एक अहम निर्णय में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि ‘स्ट्रिधन’ की वापसी हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अंतर्गत चल रही वैवाहिक कार्यवाही के भीतर ही तय की जानी चाहिए, न कि धारा 27 के तहत दायर किसी अलग आवेदन के माध्यम से।
न्यायमूर्ति अरिंदम सिन्हा और न्यायमूर्ति अवनीश सक्सेना की खंडपीठ ने कहा:
“स्ट्रिधन की वापसी एक मुद्दा होना चाहिए जिसे अधिनियम के तहत कार्यवाही में सुनवाई के दौरान तय किया जाए, न कि धारा 27 के तहत किए गए अलग आवेदन में।”
यह फैसला कृष्ण कुमार गुप्ता बनाम प्रीति गुप्ता के मामले में आया, जिसमें फैमिली कोर्ट ने पहले पति को पत्नी को स्ट्रिधन के बदले ₹10,54,364/- चुकाने का निर्देश दिया था। दोनों के बीच विवाह 1 मई 2023 को समाप्त हो गया था। इससे पूर्व पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण के रूप में ₹7 लाख मिल चुके थे।
अपीलकर्ता-पति ने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी और कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 27 के तहत अलग से कोई कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती। उन्होंने बबीता @ गायत्री बनाम मोद प्रसाद @ पिंटू (छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट, 2017) के फैसले का हवाला दिया जिसमें कहा गया:
“धारा 27 को एक स्वतंत्र वैवाहिक कार्यवाही नहीं माना गया है। इसका उद्देश्य मुकदमों की बहुलता से बचना है और इसे केवल उन्हीं कार्यवाहियों में लागू किया जा सकता है जो अधिनियम की धारा 9 से 13-B के अंतर्गत चल रही हों।”
अपीलकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि फैमिली कोर्ट ने पत्नी द्वारा प्रस्तुत ज्वेलरी रसीदों की फोटोकॉपी को उचित द्वितीयक साक्ष्य के बिना स्वीकार कर लिया। हाईकोर्ट ने इस पर कहा:
“किसी दस्तावेज को केवल वही व्यक्ति प्रमाणित कर सकता है जिसने उसे बनाया हो या जिसने उसे बनते और प्राप्त करते देखा हो। मात्र आपत्ति न करने से उसे प्रमाणित नहीं माना जा सकता।”
कोर्ट ने यह भी पाया कि पत्नी ने अपनी जिरह में स्वीकार किया कि जिस दिन की घटना का आरोप लगाया गया है, उस दिन पति वहां मौजूद नहीं थे। बावजूद इसके फैमिली कोर्ट ने आरोपों को सच मान लिया।
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“फैमिली कोर्ट ने यह नहीं देखा कि पत्नी ने स्वयं कहा था कि घटना के समय पति मौजूद नहीं थे,” कोर्ट ने कहा।
हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 25 तलाक के बाद भरण-पोषण की अनुमति देती है, जबकि धारा 27 केवल संयुक्त संपत्ति को लेकर उसी कार्यवाही में लागू होती है। 1 मई 2023 के तलाक आदेश में कोई संपत्ति संबंधित निर्देश नहीं था, इसलिए फैमिली कोर्ट का आदेश अधिकार क्षेत्र से बाहर था।
इसलिए हाईकोर्ट ने ₹10.54 लाख का आदेश खारिज कर दिया। कोर्ट ने यह माना कि पत्नी को पहले ही ₹7 लाख और ₹2.10 लाख (आंशिक निष्पादन से) मिल चुके हैं, जिन्हें भरण-पोषण में समायोजित किया जा सकता है।
“अपीलकर्ता के अपील में सफल होने के कारण निष्पादन की कार्यवाही स्वतः समाप्त मानी जाएगी,” कोर्ट ने निर्देश दिया।
केस का शीर्षक: कृष्ण कुमार गुप्ता बनाम प्रीति गुप्ता [प्रथम अपील संख्या - 1116/2024]