सर्वोच्च न्यायालय ने यूपीएससी से दिव्यांग अभ्यर्थियों के लिए स्क्रीन रीडर सुविधा और लचीले लेखन नियम सुनिश्चित करने का आग्रह किया, जिससे भारत में समावेशी सिविल सेवा परीक्षाओं को मजबूती मिलेगी।

By Shivam Y. • December 4, 2025

सुप्रीम कोर्ट ने यूपीएससी को निर्देश दिया कि वह दिव्यांग उम्मीदवारों के लिए स्क्रीन रीडर एक्सेस और लचीले स्क्राइब नियम सुनिश्चित करे, जिससे सिविल सेवा परीक्षा में समावेशिता मजबूत हो। - मिशन एक्सेसिबिलिटी बनाम भारत संघ एवं अन्य।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 3 दिसंबर 2025 को दिए गए एक भावपूर्ण निर्णय में स्पष्ट कहा कि समान अधिकार कोई अहसान नहीं, बल्कि संविधान द्वारा दी गई गारंटी हैं। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने ‘मिशन एक्सेसिबिलिटी’ द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की, जिसमें दृष्टिबाधित अभ्यर्थियों को UPSC की सिविल सेवा परीक्षा में आने वाली व्यावहारिक कठिनाइयों को उठाया गया था।

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यह सुनवाई, इस मुद्दे की तरह ही, सिर्फ़ परीक्षा के नियमों के बारे में नहीं थी। यह गरिमा के बारे में थी।

पृष्ठभूमि

दिव्यांगता अधिकारों के लिए कार्य करने वाले संगठन ने मांग की थी कि जिन उम्मीदवारों को स्क्राइब की आवश्यकता है, उनसे आवेदन जमा करते समय ही स्क्राइब का विवरण माँगना अव्यावहारिक है। इसके बजाय उन्हें परीक्षा की तारीख के करीब यह विवरण देने की अनुमति मिलनी चाहिए। साथ ही, दृष्टिबाधित उम्मीदवारों को स्क्रीन रीडर सॉफ़्टवेयर वाले लैपटॉप उपयोग करने तथा प्रश्नपत्र डिजिटल सुलभ प्रारूप में उपलब्ध कराने की मांग भी की गई।

अदालत ने माना कि कई महीने पहले स्क्राइब तय करना मजबूरी जैसा है—बीमारी, आपात स्थिति और उपलब्धता बदल सकती है।

मई में हुई पिछली सुनवाई में कोर्ट ने UPSC को लचीलापन अपनाने तथा सहायक तकनीक पर विचार करने को कहा था, लेकिन UPSC ने प्रारंभ में ढाँचे की कमी का हवाला दिया।

अदालत के अवलोकन

न्यायमूर्ति मेहता ने शुरुआत में ही मूल भाव स्पष्ट करते हुए कहा: “एक न्यायपूर्ण और समावेशी समाज का माप केवल उसकी स्वतंत्रताओं से नहीं, बल्कि उन अवसरों से होता है जो वह अपने नागरिकों को देता है।”

अदालत ने सराहा कि UPSC संबंधित सरकारी एजेंसियों से सलाह के बाद अंततः सिद्धांततः स्क्रीन रीडर सॉफ़्टवेयर लागू करने पर सहमत हुआ है। लेकिन पीठ ने नाराज़गी भी जताई कि ना कोई स्पष्ट समयसीमा, ना कोई ब्लूप्रिंट।

कोर्ट ने दो-टूक कहा कि समावेशन सिर्फ काग़ज़ पर नहीं, भारतभर के परीक्षा केंद्रों में दिखना चाहिए।

मौलिक अधिकारों की याद दिलाते हुए पीठ ने कहा, “यह अधिकार दया का काम नहीं, बल्कि संविधान के वादे हैं।”

लेख में अनुच्छेद 14 और 21 - समानता और गरिमा - को इस निर्देश का आधार बताया गया है।

निर्णय

अधिक मानवीय भर्ती प्रणाली की ओर एक कदम बताते हुए, अदालत ने बाध्यकारी निर्देश जारी किए:

  1. स्क्राइब: UPSC को परीक्षा से कम से कम सात दिन पहले तक स्क्राइब बदलने की अनुमति देनी होगी और प्रत्येक आवेदन पर तीन कार्यदिवस में निर्णय देना होगा।
  2. स्क्रीन रीडर: UPSC को दो माह के भीतर विस्तृत अनुपालन हलफ़नामा दाखिल करना होगा, जिसमें समयसीमा, केंद्रों पर तकनीकी व्यवस्था और परीक्षण की जानकारी हो।
  3. सरकारी सहयोग: DoPT, NIEPVD और सामाजिक न्याय मंत्रालय को तकनीकी-प्रशासनिक सहयोग देना होगा।
  4. सुरक्षा + सुलभता साथ-साथ: तकनीकी बदलाव के बावजूद परीक्षा की विश्वसनीयता और गोपनीयता बनी रहनी चाहिए।

याचिका उपरोक्त निर्देशों के साथ निपटा दी गई, और फरवरी 2026 में अनुपालन की समीक्षा की जाएगी।

Case Title:- Mission Accessibility v. Union of India & Ors.

Case Number:- Writ Petition (Civil) No. 206 of 2025

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