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न्यायमूर्ति गवई ने लाइव-स्ट्रीम की गई अदालती सुनवाइयों के दुरुपयोग और न्यायपालिका में एआई के खतरों पर जताई चिंता

11 Mar 2025 4:38 PM - By Shivam Y.

न्यायमूर्ति गवई ने लाइव-स्ट्रीम की गई अदालती सुनवाइयों के दुरुपयोग और न्यायपालिका में एआई के खतरों पर जताई चिंता

भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बी. आर. गवई ने अदालती सुनवाइयों की लाइव-स्ट्रीमिंग के दुरुपयोग को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने बताया कि कई कंटेंट क्रिएटर्स, विशेष रूप से यूट्यूबर्स, अदालत की कार्यवाही के छोटे-छोटे हिस्से निकालकर उन्हें सनसनीखेज ढंग से प्रस्तुत करते हैं, जिससे न्यायिक चर्चाओं का गलत अर्थ निकाला जाता है और गलत जानकारी फैलाई जाती है।

केन्या के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में बोलते हुए, न्यायमूर्ति गवई ने भारतीय न्यायपालिका में वर्चुअल सुनवाइयों और लाइव-स्ट्रीमिंग के उपयोग के बारे में चर्चा की। उन्होंने कहा कि इस तकनीक ने न्याय तक जनता की पहुंच को आसान बनाया है और पारदर्शिता बढ़ाई है, लेकिन इसके साथ ही कुछ गंभीर चुनौतियाँ भी सामने आई हैं।

"अदालती सुनवाइयों के छोटे क्लिप सोशल मीडिया पर प्रसारित किए जाते हैं, जो कई बार कार्यवाही को सनसनीखेज बना देते हैं। जब इन्हें संदर्भ से बाहर दिखाया जाता है, तो इससे गलत जानकारी फैलती है और न्यायिक चर्चाओं का गलत अर्थ लगाया जाता है।"

उन्होंने बौद्धिक संपदा अधिकारों और न्यायिक रिकॉर्डिंग के स्वामित्व को लेकर भी चिंता जताई। कई कंटेंट क्रिएटर्स अदालती सुनवाइयों के अंश निकालकर उन्हें अपने कंटेंट के रूप में फिर से अपलोड कर देते हैं। यह केवल नैतिकता का मुद्दा नहीं है बल्कि कानूनी दृष्टिकोण से भी यह गंभीर समस्या बनता जा रहा है।

"इसके अतिरिक्त, कई कंटेंट क्रिएटर्स, विशेष रूप से यूट्यूबर्स, अदालती कार्यवाही के छोटे-छोटे अंश निकालकर उन्हें अपने कंटेंट के रूप में पुनः प्रकाशित कर देते हैं। यह बौद्धिक संपदा अधिकारों और न्यायिक रिकॉर्डिंग के स्वामित्व को लेकर गंभीर प्रश्न खड़ा करता है। इस प्रकार के अनधिकृत उपयोग और संभावित मुद्रीकरण से सार्वजनिक पहुंच और नैतिक प्रसारण के बीच की रेखाएं धुंधली हो जाती हैं।"

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न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि न्यायालयों को लाइव-स्ट्रीम की गई कार्यवाही के उपयोग को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि पारदर्शिता महत्वपूर्ण है, लेकिन इसे नैतिक मानकों के साथ संतुलित करना आवश्यक है ताकि गलत जानकारी न फैलाई जाए।

"इन चुनौतियों का समाधान न्यायपालिका के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है। न्यायालयों को लाइव-स्ट्रीम कार्यवाही के उपयोग को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश तैयार करने की आवश्यकता हो सकती है। पारदर्शिता, सार्वजनिक जागरूकता और न्यायिक सामग्री के जिम्मेदार उपयोग के बीच संतुलन बनाना इन नैतिक चिंताओं को दूर करने के लिए आवश्यक होगा।"

न्यायपालिका में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से उत्पन्न चुनौतियाँ

न्यायमूर्ति गवई ने न्यायपालिका में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की बढ़ती भूमिका पर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि एआई-आधारित टूल्स केस प्रबंधन, सूचीबद्धता और अनुसूची निर्धारण में मददगार हो सकते हैं, लेकिन कानूनी शोध और न्यायिक भविष्यवाणी में एआई पर अत्यधिक निर्भरता खतरनाक हो सकती है।

