लखनऊ बेंच की इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को कांग्रेस सांसद राकेश राठौर की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी। उन पर एक महिला का चार साल तक झूठे विवाह के वादे के साथ यौन शोषण करने का आरोप है। न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान की एकल पीठ ने राठौर को दो सप्ताह के भीतर ट्रायल कोर्ट के सामने आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया और निष्पक्ष कानूनी प्रक्रिया पर जोर दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
17 जनवरी को सीतापुर पुलिस स्टेशन में एक 35 वर्षीय महिला ने राठौर के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। उसने आरोप लगाया कि सीतापुर लोकसभा सीट के सांसद राठौर ने 2019 से 2023 के बीच उससे विवाह और राजनीतिक करियर में मदद का झूठा वादा करके बार-बार यौन शोषण किया। एफआईआर में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 64, 351(3), और 127(2) लगाई गई।
राठौर ने पहली बार 23 जनवरी को सीतापुर की विशेष एमपी/एमएलए कोर्ट से अग्रिम जमानत मांगी थी, लेकिन इसे खारिज कर दिया गया। इसके बाद, उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया और आरोपों को झूठा बताते हुए शिकायत में चार साल की देरी पर सवाल उठाए।
Read Also - सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को घरेलू कामगारों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कानून बनाने का निर्देश दिया
कोर्ट की कार्यवाही और प्रमुख तर्क
सुनवाई के दौरान, राठौर के वकील अरविंद मसदलन और दिनेश त्रिपाठी ने दावा किया कि एफआईआर में देरी से इसकी विश्वसनीयता पर संदेह होता है। "याची को झूठे आरोपों में फंसाया गया है। शिकायतकर्ता ने पुलिस के पास जाने में चार साल क्यों लगाए?" उन्होंने कहा।
पीड़िता के वकील ने जवाब दिया कि राठौर के राजनीतिक प्रभाव के डर से शिकायत में देरी हुई। "पीड़िता उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा और ताकत से घबराई हुई थी। एक सांसद के खिलाफ केस लड़ने का साहस जुटाने में समय लगा," उन्होंने बताया।
न्यायमूर्ति चौहान ने राठौर की याचिका खारिज करते हुए आरोपों की गंभीरता को रेखांकित किया। "आरोपों की गंभीरता को देखते हुए अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती। आरोपी को आत्मसमर्पण कर नियमित जमानत मांगनी चाहिए," कोर्ट ने कहा।
Read Also - सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा हत्याकांड में गलत सजा पाए तीन लोगों को 5-5 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया
आत्मसमर्पण का आदेश और आगे की कार्रवाई
हाईकोर्ट ने राठौर को 14 दिनों के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया और सेशन कोर्ट को उनकी नियमित जमानत याचिका को बिना देरी के निपटाने को कहा। यह फैसला तब आया जब सीतापुर सांसद 23 जनवरी को पुलिस नोटिस मिलने के बावजूद हाजिर नहीं हुए।
इससे पहले, 20 जनवरी को उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया गया था। अब कानूनी विकल्प खत्म होने के बाद, राठौर को आत्मसमर्पण करना होगा।
यह मामला यौन उत्पीड़न के आरोपों में सार्वजनिक हस्तियों की जवाबदेही पर सवाल उठाता है। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अग्रिम जमानत से इनकार न्यायपालिका की ऐसे आरोपों को त्वरित सुनवाई देने की प्रतिबद्धता दिखाता है।
"न्यायालय शक्ति संतुलन वाले मामलों में पीड़ितों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं। ऐसे मामलों में शिकायतों में देरी आम है," एक वरिष्ठ वकील ने बताया।
राकेश राठौर के आत्मसमर्पण की तैयारी के साथ, मामला अब एक निर्णायक चरण में पहुंच गया है। सेशन कोर्ट अब उनकी जमानत याचिका पर विचार करेगी, जबकि पीड़िता वर्षों के शोषण के बाद न्याय की उम्मीद कर रही है। हाईकोर्ट का सख्त रुख यह सुनिश्चित करता है कि राजनीतिक हैसियत वाला कोई भी व्यक्ति जवाबदेही से बच न पाए।
यह लेख कोर्ट की कार्यवाही और आधिकारिक बयानों पर आधारित है। मामले की प्रगति के साथ नए अपडेट जल्द साझा किए जाएंगे।