मंगलवार सुबह सुप्रीम कोर्ट की एक व्यस्त बेंच में एक साफ संदेश सुनाई दिया: मुकदमेबाज़ी को सिर्फ बेहतर नतीजे की उम्मीद में हमेशा नहीं खींचा जा सकता। न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने Pilibhit, उत्तर प्रदेश में छोटे से भूमि टुकड़े पर सु्वेज सिंह और राम नरेश के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवाद को सुना, जहाँ 2001 में खारिज हुई मानचित्र सुधार याचिका लगभग दो दशक बाद फिर से उठाने की कोशिश की गई।
अदालत ने कहा कि इस अपील में “मुकदमों की बढ़ोतरी को रोकने” के लिए हस्तक्षेप आवश्यक है।
पृष्ठभूमि
यह विवाद पुराने एकीकरण (consolidation) रिकॉर्ड से जुड़ा है। स्वामित्व और कब्जा पहले ही तय हो चुका था:
- सु्वेज सिंह के पास प्लॉट नंबर 22/1 और 22/2
- निजी प्रतिवादी (राम नरेश द्वारा नेतृत्व) के पास प्लॉट 22/3, जिसे उन्होंने संजय और भरत जैन से खरीदा था
1997–98 में आयोग और नायब तहसीलदार की रिपोर्ट ने इस स्थिति की पुष्टि कर दी थी। कलेक्टर ने मई 1998 में निजी पक्ष की मानचित्र बदलने की माँग ख़ारिज कर दी, और अतिरिक्त आयुक्त ने सितंबर 2001 में इसे कायम रखा। इस प्रकार मामला “अंतिम रूप से तय” हो गया।
लेकिन फिर 17 साल की चुप्पी…
2018 में प्रतिवादियों ने नए उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता के तहत फिर से आवेदन कर दिया यह उम्मीद करते हुए कि बदला कानून नया रास्ता खोलेगा। लेकिन कलेक्टर व आयुक्त दोनों ने इसे फिर खारिज कर दिया, कहते हुए कि यह वही लड़ाई है जिसे 2001 में खत्म किया जा चुका है।
अदालत की टिप्पणियाँ
इस मामले में मुख्य मुद्दा है उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 30, जो केवल वास्तविक त्रुटियों या चूक को ठीक करने की अनुमति देती है जैसे विरासत, बिक्री, एकीकरण आदि के कारण रिकॉर्ड में परिवर्तन।
लेकिन यहाँ ऐसी कोई त्रुटि नहीं मिली।
“उनका प्रयास खरीदे गए प्लॉट की लोकेशन बदलवाने का था… जो अधिक मूल्यवान हो सकती है,”
ऐसा पीठ ने कहा, और हाई कोर्ट के दृष्टिकोण को धारा 30 की “गलत व्याख्या” बताया।
अदालत ने चेताया कि एक बार निपटा मामला सिर्फ इसलिए फिर नहीं खुल सकता कि किसी को चौड़ी सड़क या बेहतर स्थान चाहिए।
Res Judicata (यानी बार-बार मामला न उठाना) यहाँ पूरी तरह लागू होता है।
पीठ ने उच्च न्यायालय के पुनर्विचार आदेश पर भी प्रश्न उठाया:
“अनावश्यक रूप से पुनर्विचार का आदेश… मुकदमों की नई श्रृंखला पैदा करता है, जिसे टाला जाना चाहिए।”
पुराना सिद्धांत कहता था जहाँ सुनवाई अधूरी लगे, वहाँ पुनर्विचार का आदेश दें।
लेकिन कोर्ट ने कहा कि आज की सोच मुकदमे कम करने की होनी चाहिए, ज़्यादा करने की नहीं।
अंतिम निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने सु्वेज सिंह की अपील स्वीकार करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट का पुनर्विचार आदेश रद्द कर दिया, और कई साल पहले खत्म हो जाना चाहिए था उस विवाद पर पूर्ण विराम लगा दिया।
Case Title: Suvaj Singh vs Ram Naresh and Others
Case Number:-SLP(C) No.1681 of 2024