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इलाहाबाद हाईकोर्ट: भविष्य निधि अधिनियम की समीक्षा याचिका खारिज होने पर रिट याचिका स्वीकार्य, अपील का प्रावधान नहीं

Shivam Y.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि भविष्य निधि अधिनियम की धारा 7-बी के तहत खारिज समीक्षा याचिका के खिलाफ रिट याचिका स्वीकार्य है क्योंकि ऐसी किसी खारिजी के खिलाफ कोई वैधानिक अपील नहीं है। पूरी जानकारी पढ़ें।

इलाहाबाद हाईकोर्ट: भविष्य निधि अधिनियम की समीक्षा याचिका खारिज होने पर रिट याचिका स्वीकार्य, अपील का प्रावधान नहीं

हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि भविष्य निधि एवं विविध उपबंध अधिनियम, 1952 की धारा 7-बी के तहत दायर समीक्षा याचिका की खारिजी के खिलाफ रिट याचिका दायर की जा सकती है, क्योंकि ऐसी किसी खारिजी के खिलाफ कोई वैधानिक अपील उपलब्ध नहीं है।

यह मामला एम/एस मेट्रो एम्यूजमेंट प्राइवेट लिमिटेड से संबंधित है, जो मेरठ कैंट, उत्तर प्रदेश में सागर रत्ना का फ्रेंचाइज़ी संचालन कर रही थी। कंपनी को धारा 7A के अंतर्गत ₹23,05,278/- की भविष्य निधि बकाया राशि का नोटिस जारी किया गया, जो क्षेत्रीय प्रवर्तन अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर था।

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इस आदेश के प्राप्त होने पर, कंपनी ने धारा 7B के तहत समीक्षा याचिका दायर की, लेकिन दायर करने में देरी के कारण वह याचिका खारिज कर दी गई। इसके बाद याचिकाकर्ता ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

सुनवाई के दौरान, प्रत्युत्तर पक्ष के वकील ने यह आपत्ति जताई कि इस तरह की समीक्षा खारिजी के खिलाफ रिट याचिका स्वीकार्य नहीं है। इसके उत्तर में याचिकाकर्ता के वकील ने चंद्रशेखर आज़ाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय बनाम क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त-II के मामले का हवाला दिया।

“अधिनियम की धारा 7-बी के प्रावधानों को पढ़ने से स्पष्ट होता है कि यदि समीक्षा याचिका खारिज हो जाती है, तो उस आदेश के खिलाफ कोई अपील नहीं है। ऐसी स्थिति में रिट याचिका दायर की जा सकती है।”

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उक्त निर्णय में कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि चूंकि धारा 7B के तहत कोई वैधानिक अपील उपलब्ध नहीं है, इसलिए रिट याचिका ही एकमात्र उपाय है। साथ ही, ऐसी याचिका में धारा 7A के तहत पारित मूल आदेश की समीक्षा नहीं होगी, जब तक कि समीक्षा स्वीकृत न हुई हो।

इसी सिद्धांत पर आधारित निर्णय में न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने याचिकाकर्ता के पक्ष में निर्णय दिया और यह स्पष्ट किया कि समीक्षा याचिका की अस्वीकृति के विरुद्ध रिट याचिका वैधानिक रूप से स्वीकार्य है।

“ऐसी याचिका में, धारा 7-A के अंतर्गत पारित आदेश की समीक्षा कोर्ट नहीं करेगा, क्योंकि समीक्षा याचिका खारिज होने से मूल आदेश वैध बना रहता है।”

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कोर्ट ने इस मामले में मूल तथ्यों पर टिप्पणी किए बिना दोनों पक्षों को जवाबी हलफनामे दाखिल करने का निर्देश दिया, ताकि मामला आगे बढ़ सके।

“जब समीक्षा याचिका खारिज हो जाए और अपील का कोई प्रावधान न हो, तब रिट याचिका ही उचित और वैधानिक उपाय है।” — इलाहाबाद हाईकोर्ट

मामले का शीर्षक: एम/एस मेट्रो एम्यूजमेंट प्राइवेट लिमिटेड, अबू प्लाज़ा, अबुलाइन बनाम भारत सरकार एवं अन्य [WRIT - C No. - 9281 of 2025]

न्यायाधीश: न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया

याचिकाकर्ता के वकील: अभिजीत मिश्रा, निपुण सिंह, नमन सिंह

प्रत्युत्तर पक्ष के वकील: जगदीश पाठक, उदित चंद्र