सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि आर्बिट्रेशन एग्रीमेंट के गैर-हस्ताक्षरकर्ता, कोर्ट द्वारा मध्यस्थ (Arbitrator) की नियुक्ति और धारा 11(6) के तहत मामला निपटाए जाने के बाद, आर्बिट्रेशन कार्यवाही में शामिल नहीं हो सकते।
यह फैसला कमल गुप्ता एवं एक अन्य बनाम एल.आर. बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य विवाद में आया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आर्बिट्रेशन केवल समझौते के पक्षकारों के बीच होता है और धारा 35 के तहत निर्णय (Award) केवल उन्हीं पक्षों या उनके माध्यम से दावा करने वालों पर बाध्यकारी होता है।
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न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति अतुल एस. चंदुरकर की पीठ ने कहा:
“जब निर्णय गैर-पक्षकारों पर बाध्यकारी नहीं होगा, तब उन्हें आर्बिट्रेशन कार्यवाही में उपस्थित रहने की अनुमति देना कानून में मान्य नहीं है।”
कोर्ट ने माना कि एक बार मध्यस्थ की नियुक्ति हो जाने के बाद, कोर्ट फंक्टस ऑफिशियो (functus officio) हो जाता है और निपटाए गए मामले में नई अर्जी पर सुनवाई नहीं कर सकता। साथ ही, गैर-हस्ताक्षरकर्ताओं को शामिल करने की अनुमति धारा 42A का उल्लंघन है, जो आर्बिट्रेशन कार्यवाही की गोपनीयता को अनिवार्य करता है।
दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द करते हुए, जिसमें गैर-हस्ताक्षरकर्ताओं को उपस्थित रहने की अनुमति दी गई थी, सुप्रीम कोर्ट ने इन आवेदनों को “कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग” बताया और प्रतिवादियों पर ₹3 लाख का जुर्माना लगाया, जो दो सप्ताह के भीतर सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन को देना होगा।
केस का शीर्षक: कमल गुप्ता एवं अन्य बनाम मेसर्स एल.आर. बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य आदि।
न्यायक्षेत्र: सिविल अपीलीय न्यायक्षेत्र
अपील संख्या: विशेष अनुमति याचिका (सी) संख्या 4775-4779/2025 से उत्पन्न सिविल अपीलें
निर्णय की तिथि: 13 अगस्त 2025