एक ऐसे फैसले में, जो चुपचाप फायर इंश्योरेंस विवादों की समझ को बदल सकता है, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आईसीआईसीआई लोम्बार्ड के खिलाफ सीमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के वर्षों पुराने दावे को फिर से जीवित कर दिया। सुनवाई के दौरान यह साफ दिखा कि पीठ तकनीकी बहानों से ज्यादा फायर इंश्योरेंस पॉलिसी के मूल वादे पर ध्यान दे रही थी-जब वास्तव में आग लगती है, तो सुरक्षा मिलनी चाहिए।
पृष्ठभूमि
यह मामला लगभग दो दशक पुराना है। सरकारी कंपनी सीमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया ने छत्तीसगढ़ स्थित अपने मंधार सीमेंट फैक्ट्री के लिए स्टैंडर्ड फायर एंड स्पेशल पेरिल्स पॉलिसी ली थी। 1 नवंबर 2006 की तड़के कुछ शरारती तत्व कथित तौर पर तांबे की वाइंडिंग चोरी करने के लिए परिसर में घुसे। हालात बिगड़ गए। एक ट्रांसफॉर्मर में आग लग गई, लपटें फैल गईं और नुकसान करोड़ों में पहुंच गया।
कंपनी ने 2.2 करोड़ रुपये से अधिक का दावा किया। सर्वेयर रिपोर्ट का हवाला देते हुए आईसीआईसीआई लोम्बार्ड ने इसे खारिज कर दिया। बीमा कंपनी का कहना था कि “असल कारण” चोरी थी, जो पॉलिसी में कवर नहीं थी। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग (NCDRC) ने भी इसी तर्क को मानते हुए शिकायत खारिज कर दी, जिसके बाद सीमेंट कॉरपोरेशन सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
न्यायालय की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की अगुवाई वाली पीठ ने पॉलिसी की भाषा को शब्द-दर-शब्द परखा। अदालत ने नोट किया कि “आग” पॉलिसी में स्पष्ट रूप से सूचीबद्ध जोखिम है और इसके अपवाद भी अलग से तय हैं। चोरी या सेंधमारी उन अपवादों में शामिल नहीं है।
पीठ ने कहा, “नुकसान निस्संदेह आग के कारण हुआ,” और आगे जोड़ा कि एक बार आग से क्षति साबित हो जाए तो “आग किस वजह से लगी, यह अप्रासंगिक हो जाता है,” जब तक कि पॉलिसी में उसे साफ तौर पर बाहर न रखा गया हो।
न्यायाधीशों ने “प्रॉक्सिमेट कॉज” यानी निकटतम कारण की अवधारणा के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल पर भी सवाल उठाए। उन्होंने दो टूक कहा कि अदालतों को कारणों की अंतहीन श्रृंखला में नहीं उलझना चाहिए। आम लोग फायर इंश्योरेंस आग से हुए नुकसान से बचाव के लिए लेते हैं, यह बहस करने के लिए नहीं कि चिंगारी कैसे पैदा हुई।
खास बात यह रही कि सीमेंट कॉरपोरेशन पर खुद आग लगाने या किसी साजिश का कोई आरोप नहीं था। ऐसे मामलों में, अदालत ने कहा, अपवाद क्लॉज की सख्त व्याख्या होनी चाहिए और जहां संदेह हो, उसका लाभ बीमाधारक को मिलना चाहिए। आयोग ने, पीठ के मुताबिक, चोरी से जुड़े अपवाद को पॉलिसी की भाषा से कहीं आगे तक खींच दिया था।
निर्णय
अपील स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 4 जनवरी 2008 की बीमा कंपनी की दावा-खारिज करने वाली चिट्ठी और 2015 का NCDRC आदेश दोनों रद्द कर दिए। अब मामला फिर से उपभोक्ता आयोग को भेजा गया है, जो वास्तविक नुकसान का आकलन करेगा और नए सिरे से दावा तय करेगा। अदालत ने उम्मीद जताई कि यह प्रक्रिया छह महीने के भीतर पूरी की जाएगी।
Case Title: Cement Corporation of India vs. ICICI Lombard General Insurance Company Limited
Case No.: Civil Appeal No. 2052 of 2016
Case Type: Civil Appeal (Insurance / Consumer Dispute)
Decision Date: 16 December 2025