इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि दंड प्रक्रिया संहिता (उत्तर प्रदेश संशोधन) अधिनियम, 2018 — जिसे उत्तर प्रदेश अधिनियम संख्या 4, 2019 के रूप में पारित किया गया था — भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 के लागू होने के बाद निष्प्रभावी रूप से रद्द हो चुका है।
"यद्यपि संसद द्वारा बनाए गए बाद के कानून ने राज्य कानून को स्पष्ट रूप से निरस्त नहीं किया है, फिर भी संविधान के अनुच्छेद 254 के प्रभाव से राज्य कानून निष्प्रभावी रूप से रद्द माना जाएगा," कोर्ट ने कहा।
यह महत्वपूर्ण निर्णय रमन साहनी द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका के मामले में आया, जिन्हें उत्तर प्रदेश गैंगस्टर अधिनियम की धारा 2 और 3 के तहत आरोपित किया गया था। याचिकाकर्ता ने यह कहते हुए सीधे हाईकोर्ट का रुख किया कि उनके खिलाफ एक प्रतिद्वंद्वी द्वारा दर्ज कई एफआईआर और जान को खतरा है।
राज्य सरकार ने दो आधारों पर याचिका का विरोध किया:
- कि यह याचिका सीधे हाईकोर्ट में दाखिल करना वैध नहीं है,
- कि 2018 संशोधन अधिनियम की धारा 6(a)(b) के तहत गैंगस्टर अधिनियम के मामलों में अग्रिम जमानत वर्जित है।
हालांकि, न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह ने इन दोनों आपत्तियों को खारिज कर दिया।
हाईकोर्ट में सीधे याचिका दायर करने की वैधता
कोर्ट ने अंकित भारती बनाम राज्य (2020) मामले पर भरोसा करते हुए कहा कि सामान्यतः याचिकाकर्ता को पहले सत्र न्यायालय का रुख करना चाहिए, लेकिन विशेष परिस्थितियों में हाईकोर्ट में सीधे याचिका दाखिल करना वैध है।
“हाईकोर्ट में सीधे अग्रिम जमानत याचिका दाखिल करने पर कोई पूर्ण प्रतिबंध नहीं है,” कोर्ट ने स्पष्ट किया।
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याचिकाकर्ता की जान को खतरा और प्रतिद्वंद्वी की राजनीतिक पहुंच को देखते हुए, कोर्ट ने सीधे याचिका स्वीकार करना उचित पाया।
राज्य संशोधन का निष्प्रभावी निरसन
मुख्य कानूनी प्रश्न यह था कि क्या CrPC की धारा 438 में यूपी सरकार द्वारा किए गए संशोधन BNSS 2023 लागू होने के बाद भी प्रभावी हैं? कोर्ट ने कहा:
- CrPC 1973 की धारा 438 को BNSS 2023 की धारा 482 से प्रतिस्थापित कर दिया गया है।
- नई धारा में अदालतों को अधिक विवेकाधिकार और विस्तृत शक्तियां दी गई हैं।
- BNSS की धारा 531 में राज्य संशोधन को संरक्षित नहीं किया गया है।
- इसलिए संविधान के अनुच्छेद 254(2) के तहत राज्य कानून स्वतः ही निष्प्रभावी हो जाता है।
“यह केवल धारा का नंबर नहीं बल्कि प्रावधान का भाव और पाठ भी पूरी तरह बदल चुका है,” कोर्ट ने कहा।
अंतिम निष्कर्ष
कोर्ट ने कहा कि संविधान की समवर्ती सूची के विषय पर संसद का कानून राज्य के कानून पर वरीयता रखता है, भले ही राज्य कानून को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हो।
“BNSS 2023 में यूपी संशोधन अधिनियम को संरक्षित नहीं किया गया है, इसलिए वह अब प्रभावी नहीं है,” कोर्ट ने निर्णय दिया।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत देते हुए मामले की अगली सुनवाई जुलाई 2025 के पहले सप्ताह में तय की।
प्रमुख कथन:
“राज्य का कानून निष्प्रभावी रूप से रद्द हो जाएगा और उसी विषय पर संसद द्वारा बनाए गए नए कानून को स्थान देना होगा।” – न्यायमूर्ति श्री प्रकाश सिंह
“विधायिका द्वारा दी गई विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग, प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर होना चाहिए।” – अंकित भारती केस में कोर्ट का उल्लेख
मामले का शीर्षक: रमन साहनी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, गृह विभाग, लखनऊ (2025:AHC-LKO:33260)
पक्षकार:
याचिकाकर्ता: अधिवक्ता सुशील कुमार सिंह, आयुष सिंह
प्रत्युत्तरदाता: राज्य के वरिष्ठ अधिवक्ता, श्रीनिवास बाजपेई (शिकायतकर्ता की ओर से)