तमिलनाडु से जुड़ा एक दशक पुराना बिजली टैरिफ विवाद मंगलवार को आखिरकार खत्म हो गया। सुप्रीम कोर्ट ने Penna Electricity Limited के पक्ष में फैसला सुनाते हुए TANGEDCO की उस चुनौती को खारिज कर दिया, जिसमें पूर्ण कमीशनिंग से पहले की बिजली आपूर्ति पर भुगतान को लेकर सवाल उठाए गए थे। दिल्ली में बैठी पीठ ने साफ कहा कि ग्रिड से सिंक्रोनाइज़ होने के बाद लगातार दी गई बिजली को सिर्फ कागज़ी औपचारिकताओं के कारण “इन्फर्म पावर” नहीं कहा जा सकता।
पृष्ठभूमि
यह विवाद वर्ष 2005–06 का है, जब Penna Electricity ने अपने गैस टर्बाइन से ओपन साइकिल मोड में बिजली पैदा कर तमिलनाडु जनरेशन एंड डिस्ट्रीब्यूशन कॉरपोरेशन (TANGEDCO) को सप्लाई की। 29 अक्टूबर 2005 से बिजली लगातार दी जा रही थी, लेकिन TANGEDCO ने इसे “इन्फर्म पावर” मानते हुए केवल ईंधन लागत का भुगतान किया और फिक्स्ड चार्ज देने से इनकार कर दिया।
Penna ने इसका विरोध किया और कहा कि जैसे ही टर्बाइन ग्रिड से सिंक्रोनाइज़ हुआ और लगातार बिजली दी जाने लगी, वह “फर्म पावर” की श्रेणी में आ जाती है। तमिलनाडु बिजली नियामक आयोग (TNERC) ने इस दलील से सहमति जताई, और बाद में अपीलीय न्यायाधिकरण (APTEL) ने भी इसी निष्कर्ष को बरकरार रखा। इसके बाद TANGEDCO सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और दलील दी कि पावर परचेज एग्रीमेंट (PPA) के अनुसार वाणिज्यिक संचालन 1 जुलाई 2006 से ही माना जाएगा।
कोर्ट की टिप्पणियां
जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की अगुवाई वाली पीठ ने इस बात पर विस्तार से विचार किया कि बिजली नियमों के तहत “वाणिज्यिक संचालन” का वास्तविक अर्थ क्या है। कोर्ट ने कहा कि बिजली अधिनियम, 2003 के बाद टैरिफ और भुगतान की शर्तें सिर्फ निजी समझौते का मामला नहीं रह जातीं, बल्कि उन्हें नियामकीय नियमों के अनुरूप होना जरूरी है।
पीठ ने कहा, “प्रासंगिक अवधि के दौरान दी गई बिजली निरंतर थी और फर्म आधार पर थी,” और यह भी जोड़ा कि नियमों में वाणिज्यिक संचालन को यूनिट-आधारित रूप से देखा जाता है, न कि केवल पूरे प्रोजेक्ट के स्तर पर, चूंकि गैस टर्बाइन ग्रिड से सिंक्रोनाइज़ हो चुका था और लगभग 30 मेगावाट पर स्थिर रूप से चल रहा था, इसलिए उस बिजली को इन्फर्म पावर नहीं माना जा सकता।
कोर्ट ने 2005 में हुए पत्राचार के आधार पर TANGEDCO की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि Penna ने कम भुगतान स्वीकार कर लिया था। न्यायालय के अनुसार, वे पत्र केवल उस समय की अनिश्चितता दर्शाते थे, न कि अधिकारों से स्थायी रूप से हाथ खींच लेना।
महत्वपूर्ण बात यह रही कि पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में फिक्स्ड चार्ज से इनकार करना अनुचित होगा। फिक्स्ड चार्ज का उद्देश्य पूंजी और संचालन लागत की वसूली होता है, और लगातार बिजली आपूर्ति के बावजूद इन्हें न देना “अन्यायपूर्ण और कानून के विपरीत” होगा।
फैसला
अंततः सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि TNERC और APTEL के आदेशों में हस्तक्षेप करने का कोई ठोस कारण नहीं है। कोर्ट ने TANGEDCO की अपील खारिज करते हुए यह पुष्टि की कि 29 अक्टूबर 2005 से 30 जून 2006 के बीच दी गई बिजली के लिए Penna Electricity फिक्स्ड चार्ज की हकदार है।
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि यदि कोई बकाया राशि शेष है तो TANGEDCO उसे 12 सप्ताह के भीतर अदा करे। न्यायालय ने यह भी दर्ज किया कि अंतरिम आदेशों के तहत पहले ही ₹50 करोड़ का भुगतान किया जा चुका है। इसके साथ ही, यह लंबा चला आ रहा विवाद आखिरकार समाप्त हो गया।
Case Title: Tamil Nadu Generation and Distribution Corporation Ltd. vs. M/s Penna Electricity Limited
Case No.: Civil Appeal No. 5700 of 2014
Case Type: Civil Appeal (Electricity Tariff / Power Purchase Agreement Dispute)
Decision Date: 16 December 2025