दिल्ली उच्च न्यायालय ने कानून और सामाजिक चेतना का सम्मिश्रण करते हुए एक प्रभावशाली फैसले में एक जोड़े की संयुक्त याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने अपने आर्य समाज विवाह को "अमान्य" घोषित करने की मांग की थी। अदालत ने पाया कि इस जोड़े ने - जिन्होंने केवल ब्रिटिश वीज़ा जल्दी पाने के लिए विवाह करने की बात स्वीकार की थी - हिंदू विवाह अधिनियम (HMA) को "एक चतुराईपूर्ण तरीके से दरकिनार" करने के लिए कानूनी प्रणाली का इस्तेमाल करने की कोशिश की थी।
न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि साकेत स्थित पारिवारिक न्यायालय ने इस साल की शुरुआत में याचिका को खारिज करके सही किया था। निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए पीठ ने कहा, "अदालतें ऐसे उपकरणों को मंजूरी नहीं दे सकतीं जो वैधानिक व्यवस्था की पवित्रता को कमजोर करती हैं।"
पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता वी.एन. और प्रतिवादी डी.जी. ने दिल्ली स्थित आर्य समाज मंदिर में 30 जनवरी 2024 को विवाह समारोह किया था। उसी दिन एक प्रमाणपत्र जारी किया गया, और 2 फरवरी को शाहदरा जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय में औपचारिक पंजीकरण हुआ।
लेकिन कुछ ही दिनों बाद, इस जोड़े ने 20 अप्रैल को तय भव्य विवाह समारोह रद्द कर दिया। उनका दावा था कि पहले हुए विवाह में "सप्तपदी" (अग्नि के सामने सात फेरे) नहीं हुए थे। दोनों ने पारिवारिक अदालत में याचिका दायर कर विवाह और जारी प्रमाणपत्रों को कानूनन अमान्य घोषित करने की मांग की।
उन्होंने तर्क दिया कि यह विवाह केवल वीज़ा प्रक्रिया तेज करने के लिए किया गया एक औपचारिक दिखावा था, वास्तविक विवाह नहीं।
अदालत के अवलोकन
पीठ ने इसे "प्रक्रिया का सुनियोजित दुरुपयोग" बताते हुए सख्त शब्दों में टिप्पणी की। न्यायमूर्ति शंकर ने लिखा,
"यह याचिका हिंदू विवाह अधिनियम के सख्त प्रावधानों से बचने के लिए रची गई एक नई और चालाक विधि प्रतीत होती है।"
अदालत ने माना कि पारिवारिक अदालत का तर्क सही था कानून केवल उन्हीं विवाहों को मान्यता देता है जो विधिपूर्वक संपन्न हुए हों, न कि उन विवाहों को जिन्हें बाद में "अपूर्ण अनुष्ठान" बताकर शून्य घोषित करने की कोशिश की जाए।
HMA की धारा 7, जो हिंदू विवाह की रस्मों से संबंधित है, परंपराओं में लचीलापन देती है, परंतु किसी "अस्तित्वहीन विवाह" की श्रेणी नहीं बनाती।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि पंजीकरण, संस्कारों का स्थान नहीं ले सकता। पीठ ने कहा,
"विवाह प्रमाणपत्र केवल इस बात का प्रमाण है कि एक वैध संस्कार हुआ है यह स्वयं विवाह का प्रमाण नहीं।"
न्यायाधीशों ने जोड़े के बदलते बयानों पर भी आपत्ति जताई। दोनों ने पहले जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष शपथपत्र देकर स्वीकार किया था कि उनका विवाह हिंदू रीति-रिवाजों से हुआ था। बाद में उन्होंने इसका खंडन किया।
एस्टोपल (Estoppel) के सिद्धांत का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि वे अब अपने ही कथन से मुकर नहीं सकते:
"कोई व्यक्ति एक समय एक बात कहकर बाद में उसके विपरीत बात कहने की अनुमति नहीं पा सकता।"
डॉली रानी मामले का संदर्भ
दंपति के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के 2025 के फैसले "डॉली रानी बनाम मनीष कुमार चंचल" पर भरोसा किया, जिसमें विवाह को इसलिए निरस्त किया गया था क्योंकि आवश्यक संस्कार पूरे नहीं हुए थे।
परंतु दिल्ली हाई कोर्ट ने दोनों मामलों में अंतर स्पष्ट किया। अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने वह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने असाधारण अधिकारों का प्रयोग कर दिया था, जो "पूर्ण न्याय" के लिए विशेष परिस्थिति में ही प्रयोग किए जा सकते हैं-ऐसे अधिकार न हाई कोर्ट के पास हैं, न पारिवारिक अदालत के।
पीठ ने टिप्पणी की,
"डॉली रानी का निर्णय कोई नियमित रास्ता नहीं बन सकता जिससे लोग कानून को दरकिनार कर अलग होने का उपाय खोजें।"
'वीज़ा मैरिज' पर अदालत की नाराज़गी
अदालत ने अपने शब्दों में असाधारण स्पष्टता दिखाते हुए इस विवाह को “सुविधा के लिए की गई झूठी शादी” बताया। फैसले में कहा गया:
"यदि इस प्रकार की शादियों को बाद में नकारने की अनुमति दी गई तो यह अदालत ऐसे कर्म को वैधता देगी जो प्रारंभ से ही दुर्भावनापूर्ण है। इससे भारत की विवाह पंजीकरण प्रणाली पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अविश्वास पैदा होगा।"
अदालत ने यह भी कहा कि कई देश भारतीय विवाह प्रमाणपत्रों को प्रवासन सत्यापन के लिए मान्यता देते हैं। यदि ऐसे प्रमाणपत्र आसानी से अमान्य किए जाने लगे, तो यह भारत की साख को विश्व स्तर पर नुकसान पहुँचा सकता है।
अंतिम निर्णय
अंततः हाई कोर्ट ने पाया कि विवाह में संस्कारों की कमी साबित करने का कोई ठोस साक्ष्य नहीं दिया गया। न तो विवाह कराने वाले पुजारी को गवाही के लिए बुलाया गया, न किसी गवाह को।
न्यायाधीशों ने माना कि वैध विवाह का अनुमान (presumption) अब भी बना हुआ है और इसे खारिज करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं दिया गया।
पीठ ने अपने निष्कर्ष में कहा:
"पारिवारिक अदालत में दायर याचिका और हमारे समक्ष दायर अपील दोनों ही मात्र चालाकी का परिणाम हैं यह स्थापित कानून को उलटने का एक गलत प्रयास है।"
अपील को पूरी तरह से खारिज कर दिया गया, और किसी भी पक्ष को लागत (costs) नहीं दी गई।
Case: VN v. DG, MAT.APP.(F.C.) 222/2025
Decision Date: October 9, 2025