बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि यदि कोई पक्ष अनुबंध समाप्ति की सूचना से अवगत हो और उस आधार पर कार्य भी करे, तो वह बाद में मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 9 के अंतर्गत अंतरिम राहत की मांग नहीं कर सकता। यह निर्णय मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति एम.एस. कर्णिक की खंडपीठ ने जुपिकॉस एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए दिया।
"कोई भी पक्ष अनुबंध समाप्ति को नजरअंदाज कर उसके बाद की कार्यवाहियों को चुनौती नहीं दे सकता और इसके लिए मध्यस्थता कानून की आड़ नहीं ले सकता," न्यायालय ने कहा।
Read Also:-बॉम्बे हाईकोर्ट ने गैंगरेप की सजा बरकरार रखी, कहा: महिला के पूर्व संबंध उसकी सहमति नहीं माने जा सकते
यह मामला टी20 मुंबई लीग से जुड़ा है, जिसे फरवरी 2018 में मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन (एमसीए) ने शुरू किया था। इस लीग का संचालन प्रायबिलिटी स्पोर्ट्स (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड को सौंपा गया था, जिसने टीमों के लिए बोलियां आमंत्रित की थीं। जूनिपर सिटी डेवलपर्स लिमिटेड और कॉसमॉस प्राइम प्रोजेक्ट्स लिमिटेड के समूह ने शुरुआत में मुंबई साउथ सेंट्रल टीम के अधिकार प्राप्त किए थे। बाद में 9 मार्च 2018 के नवेशन समझौते के माध्यम से जुपिकॉस को सफल बोलीदाता के रूप में स्थानापन्न कर दिया गया।
इसके तहत जुपिकॉस और प्रायबिलिटी स्पोर्ट्स के बीच एक भागीदारी समझौता हुआ, जिसमें जुपिकॉस को "शिवाजी पार्क लायन्स" टीम के पहले पांच संस्करणों के संचालन का अधिकार मिला। जुपिकॉस ने दावा किया कि उसे ₹3.15 करोड़ की गारंटीकृत आय मिलने के बावजूद भारी नुकसान हुआ, जो राशि उसने फिर प्रायबिलिटी स्पोर्ट्स को भागीदारी शुल्क के रूप में लौटा दी। कंपनी ने यह भी बताया कि उसने ₹5.61 करोड़ का खर्च किया, लेकिन केवल ₹3.71 करोड़ की ही आय हुई।
22 नवंबर 2019 को प्रायबिलिटी स्पोर्ट्स ने एक नोटिस जारी करते हुए आरोप लगाया कि जुपिकॉस ने ₹35.17 लाख का भागीदारी शुल्क नहीं चुकाया और वित्तीय वर्ष 2017-18 व 2018-19 का ₹68.44 लाख टीडीएस भी जमा नहीं किया। इसके बाद 24 जनवरी 2020 को अनुबंध समाप्ति का नोटिस भेजा गया, जो अनुपूरक समझौते की धारा 1(जी) के तहत एमसीए की सहमति से जारी हुआ।
जुपिकॉस ने उस समय इस समाप्ति को चुनौती नहीं दी, बल्कि अपनी बकाया राशि चुकाने की इच्छा जताई। इसके बाद भी वह 2021 तक बैठकों में शामिल होता रहा और जनवरी 2024 में भुगतान भी किया। लेकिन अप्रैल 2024 से एमसीए ने जुपिकॉस को बैठकों में बुलाना बंद कर दिया। इसके बाद, 28 मार्च 2025 को, जब नई टीमों की नीलामी की प्रक्रिया शुरू होने वाली थी, जुपिकॉस ने धारा 9 के तहत अंतरिम राहत के लिए मध्यस्थता याचिका दाखिल की।
जुपिकॉस ने दलील दी कि एमसीए का व्यवहार दिखाता है कि समाप्ति लागू नहीं हुई थी। उसने अन्य टीम मालिकों से भेदभाव और अपील लंबित होने के बावजूद तृतीय पक्ष अधिकार बनाए जाने को भी गलत ठहराया।
हालांकि, हाईकोर्ट ने इन दलीलों को खारिज कर दिया। कोर्ट ने माना कि जुपिकॉस और प्रायबिलिटी स्पोर्ट्स के बीच का अनुबंध स्वतंत्र था और एमसीए उसका पक्षकार नहीं था। अनुबंध पूर्ण रूप से एक मुख्य से मुख्य (principal-to-principal) आधार पर था और समाप्ति का अधिकार केवल प्रायबिलिटी स्पोर्ट्स के पास था।
ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे यह सिद्ध हो कि एमसीए ने समाप्ति को माफ किया या लागू नहीं किया, कोर्ट ने कहा।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि एकल न्यायाधीश का यह अवलोकन सही था कि समझौता केवल संचालन का अधिकार देता है, न कि स्वामित्व का। चूंकि जुपिकॉस ने तत्काल समाप्ति को चुनौती नहीं दी और काफी बाद में भुगतान किया, इसलिए यह स्पष्ट है कि उसने स्वयं समाप्ति को स्वीकार कर लिया।
इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने यह भी कहा कि मध्यस्थता याचिका विलंब से और रणनीतिक रूप से नीलामी की पूर्व संध्या पर दायर की गई थी, जो कि अंतरिम राहत देने के लिए उपयुक्त कारण नहीं है।
"समाप्ति के बाद बैठकों में भाग लेना और देर से राहत मांगना यह साबित नहीं करता कि समाप्ति लागू नहीं हुई," पीठ ने कहा।
इस प्रकार, न्यायालय ने पूर्व आदेश को बरकरार रखते हुए अपील को खारिज कर दिया।
मामले का शीर्षक: जुपिकॉस एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड बनाम प्रायबिलिटी स्पोर्ट्स (इंडिया) प्रा. लि. व अन्य
मामला संख्या: मध्यस्थता अपील (एल) संख्या 12967 / 2025
निर्णय तिथि: 7 मई 2025
वरिष्ठ अधिवक्ता श्री विवेक टंखा, श्री मयूर खंडेपरकर और अन्य अधिवक्ताओं की टीम के साथ अपीलकर्ता की ओर से पेश हुए। वहीं, उत्तरदाताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री अमृत जोशी और श्री आशीष कामत ने अपनी-अपनी टीमें लेकर पक्ष रखा।