एक बड़ी समस्या यह है कि एआई टूल्स, जैसे कि चैटजीपीटी, नकली केस संदर्भ और गढ़े गए कानूनी तथ्य उत्पन्न कर सकते हैं। न्यायमूर्ति गवई ने बताया कि एआई बड़े पैमाने पर कानूनी डेटा का त्वरित विश्लेषण कर सकता है, लेकिन उसमें स्रोतों की प्रमाणिकता को मानवीय स्तर पर सत्यापित करने की क्षमता नहीं होती, जिससे गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

"कानूनी शोध में एआई पर निर्भर रहना जोखिम भरा हो सकता है, क्योंकि कई बार चैटजीपीटी जैसे प्लेटफार्मों ने नकली केस संदर्भ और गढ़े गए कानूनी तथ्य उत्पन्न किए हैं। जबकि एआई बड़ी मात्रा में कानूनी डेटा को तेजी से संसाधित कर सकता है और त्वरित सार प्रस्तुत कर सकता है, लेकिन उसमें स्रोतों की सत्यता को मानवीय समझ के स्तर पर परखने की क्षमता नहीं होती। इस कारण वकीलों और शोधकर्ताओं ने अनजाने में गैर-मौजूद मामलों या भ्रामक कानूनी उदाहरणों का हवाला दिया है, जिससे पेशेवर शर्मिंदगी और संभावित कानूनी परिणाम उत्पन्न हुए हैं।"

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उन्होंने एआई द्वारा न्यायिक फैसलों की भविष्यवाणी करने की प्रवृत्ति को लेकर भी चिंता व्यक्त की। यह तकनीक न्यायिक निर्णय प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर सकती है और न्याय की नैतिकता पर सवाल खड़े कर सकती है।

"इसके अलावा, एआई का उपयोग अदालत के फैसलों की भविष्यवाणी करने के लिए किया जा रहा है, जिससे इसके न्यायिक निर्णय में भूमिका को लेकर महत्वपूर्ण बहस छिड़ गई है। यह न्याय की मूल भावना से जुड़े मौलिक प्रश्न उठाता है। क्या एक मशीन, जिसमें मानवीय भावनाएँ और नैतिक तर्कशक्ति नहीं है, कानूनी विवादों की जटिलताओं और बारीकियों को वास्तव में समझ सकती है? न्याय का सार अक्सर नैतिक विचारों, सहानुभूति और संदर्भगत समझ में निहित होता है—जो एल्गोरिदम की पहुंच से बाहर हैं। इसलिए, न्यायपालिका में एआई का समावेश सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए ताकि यह तकनीक सहायक उपकरण के रूप में कार्य करे, न कि मानव निर्णय की जगह ले।"

नैतिक दिशा-निर्देशों की आवश्यकता और तकनीक का जिम्मेदार उपयोग

न्यायमूर्ति गवई की टिप्पणी इस बात को रेखांकित करती है कि लाइव-स्ट्रीम की गई अदालती कार्यवाही के दुरुपयोग और कानूनी शोध में एआई के नैतिक मुद्दों से निपटने के लिए एक संगठित दृष्टिकोण आवश्यक है। हालांकि तकनीकी प्रगति से कार्यकुशलता और पहुँच में सुधार हो सकता है, लेकिन इसे न्यायिक प्रणाली की अखंडता बनाए रखते हुए सावधानीपूर्वक लागू किया जाना चाहिए।

न्यायपालिका को पारदर्शिता और सामग्री के जिम्मेदार उपयोग के बीच संतुलन स्थापित करना होगा। इसी प्रकार, एआई को केवल एक सहायक उपकरण के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए, न कि मानवीय निर्णय प्रक्रिया का विकल्प बनाया जाना चाहिए। उचित दिशा-निर्देशों और नैतिक मानकों को लागू करके, न्यायिक प्रणाली प्रौद्योगिकी का लाभ उठा सकती है और न्याय के मौलिक सिद्धांतों की रक्षा कर सकती है।

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