भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बलात्कार मुकदमे में देरी पर कड़ा रुख अपनाते हुए निचली अदालतों को आड़े हाथ लिया। पीड़िता की जिरह को महीनों तक टालने पर कड़ी नाराज़गी जताते हुए न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने निर्देश दिया कि अब मुकदमा बिना किसी स्थगन के आगे बढ़े, यह कहते हुए कि न्याय में देरी, न्याय से इनकार के बराबर है।
पृष्ठभूमि
यह मामला तब सामने आया जब केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने आरोपी मीर उस्मान उर्फ़ आरा को दी गई ज़मानत को चुनौती दी। आरोपी पहले ही तीन साल से अधिक समय तक हिरासत में रह चुका था, जिसके बाद कोलकाता हाई कोर्ट ने सितंबर 2024 में उसे ज़मानत दे दी। पिछले एक साल से वह बाहर है, जबकि मुकदमे में मुश्किल से कोई प्रगति हुई है।
सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत रद्द करने की मांग की, यह तर्क देते हुए कि लंबे समय तक सुनवाई और स्थगन से आरोपी को गवाहों को प्रभावित करने का मौका मिल रहा है। लेकिन सर्वोच्च अदालत ने ज़मानत में दखल देने से इनकार करते हुए मुकदमे को तेज़ करने पर ध्यान केंद्रित किया।
अदालत की टिप्पणियाँ
बहस के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अर्चना पाठक डेव ने अदालत को बताया कि अभियोजन पक्ष अभी भी लगभग 30 गवाहों को पेश करने का इरादा रखता है। पीठ ने इस पर असंतोष जताते हुए कहा,
"हम यह समझने में असमर्थ हैं कि बलात्कार जैसे मामले में लोक अभियोजक 30 गवाहों को क्यों पेश करना चाहता है।" न्यायाधीशों ने चेतावनी दी कि अनावश्यक गवाहों की संख्या बढ़ाने से मुकदमे का सार कमजोर होता है।
न्यायालय पीड़िता की जिरह को चार महीने तक स्थगित करने के ट्रायल कोर्ट के फैसले से विशेष रूप से चिंतित था। पीठ ने कहा,
"जब पीड़िता खुद गवाही के लिए मौजूद है तो उसकी अगली जिरह को इतने लंबे समय तक क्यों टाला गया? इस तरह की देरी से आरोपी को गवाहों को प्रभावित करने का मौका मिल सकता है। यह गंभीर चिंता का विषय है।"
पश्चिम बंगाल के पूर्व मेदिनीपुर की निचली अदालत ने बाद में बताया कि स्थगन की वजह पीड़िता की अचानक तबीयत बिगड़ना था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एक बार गवाही शुरू होने के बाद सुनवाई लगातार दिन-प्रतिदिन चलनी चाहिए।
फैसले में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 309 का विस्तार से उल्लेख किया गया, जो गवाहों की गवाही शुरू होने के बाद लगातार सुनवाई का आदेश देती है। अदालत ने पहले के फैसलों का हवाला देते हुए कहा,
"यदि कोई गवाह अदालत में मौजूद है तो उसकी उसी दिन गवाही होनी चाहिए। मामूली कारणों पर स्थगन न्यायपूर्ण सुनवाई का अपमान है।"
न्यायाधीशों ने यह भी याद दिलाया कि पहले भी शीर्ष अदालत कई बार चेतावनी दे चुकी है कि स्थगन की आदत मुकदमे को मज़ाक बना देती है।
निर्णय
आखिरकार, सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी की ज़मानत रद्द करने से इनकार कर दिया, लेकिन सख्त समयसीमा तय की। ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया गया कि पीड़िता की जिरह 24 अक्टूबर 2025 को, पूजा अवकाश के तुरंत बाद पूरी की जाए। इसके बाद सभी शेष गवाहों की गवाही बिना किसी रुकावट के दर्ज की जाए। अदालत ने साफ़ कहा कि 31 दिसंबर 2025 तक फैसला सुनाया जाना चाहिए।
आदेश में कहा गया,
"मुकदमे को शीघ्रता से आगे बढ़ाया जाए और केवल महत्वपूर्ण गवाहों की ही गवाही कराई जाए। रजिस्ट्री इस आदेश की प्रति सभी हाई कोर्ट को भेजे ताकि पूरे देश में ऐसी प्रथाओं पर रोक लगे।"
इसके साथ ही याचिका का निपटारा कर दिया गया। आरोपी ज़मानत पर रहेगा लेकिन उस पर सख्त शर्तें लागू रहेंगी और ट्रायल कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट की करीबी निगरानी में मुकदमे को समय पर पूरा करना होगा।
केस का शीर्षक: केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो बनाम मीर उस्मान @ आरा @ मीर उस्मान अली
केस संख्या: विशेष अपील अनुमति याचिका (आपराधिक अपील) संख्या 969/2025