दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में इस सिद्धांत को मजबूत किया है कि पति या पत्नी के नियोक्ता के पास अपमानजनक आरोप लगाना, जिसमें अवैध संबंधों का दावा भी शामिल है, वैवाहिक कानून के तहत क्रूरता माना जाएगा। न्यायालय ने एक परिवार न्यायालय के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें इन आधारों पर विवाह विच्छेद कर दिया गया था। न्यायालय ने वैवाहिक संबंधों में आपसी सम्मान के महत्व पर जोर दिया।
न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति रेणु भटनागर की खंडपीठ ने कहा कि हालांकि विवाह में समझौता और सहनशीलता आवश्यक है, लेकिन पति-पत्नी को एक-दूसरे को अपमानित या बदनाम करने वाली कार्रवाई से बचना चाहिए। पीठ ने कहा:
"एक स्वस्थ और मजबूत विवाह की नींव सहनशीलता, समझौता और एक-दूसरे के प्रति आपसी सम्मान है... पति या पत्नी के नियोक्ता के पास अपमानजनक और मानहानिकारक आरोप लगाना क्रूरता है, चाहे आरोप सच ही क्यों न हों।"
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इस मामले में पत्नी ने अपने पति के नियोक्ता के पास कई शिकायतें दर्ज की थीं, जिनमें उसने पति पर क्रूरता और अवैध संबंधों का आरोप लगाया था। पति ने तलाक की मांग की थी, यह तर्क देते हुए कि ये कार्रवाइयाँ उसे पेशेवर रूप से प्रताड़ित करने के लिए की गई थीं।
पत्नी का बचाव और न्यायालय की अस्वीकृति
अपीलकर्ता पत्नी ने तलाक के फैसले का विरोध किया और दावा किया कि उसकी शिकायतें पति की उपेक्षा और पुलिस की निष्क्रियता के कारण "मदद की एक बेताब गुहार" थीं। उसने सर्वोच्च न्यायालय के राज तलरेजा बनाम कविता तलरेजा (2017) के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि उचित शिकायतें क्रूरता नहीं मानी जाएँगी।
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हालाँकि, उच्च न्यायालय ने उसके तर्क को खारिज करते हुए कहा कि नियोक्ता का वैवाहिक विवादों से कोई लेना-देना नहीं है। न्यायाधीशों ने टिप्पणी की:
"शिकायतें, विशेष रूप से अवैध संबंधों का निराधार आरोप, स्पष्ट रूप से पति को उसके कार्यस्थल पर अपमानित करने के उद्देश्य से लगाई गई थीं। ऐसी कार्रवाइयाँ क्रूरता के बराबर हैं।"
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यह निर्णय इस बात को रेखांकित करता है कि कार्यस्थल पर व्यक्तिगत आरोपों वाली शिकायतें पति या पत्नी की पेशेवर प्रतिष्ठा और मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुँचा सकती हैं, जो तलाक के लिए क्रूरता का आधार बन सकता है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि भले ही आरोप सच हों, लेकिन उन्हें नियोक्ता के सामने उजागर करना विवाह में स्वीकार्य आचरण की सीमा को पार करना है।
मामले का नाम: AS v. NKS
मामला संख्या: MAT.APP.(F.C.) 160/2025
अपीलकर्ता की ओर से: श्री प्रशांत मचंदा, सुश्री नैन्सी शाह और सुश्री इशा बालोनी, अधिवक्ता