दिल्ली हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से यह स्पष्ट करने के लिए अनुरोध किया है कि क्या राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) अधिनियम, 2008 के तहत गठित विशेष अदालत, जिसे MP/MLA मामलों की सुनवाई के लिए नामित किया गया है, केवल सांसदों और विधायकों (MPs/MLAs) से जुड़े मामलों की सुनवाई कर सकती है या अन्य आरोपियों के मामलों को भी निपटा सकती है।
यह अनुरोध दिल्ली हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के माध्यम से एक आवेदन के रूप में किया गया है, जिसमें यह सवाल उठाया गया है कि क्या इस विशेष अदालत को केवल उन मामलों तक सीमित रखा जाना चाहिए जिनमें आरोपी सांसद या विधायक हैं, या फिर यह अदालत अपने मौजूदा अधिकार क्षेत्र के तहत अन्य मामलों की भी सुनवाई कर सकती है।
2017 में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वे विशेष अदालतों (Special Courts) की स्थापना के लिए एक योजना तैयार करें, जो विशेष रूप से राजनीतिक व्यक्तियों के आपराधिक मामलों की सुनवाई करें।
"राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण को देखते हुए, ऐसे मामलों का शीघ्र निपटारा आवश्यक है, ताकि कानून के शासन को मजबूत किया जा सके।"
इन विशेष अदालतों को फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट्स (FTCs) के समान बनाया गया था, जिन्हें केंद्र सरकार ने पांच वर्षों के लिए स्थापित किया था, लेकिन बाद में इन्हें बंद कर दिया गया।
14 दिसंबर 2017 को, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह विभिन्न राज्य सरकारों को 7.80 करोड़ रुपये की धनराशि आवंटित करे, ताकि 12 विशेष अदालतों की स्थापना की जा सके। इस धनराशि के आवंटन की प्रक्रिया में उच्च न्यायालयों को भी शामिल किया गया।
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मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला एक जनहित याचिका (PIL) से संबंधित है, जिसे वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दायर किया था। इस याचिका में उन्होंने मांग की थी कि जिन MPs और MLAs को आपराधिक मामलों में दोषी ठहराया गया है, उन्हें आजीवन अयोग्य घोषित किया जाए।
याचिकाकर्ता ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of Peoples Act) की उन धाराओं को भी चुनौती दी है, जो दोषी ठहराए गए नेताओं को सजा पूरी करने के बाद छह वर्षों तक चुनाव लड़ने से रोकती हैं।
याचिका में मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रार्थना की गई है:
"स्पष्ट किया जाए कि हाईकोर्ट विशेष NIA अदालतों को उन सांसदों और विधायकों के मामलों की सुनवाई के लिए अधिकृत कर सकता है, जो विशेष अधिनियमों (जैसे कि NIA अधिनियम) के तहत सूचीबद्ध अपराधों के तहत मुकदमे का सामना कर रहे हैं। इसके लिए हाईकोर्ट को उचित अधिसूचना/आदेश जारी करने का अधिकार दिया जाए।"
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नवंबर 2023 में, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए कई निर्देश जारी किए। इन निर्देशों का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक व्यक्तियों पर लंबित मुकदमों की तेजी से सुनवाई सुनिश्चित करना था।
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा:
"जनप्रतिनिधियों पर आपराधिक मामलों का शीघ्र निपटारा लोकतंत्र और पारदर्शिता के लिए आवश्यक है।"
इस दिशा में विशेष अदालतों की भूमिका को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए न्यायालय ने निगरानी तंत्र को मजबूत करने के निर्देश भी दिए।
मामले का विवरण : अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ W.P.(C) No. 699/2016