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सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद केंद्र सरकार ने ‘गोल्डन आवर’ उपचार योजना को अधिसूचित करने पर सहमति दी

Shivam Y.

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बाद केंद्र सरकार ने सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए मोटर वाहन अधिनियम के तहत नकद रहित 'गोल्डन आवर' उपचार योजना को एक सप्ताह के भीतर लागू करने का आश्वासन दिया है।

सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद केंद्र सरकार ने ‘गोल्डन आवर’ उपचार योजना को अधिसूचित करने पर सहमति दी

28 अप्रैल 2025 को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए 'गोल्डन आवर' उपचार योजना लागू न करने पर केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई। इसके बाद सरकार ने कोर्ट को आश्वस्त किया कि यह योजना एक सप्ताह के भीतर लागू कर दी जाएगी।

“लोग सड़क हादसों में मर रहे हैं। आप बड़ी-बड़ी हाइवे बना रहे हैं लेकिन लोग वहीं मर रहे हैं क्योंकि कोई सुविधा नहीं है। गोल्डन आवर ट्रीटमेंट की कोई योजना नहीं है। इतने हाईवे बनाने का क्या फायदा?” — न्यायमूर्ति अभय एस. ओका

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ केंद्र द्वारा पूर्व आदेश का पालन न करने की समीक्षा कर रही थी। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) के सचिव वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश हुए और 8 जनवरी 2025 के आदेश के अनुपालन में विफल रहने पर माफी मांगी।

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कोर्ट ने याद दिलाया कि धारा 162(2) के तहत “गोल्डन आवर” के दौरान नकद रहित उपचार की योजना अनिवार्य है — दुर्घटना के बाद का पहला घंटा, जब शीघ्र इलाज से जान बचने की संभावना सबसे अधिक होती है। यह प्रावधान 1 अप्रैल 2022 से लागू है, लेकिन अब तक योजना शुरू नहीं की गई थी।

“पिछले 2 सालों से आप क्या कर रहे थे? ऐसे लाभकारी प्रावधान का क्या उपयोग? कितने लोग इलाज न मिलने से मर गए?” — न्यायमूर्ति ओका

सचिव ने बताया कि योजना का ड्राफ्ट तैयार है लेकिन जनरल इंश्योरेंस काउंसिल (GIC) की आपत्तियों के कारण अड़चन आई। GIC चाहती थी कि भुगतान जारी करने से पहले बीमा स्थिति की जांच हो और अंतिम भुगतान की जिम्मेदारी राज्य स्वास्थ्य एजेंसी (SHA) की बजाय उन्हें दी जाए। लेकिन केंद्र का मानना है कि SHA भुगतान के लिए ज्यादा उपयुक्त है।

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“अब अस्पताल को भुगतान करने वाली निर्णायक संस्था को लेकर थोड़ी समस्या है। इसे इस तरह हल किया जा सकता है कि कहा जाए कि SHA ही भुगतान करेगी।” — अमीकस क्यूरी वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल

न्यायमूर्ति ओका ने मंत्रालय की आलोचना करते हुए कहा कि उन्हें समय बढ़ाने के लिए कोर्ट से अनुमति लेनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि तकनीकी अड़चनें बाद में सुलझाई जा सकती हैं, लेकिन योजना की शुरुआत अब होनी चाहिए।

कोर्ट ने मोटर वाहन अधिनियम की धारा 164A के अमल न होने पर भी चिंता जताई। यह धारा पीड़ितों को अंतरिम राहत की योजना प्रदान करती है और 1 अप्रैल 2022 से तीन वर्षों के लिए प्रभाव में है, लेकिन अब तक इस पर भी कोई योजना नहीं बनी। कोर्ट ने निर्देश दिया कि यह योजना 28 अप्रैल 2025 से चार महीने के भीतर बनाई जाए।

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“इतना महत्वपूर्ण प्रावधान पिछले 3 वर्षों से अनुपालन से बाहर है। यह असफलता निंदनीय है।” — सुप्रीम कोर्ट

अंत में सचिव ने बताया कि योजना को कानूनी मंजूरी मिल चुकी है और केवल वैधानिक परीक्षण शेष है। आवश्यकता पड़ने पर योजना तुरंत अधिसूचित की जा सकती है। कोर्ट ने अगली सुनवाई 13 मई 2025 को निर्धारित की है।

मामला संख्या: WP (C) No. 295/2012

मामले का शीर्षक: एस. राजसीकरण बनाम भारत संघ एवं अन्य