सोमवार की सुनवाई में एक नाटकीय मोड़ आया, जब सुप्रीम कोर्ट ने राज कुमार उर्फ भीमा की सज़ा को रद्द कर दिया-एक ऐसा व्यक्ति जिसने 2008 में हुए हत्या मामले में लगभग 15 साल 6 महीने जेल में बिता दिए थे। पीठ ने जांच को कठघरे में खड़ा करते हुए कई चिंताजनक चूकों को नोट किया। एक जज ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यह मामला “न्याय की गंभीर विफलता” जैसा लगता है। सुनवाई के दौरान कई पलों में कोर्ट कक्ष में तनाव साफ महसूस हो रहा था, क्योंकि पीठ उन सबूतों की दोबारा जांच कर रही थी जिन पर सालों तक सवाल नहीं उठे थे।
पृष्ठभूमि
मामला 2–3 नवंबर 2008 की रात का है, जब पाँच हमलावरों ने कथित तौर पर सुखदेव विहार स्थित गुलाटी दंपत्ति के घर में घुसकर हमला किया। इस घटना में मदन मोहन गुलाटी की मौत हो गई थी और उनकी पत्नी इंद्र प्रभा गुलाटी गंभीर रूप से घायल हुई थीं।
कुछ सप्ताह बाद पुलिस ने राज कुमार को गिरफ़्तार किया, यह दावा करते हुए कि वह घायल महिला द्वारा दिए गए विवरण से मेल खाता है।
मुकदमा वर्षों तक चलता रहा। ट्रायल कोर्ट ने बाकी सभी सह-आरोपियों को बरी कर दिया, लेकिन राज कुमार को केवल धारा 302 (हत्या) के तहत दोषी ठहराया, और वह भी मुख्य रूप से 2017 में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये घायल महिला द्वारा की गई पहचान के आधार पर-जब घटना को साढ़े आठ साल बीत चुके थे।
दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इस सजा को कायम रखा, और मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा।
कोर्ट के अवलोकन
लगभग 17 साल बाद जब सुप्रीम कोर्ट ने यह अपील सुनी, तो उसने साफ कहा कि पूरी अभियोजन कहानी तीन स्तंभों पर टिकी थी-घायल महिला की पहचान, टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड (TIP) में कथित असहयोग, और आरोपी से की गई बरामदगियाँ।
लेकिन पीठ के अनुसार ये तीनों स्तंभ “कमज़ोर” साबित हुए।
गंभीर रूप से घायल हो चुकी और बुज़ुर्ग गवाह-जो उस समय 73 वर्ष की थीं और जिनकी दूर की दृष्टि कमज़ोर थी-ने विदेश से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये गवाही दी। वह भी घटना के सालों बाद, बिना चश्मा पहने।
“पीठ ने कहा, ‘साढ़े आठ साल बाद, वह भी वर्चुअली की गई पहचान, भरोसेमंद नहीं मानी जा सकती।’”
TIP को लेकर कोर्ट ने पाया कि रिकॉर्ड में यह साबित ही नहीं होता कि गवाह कभी परेड में शामिल हुई थीं। और पुलिस यह दिखाने में भी विफल रही कि आरोपी का चेहरा गिरफ्तारी के बाद पूरी तरह ढका रखा गया था। इससे यह आशंका और गहरी हुई कि गवाह ने उसे पहले ही देख लिया होगा।
कोर्ट ने इसे “गंभीर प्रक्रिया संबंधी चूक” करार देते हुए एक बड़ा निर्देश भी जारी किया: यदि किसी गवाह की गवाही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से रिकॉर्ड की जा रही हो, तो अदालत को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसके पुराने बयान इलेक्ट्रॉनिक रूप में उसे भेजें जाएँ, ताकि जिरह निष्पक्ष हो सके।
बरामदगी को लेकर भी कोर्ट ने कहा कि जो खून लगे कपड़े आरोपी से बरामद हुए थे, उनमें पाया गया रक्त समूह मृतक से मेल ही नहीं खाता। कथित हथियार की पहचान भी गवाह से नहीं कराई गई। और वह बेटा, जिसने चोरी हुए सामान को TIP में पहचाना था, ट्रायल में गवाही देने ही नहीं आया।
कोर्ट ने कहा कि “इन कमियों को हल्के में नहीं लिया जा सकता,” और जब पहचान तथा बरामदगियाँ दोनों अविश्वसनीय हों, तो अभियोजन कहानी टिक ही नहीं सकती।
निर्णय
पूरा रिकॉर्ड देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि सजा टिक नहीं सकती।
कोर्ट ने कहा, “चुनौती दिए गए दोनों फैसले न्यायिक जांच की कसौटी पर खरे नहीं उतरते।”
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट-दोनों के निर्णय रद्द करते हुए राज कुमार को सभी आरोपों से बरी कर दिया।
उसे तत्काल रिहा करने का आदेश दिया गया, क्योंकि वह पहले ही 15 साल से अधिक जेल में बिताकर चुका है।
Case Title: Raj Kumar @ Bheema vs. State of NCT of Delhi (2025 Supreme Court – Acquittal in 2008 Sukhdev Vihar Murder Case)
Case Type: Criminal Appeal (arising out of SLP (Crl.) No. 697 of 2024)
Court: Supreme Court of India
Appellant: Raj Kumar @ Bheema
Respondent: State of NCT of Delhi
Judgment Date: 17 November 2025