Logo
Court Book - India Code App - Play Store

advertisement

दिल्ली हाईकोर्ट: सजा अनंत नहीं हो सकती — 24 साल से जेल में बंद उम्रकैद के कैदी को राहत

Shivam Y.

दिल्ली हाईकोर्ट ने सगीर की समयपूर्व रिहाई की याचिका खारिज करने के SRB के फैसले को खारिज किया, कहा कि सजा का उद्देश्य सुधार होना चाहिए, न कि अंतहीन कारावास।

दिल्ली हाईकोर्ट: सजा अनंत नहीं हो सकती — 24 साल से जेल में बंद उम्रकैद के कैदी को राहत

दिल्ली हाईकोर्ट ने सगीर नामक व्यक्ति को राहत दी है, जिसे 2003 में एक 8 वर्षीय बच्ची के अपहरण, बलात्कार और हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। न्यायमूर्ति गिरीश कथपालिया ने सजा समीक्षा बोर्ड (SRB) के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें उसकी समयपूर्व रिहाई की याचिका खारिज की गई थी। कोर्ट ने कहा कि न्याय का उद्देश्य सुधार होना चाहिए, न कि अंतहीन सजा।

Read in English

सगीर अब तक जेल में 24 साल से अधिक समय (रिहाई में मिलने वाली छूट सहित) और 20 साल 8 महीने बिना छूट के बिता चुका है। कोर्ट ने कहा कि अपराध की गंभीरता के बावजूद सजा को "असार्थक और अंतहीन कारावास" में नहीं बदलना चाहिए।

"अपराध की सजा की भी एक सीमा होनी चाहिए, नहीं तो वह खुद एक अन्याय बन जाती है। सजा का उद्देश्य अपराधी का सुधार होना चाहिए, न कि अंतहीन और निरर्थक कारावास,"
— न्यायमूर्ति गिरीश कथपालिया

Read also:- जीवन की सुरक्षा सर्वोपरि है, भले ही लड़की की उम्र गलत बताई गई हो: भगोड़े जोड़े के मामले में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय

सगीर की याचिका को दिल्ली सरकार की 2004 की नीति के तहत समीक्षा के लिए प्रस्तुत किया गया था। लेकिन सगीर ने SRB के फैसले को यह कहते हुए चुनौती दी कि यह बिना किसी कारण के और यांत्रिक रूप से लिया गया है। अभियोजन पक्ष ने भी इस फैसले को समर्थन देने में असमर्थता जताई, यह कहते हुए कि यह उचित तथ्यों पर आधारित नहीं था।

न्यायमूर्ति कथपालिया ने कहा कि यद्यपि SRB ने पुलिस और सामाजिक कल्याण विभाग की रिपोर्टों पर विचार करने का उल्लेख किया था, लेकिन वे रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत नहीं की गईं और न ही उनका कोई सारांश फैसले में बताया गया।

"यह तक स्पष्ट नहीं है कि 2004 की नीति के तहत जो मापदंड निर्धारित किए गए हैं, उनका पालन किया गया या नहीं,"
— दिल्ली हाईकोर्ट

Read also:- राजस्थान उच्च न्यायालय: ट्रेडमार्क को बिना पूर्व सूचना के, लंबी अवधि के बाद भी नहीं हटाया जा सकता

कोर्ट ने यह भी कहा कि SRB के निर्णय का आधार केवल अपराध की भयानकता प्रतीत होता है, जबकि नीति और कानून के अन्य आवश्यक पहलुओं की अनदेखी की गई।

याचिकाकर्ता के वकील ने विक्रम यादव बनाम राज्य सरकार दिल्ली एनसीटी मामले का हवाला दिया और कहा कि उस निर्णय में जो मानदंड तय किए गए थे, उनका पालन सगीर के मामले में नहीं किया गया।

इस पर अभियोजन पक्ष ने आश्वासन दिया कि यदि SRB का वर्तमान निर्णय रद्द कर दिया जाता है, तो अगली बैठक में मामले की निष्पक्ष रूप से पुनः समीक्षा की जाएगी, जो चार महीने के भीतर निर्धारित है।

Read also:- केरल हाईकोर्ट ने MSC Elsa 3 की सिस्टर शिप की सशर्त गिरफ्तारी को जारी रखने की अनुमति दी; अंतिम निर्णय दलीलों के बाद होगा

अतः हाईकोर्ट ने 4 दिसंबर 2024 को SRB द्वारा दिए गए फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें सगीर की समयपूर्व रिहाई को नकारा गया था।

“उत्तरदाता संख्या-1 को निर्देश दिया जाता है कि वह आज से चार महीने के भीतर SRB की बैठक बुलाकर याचिकाकर्ता के मामले पर पुनर्विचार करे।”
— दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश, 8 जुलाई 2025

कोर्ट ने जेल अधीक्षक को आदेश की प्रति याचिकाकर्ता को सूचित करने के लिए भेजने का निर्देश भी दिया।

शीर्षक: सगीर बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली) एवं अन्य

Advertisment

Recommended Posts