भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में यूनियन ऑफ इंडिया बनाम सलीम खान और मोहम्मद ज़ैद मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। यह मामला गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत जमानत याचिकाओं से संबंधित था। अदालत ने कर्नाटक हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें सलीम खान (आरोपी संख्या 11) को जमानत दी गई थी, जबकि मोहम्मद ज़ैद (आरोपी संख्या 20) की जमानत अर्जी को खारिज कर दिया गया था।
मामला पृष्ठभूमि
यह मामला जनवरी 2020 में दर्ज एक प्राथमिकी (FIR) से शुरू हुआ था। बेंगलुरु के सुधंगुंटेपलया पुलिस स्टेशन ने आर्थिक अपराध शाखा से मिली जानकारी के आधार पर 17 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया था। आरोपियों में सलीम खान और मोहम्मद ज़ैद भी शामिल थे। आरोपों में आईपीसी की धारा 120-बी, आर्म्स एक्ट और यूएपीए की धाराएँ 18, 18-A, 18-B, 19, 20, 38 और 39 शामिल थीं।
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जांच बाद में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंपी गई, जिसने जुलाई 2020 में आरोपपत्र दाखिल किया। आरोप था कि सलीम खान का "अल-हिंद" नामक संगठन से संबंध था, जबकि मोहम्मद ज़ैद पर प्रतिबंधित आतंकी संगठनों से संबंध और "डार्क वेब" पर गतिविधियों में शामिल होने का आरोप था।
अप्रैल 2022 में कर्नाटक हाईकोर्ट ने सलीम खान को जमानत दे दी, लेकिन ज़ैद की जमानत याचिका खारिज कर दी। यूनियन ऑफ इंडिया ने सलीम खान की जमानत को चुनौती दी, वहीं ज़ैद ने अपनी जमानत अर्जी खारिज होने के खिलाफ अपील की।
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हाईकोर्ट ने कहा:
"अल-हिंद यूएपीए की अनुसूची में प्रतिबंधित संगठन नहीं है। इसलिए केवल उसकी बैठकों में शामिल होना किसी प्राथमिक अपराध के अंतर्गत नहीं आता।"
वहीं अदालत ने यह भी पाया कि ज़ैद के खिलाफ प्रतिबंधित संगठनों से जुड़ाव, डार्क वेब पर सक्रियता और एक अन्य यूएपीए मामले में संलिप्तता जैसे ठोस सबूत मौजूद हैं। इस आधार पर उसकी जमानत याचिका खारिज की गई।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन शामिल थे, ने दोनों अपीलें खारिज कर दीं। अदालत ने कर्नाटक हाईकोर्ट की दलीलों से सहमति जताई और कहा कि आदेश पूरी तरह से न्यायसंगत और उचित था।
अदालत ने यह भी कहा कि सलीम खान पांच साल से अधिक समय से हिरासत में थे और अभी तक मुकदमा शुरू नहीं हुआ था, इसलिए इस स्तर पर हस्तक्षेप करना उचित नहीं होगा।
वहीं ज़ैद के मामले में, अदालत ने माना कि प्रतिबंधित संगठनों से उसके गहरे संबंध होने के कारण जमानत देने का कोई आधार नहीं बनता।
सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे में देरी पर चिंता जताई और कहा कि गिरफ्तारी के 5.5 साल बाद भी ट्रायल शुरू नहीं हुआ है।
"आरोपी को बिना निष्पक्ष और त्वरित सुनवाई के जेल में नहीं रखा जा सकता," पीठ ने कहा।
अदालत ने ट्रायल कोर्ट को आदेश दिया कि मुकदमे को दो साल के भीतर पूरा किया जाए, क्योंकि अभियोजन पक्ष ने 100 से अधिक गवाहों की सूची दी है। साथ ही यह भी निर्देश दिया कि यदि सलीम खान मुकदमे में देरी करने की कोशिश करते हैं, तो अभियोजन या अदालत उनकी जमानत रद्द करने की कार्रवाई कर सकती है।
मामला शीर्षक: Union of India vs. Saleem Khan & Mohd. Zaid