दिल्ली हाईकोर्ट ने मजनू का टीला स्थित पाकिस्तानी-हिंदू शरणार्थी शिविर को हटाने की कार्यवाही पर रोक लगाने की याचिका खारिज कर दी है। यह याचिका रवि रंजन सिंह द्वारा दायर की गई थी, जिसमें दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को वैकल्पिक भूमि आवंटित किए जाने तक कोई कार्रवाई न करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि शरणार्थियों को उक्त भूमि पर कब्जे का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।
“याचिकाकर्ता और अन्य इसी स्थिति में मौजूद शरणार्थियों को उक्त क्षेत्र पर कब्जा जारी रखने का कोई अधिकार नहीं है,” कोर्ट ने कहा।
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जस्टिस धर्मेश शर्मा ने इस फैसले में यह स्पष्ट किया कि यह भूमि दिल्ली के ज़ोन ‘ओ’ में स्थित है – जो यमुना बाढ़ क्षेत्र में आता है – और यह पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र है, जहाँ निवास की अनुमति नहीं दी जा सकती।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यहां तक कि भारतीय नागरिक भी इस तरह के प्रतिबंधित क्षेत्रों में वैकल्पिक भूमि आवंटन का दावा नहीं कर सकते।
“यह निर्विवाद है कि यहां तक कि भारतीय नागरिक भी वैकल्पिक भूमि आवंटन का कोई पूर्ण अधिकार नहीं रख सकते, विशेषकर जब भूमि प्रतिबंधित क्षेत्रों जैसे यमुना बाढ़ क्षेत्र में आती हो,” कोर्ट ने कहा।
कोर्ट ने 13 मार्च 2024 को पारित अंतरिम आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें डीडीए को शरणार्थियों के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई न करने का निर्देश दिया गया था। यह फैसला डीडीए द्वारा एनजीटी (राष्ट्रीय हरित अधिकरण) के आदेशों का हवाला देने के बाद आया, जिसमें बाढ़ क्षेत्र से सभी अतिक्रमण हटाने को कहा गया है ताकि यमुना नदी की पारिस्थितिकी को सुरक्षित रखा जा सके।
याचिका में यह भी मांग की गई थी कि नदी के किनारे पर अक्षरधाम मंदिर और कॉमनवेल्थ गेम्स विलेज की तरह बांध बनाए जाएं, ताकि शरणार्थी कॉलोनियों और धार्मिक संरचनाओं की रक्षा की जा सके। लेकिन कोर्ट ने इस मांग को भी खारिज कर दिया और यमुना की पारिस्थितिकीय सुरक्षा को सर्वोपरि माना।
“नदी के पुनर्स्थापन और पुनर्जीवन के प्रयासों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप याचिकाकर्ता के कारण सहन नहीं किया जा सकता,” कोर्ट ने कहा।
कोर्ट ने मानवीय पक्ष को स्वीकारते हुए भी यह स्पष्ट किया कि वह सरकारी नीति नहीं बना सकता।
कोर्ट ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) 2019 का हवाला देते हुए शरणार्थियों को भारत की नागरिकता प्राप्त करने के लिए ऑनलाइन आवेदन करने की सलाह दी।
“यदि आवेदन स्वीकार हो जाता है, तो शरणार्थी भारतीय नागरिक माने जाएंगे और उन्हें सभी अधिकार व लाभ प्राप्त होंगे जो एक सामान्य भारतीय नागरिक को मिलते हैं,” कोर्ट ने कहा।
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हालांकि कोर्ट ने बार-बार सरकार और संबंधित विभागों के साथ समन्वय करने का प्रयास किया, लेकिन गृह मंत्रालय और आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय की निष्क्रियता के कारण कोई समाधान नहीं निकल सका। कोर्ट ने इसे “ब्यूरोक्रेटिक बक-पासिंग” यानी सरकारी विभागों की जिम्मेदारी से बचने की प्रवृत्ति कहा।
अंततः कोर्ट ने कहा कि वह शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए नीति नहीं बना सकता और संबंधित एजेंसियों को कानून और पर्यावरणीय आदेशों के अनुसार कार्य करना चाहिए।
शीर्षक: रवि रंजन सिंह बनाम दिल्ली विकास प्राधिकरण और अन्य