नई दिल्ली, नवंबर: सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को माहौल कुछ गर्म दिखाई दिया, जब कुकी ऑर्गनाइज़ेशन फॉर ह्यूमन राइट्स ट्रस्ट ने आरोप लगाया कि मणिपुर पुलिस ने 48-मिनट की पूरी ऑडियो रिकॉर्डिंग भेजने के बजाय केवल “कट-आउट” छोटे स्निपेट-कुछ सेकंड की लंबाई वाले-नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी (NFSU) को भेजे। संगठन ने कहा कि इस तरह का चयनित प्रेषण “जांच की निष्पक्षता को गंभीर रूप से प्रभावित करता है,” खासकर उस मामले में जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह की 2023 की जातीय हिंसा में कथित भूमिका की जांच हो रही है।
ये आरोप W.P.(C) No. 702/2024 में दायर एक नए हलफनामे के माध्यम से आए हैं, जिसमें कोर्ट-मॉनिटर स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) की मांग की गई है।
Background (पृष्ठभूमि)
विवाद तब शुरू हुआ जब अगस्त 2024 में 48-मिनट की एक ऑडियो बातचीत सामने आई, जो कथित तौर पर मैतेई-कुकी संघर्ष में राज्य मशीनरी की भागीदारी की ओर इशारा करती थी। याचिकाकर्ता का कहना है कि उसने जनवरी 2025 में इस रिकॉर्डिंग को पूरा-का-पूरा कोर्ट में जमा किया था ताकि इसे फॉरेंसिक विश्लेषण के लिए भेजा जा सके।
लेकिन, संगठन के अध्यक्ष हूलीम शोक्हापा मेटे द्वारा शपथ लिए गए हलफनामे के अनुसार, मणिपुर पुलिस की साइबर क्राइम यूनिट ने NFSU को केवल चार क्लिप-30 सेकंड से लेकर दो मिनट से भी कम की लंबाई वाली-भेजीं।
हलफनामे में लिखा है, “याचिकाकर्ता को कभी यह नहीं बताया गया कि केवल टुकड़े भेजे गए हैं,” और इस बात का संकेत मिलता है कि शायद कोई गंभीर चूक हुई है।
इसके परिणामस्वरूप NFSU ने कहा कि ऑडियो “टेम्पर्ड” और “प्रोसेस्ड” है और उचित वॉइस तुलना के लिए उपयुक्त नहीं है-यहां तक कि जब पूर्व मुख्यमंत्री की आवाज़ वाले मूल प्रसारण रिकॉर्ड भी नियंत्रण नमूने के रूप में भेजे गए थे।
इसके विपरीत, एक निजी प्रयोगशाला 'ट्रुथ लैब्स' ने पहले दो पेन ड्राइव-जिनमें पूरी रिकॉर्डिंग और मुख्यमंत्री के भाषण थे-की जांच की थी और 93% वॉइस मैच का निष्कर्ष निकाला था।
Court’s Observations (कोर्ट की टिप्पणियाँ)
हालाँकि बेंच ने कोई अंतिम राय व्यक्त नहीं की, लेकिन न्यायाधीश विरोधाभासी फॉरेंसिक रिपोर्टों से स्पष्ट रूप से चिंतित दिखे। एक जज ने अनौपचारिक रूप से टिप्पणी की, “अगर अधूरा रिकॉर्ड भेजा गया है, तो पूरी रिपोर्ट कैसे आएगी?”
याचिकाकर्ता ने भी इन अंतरों पर गहरी आपत्ति जताई, यह कहते हुए कि NFSU फ़ाइल की निरंतरता की पुष्टि नहीं कर सका क्योंकि उसे कभी पूरी फ़ाइल मिली ही नहीं।
एक वकील ने सुनवाई के बाद बताया, “बेंच ने कहा, ‘ऐसे अंतर हमें सिर्फ टेम्परिंग रिपोर्ट पर निर्भर रहने में मुश्किल पैदा करते हैं।’”
हलफनामे ने यह भी बताया कि जस्टिस लांबा कमीशन ने भी कभी पूरा ऑडियो प्राप्त किया था, लेकिन वक्ता की पहचान सुरक्षित रखने के लिए छोटा संस्करण ट्रुथ लैब्स को भेजा। याचिकाकर्ता का कहना है कि राज्य एजेंसियों द्वारा बार-बार अधूरी फाइलें भेजना “संयोग नहीं लगता।”
Decision (निर्णय)
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश सुरक्षित रखे लेकिन यह स्वीकार किया कि अब यह मुद्दा कोर्ट के तकनीकी मूल्यांकन से आगे बढ़ चुका है। हलफनामे में कहा गया है, “प्रामाणिकता का प्रश्न कोर्ट नहीं, बल्कि जांच एजेंसियों को तय करना चाहिए।”
याचिकाकर्ता का आग्रह है कि केवल कोर्ट-मॉनिटर SIT ही यह तय कर सकती है कि रिकॉर्डिंग किसी आपराधिक साज़िश की ओर इशारा करती है या फिर यह पूरा विवाद सरकारी एजेंसियों की चूक का परिणाम है।
बेंच ने दिन की कार्यवाही इस टिप्पणी के साथ समाप्त की कि अगला आदेश पारित करने से पहले मामले की “सावधानी से समीक्षा की जाएगी।”
सुनवाई यहीं समाप्त हुई, कोर्ट ने संकेत दिया कि अगला आदेश सिर्फ इस बात पर केंद्रित होगा कि क्या इस स्तर पर SIT जांच आवश्यक है।
Case Title: Kuki Organization for Human Rights Trust v. Union of India
Case No.: W.P.(C) No. 702/2024
Case Type: Writ Petition (Civil)
Decision Date: Pending – Latest hearing in November 2025