप्पणियाँ
अपील में बचाव पक्ष ने कहा कि बच्ची की गवाही "सिखाई-पढ़ाई हुई" है और एक एनजीओ से दुश्मनी की वजह से झूठे आरोप लगे हैं। उन्होंने बयानों में विरोधाभास और मेडिकल रिपोर्ट की कमियों का भी हवाला दिया। साथ ही यह भी कहा गया कि बच्ची ने असल में अपने जैविक पिता का नाम लिया था।
लेकिन हाईकोर्ट ने इन दलीलों को नकारते हुए कहा-
"इतनी छोटी बच्ची इतनी बारीकी से गवाही नहीं दे सकती अगर उसे केवल सिखाया गया होता।" जज ने यह भी कहा कि बच्ची की गवाही और मेडिकल रिपोर्ट में दर्ज नौ चोटों के बीच स्पष्ट मेल है।
जैविक पिता का नाम लेने के मुद्दे पर कोर्ट ने स्पष्ट किया:
"यह बिल्कुल संभव है कि उसने अपने दत्तक पिता के लिए गलती से जैविक पिता का नाम लिया हो। बाद के सभी बयानों में उसकी बातें बिल्कुल साफ और एक जैसी रहीं।"
Read also:- सुप्रीम कोर्ट ने वोडाफोन की नई AGR बकाया याचिका पर उठाए सवाल, अगली सुनवाई अगले हफ्ते तय
जस्टिस शर्मा ने जांच एजेंसियों पर भी गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने टिप्पणी की—
"ना पुलिस और ना ही ट्रायल कोर्ट ने बच्ची के असली माता-पिता को तलाशने की कोशिश की और न ही गोद लेने की वैधता पर कोई जांच हुई। यह गंभीर चूक है और इस बात की आशंका छोड़ जाती है कि बच्ची कहीं तस्करी का शिकार तो नहीं हुई।"
फैसला
सभी सबूतों पर विचार करने के बाद हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का फैसला बरकरार रखा। सज़ा वही रहेगी-धारा 323 आईपीसी में एक साल की कड़ी कैद, जेजे एक्ट की धारा 75 में दो साल की कड़ी कैद, और एच को पोक्सो एक्ट की धारा 6 में 20 साल की कड़ी कैद।
"दोषसिद्धि और सज़ा पूरी तरह सही है। अपीलें खारिज की जाती हैं," जस्टिस शर्मा ने आदेश दिया।
केस का शीर्षक:- आर बनाम एनसीटी दिल्ली राज्य एवं अन्य