हाल ही में केरल हाईकोर्ट ने यह निर्णय दिया कि आयकर अधिनियम की धारा 148A के तहत शुरू की गई कोई भी पुनर्मूल्यांकन कार्यवाही तब अवैध मानी जाएगी, जब छूटी हुई आय ₹50 लाख से कम हो और नोटिस संबंधित मूल्यांकन वर्ष की समाप्ति के 3 साल बाद जारी किया गया हो।
यह महत्वपूर्ण फैसला न्यायमूर्ति जियाद रहमान ए.ए. द्वारा सुनाया गया, जिन्होंने यह स्पष्ट किया कि एक बार वैधानिक समयसीमा समाप्त हो जाने के बाद कार्यवाही शुरू करना आकलन अधिकारी के अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन है।
“जब आकलन अधिकारी का आदेश अधिकार क्षेत्र से बाहर और समयसीमा से प्रभावित हो, तो संबंधित पक्ष को वैधानिक कार्यवाही की प्रक्रिया से गुज़रने के लिए बाध्य करना आवश्यक नहीं है।”
— न्यायमूर्ति जियाद रहमान ए.ए.
सलीम अबूबकर बनाम आयकर अधिकारी [WP(C) No. 12164/2023] नामक मामले में, याचिकाकर्ता ने आयकर अधिनियम की धारा 148A(b) के तहत जारी पुनर्मूल्यांकन नोटिस को चुनौती दी, जो कि मूल्यांकन वर्ष 2016–17 से संबंधित था। शुरुआत में धारा 133(6) के तहत नोटिस (प्रदर्शनी P1) जारी किया गया था, जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता ने आयकर रिटर्न दाखिल नहीं किया।
याचिकाकर्ता ने अपने उत्तर (प्रदर्शनी P2) में स्पष्ट किया कि ग्राम पंचायत से नीलामी के जरिए लिए गए सार्वजनिक बाजार और सुविधा केंद्र से प्राप्त आय कर योग्य सीमा से कम थी, इसीलिए रिटर्न दाखिल नहीं किया गया। इसके अलावा, नोटिस में उल्लिखित राशि का एक बड़ा भाग — ₹26,47,575 — पंचायत को पहले ही भुगतान किया जा चुका था, जिससे शुद्ध आय कर सीमा से कम थी।
इसके बावजूद, धारा 148A(b) के तहत नोटिस (प्रदर्शनी P4) जारी किया गया, जो बाद में मूल्यांकन आदेश (प्रदर्शनी P6) में परिणत हुआ। याचिकाकर्ता ने आपत्ति जताई कि कार्यवाही धारा 149(1) में निर्धारित सीमा से बाहर है।
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलील से सहमति जताई। धारा 149(1) के अनुसार, पुनर्मूल्यांकन कार्यवाही संबंधित मूल्यांकन वर्ष की समाप्ति के तीन वर्षों के भीतर शुरू की जानी चाहिए — जब तक कि छूटी हुई आय ₹50 लाख से अधिक न हो, ऐसे मामलों में समयसीमा दस साल तक हो सकती है। चूंकि इस मामले में छूटी हुई आय ₹50 लाख से कम थी, इसलिए लम्बी समयसीमा लागू नहीं होती।
“यह मूल्यांकन आदेश से स्पष्ट है कि छूटी हुई आय ₹50 लाख से कम थी, इसलिए धारा 149(1)(b) में निर्दिष्ट विस्तारित अवधि लागू नहीं होती।”
— केरल हाईकोर्ट की पीठ
कोर्ट ने आयकर विभाग द्वारा प्रस्तुत सुप्रीम कोर्ट के अंशुल जैन बनाम प्रधान आयकर आयुक्त [449 आईटीआर 251] में दिए गए निर्णय पर भरोसा नहीं किया, यह कहते हुए कि उस मामले की परिस्थितियां भिन्न थीं और सीमा अवधि का प्रश्न अधिकार क्षेत्र से संबंधित होता है।
अंततः कोर्ट ने यह माना कि समयसीमा समाप्त होने के बाद शुरू की गई पुनर्मूल्यांकन कार्यवाही अधिकार क्षेत्र से बाहर है और इस आधार पर मूल्यांकन आदेश (प्रदर्शनी P6) को रद्द कर दिया।
“यह एक वैधानिक रोक है जो अधिनियम में निर्धारित समयसीमा के कारण उत्पन्न होती है... और इसे निर्धारित करने के लिए किसी विस्तृत जांच की आवश्यकता नहीं है।”
— केरल हाईकोर्ट
केस का शीर्षक: सलीम अबूबकर बनाम आयकर अधिकारी
केस संख्या: WP(C) संख्या 12164 OF 2023
याचिकाकर्ता के वकील: बाबू एस. नायर और स्मिता बाबू
प्रतिवादी के वकील: क्रिस्टोफर अब्राहम (आयकर विभाग)