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वन स्टॉप सेंटर महिलाओं और बच्चों के लिए असफल: दिल्ली हाईकोर्ट ने सख्त आदेश जारी किए

Shivam Y.

वन स्टॉप सेंटर महिलाओं और बच्चों के लिए असफल: दिल्ली हाईकोर्ट ने सख्त आदेश जारी किए

दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 जुलाई को महिलाओं और बच्चों के लिए बने वन स्टॉप सेंटरों (OSCs) के संचालन में दिल्ली सरकार और पुलिस की भूमिका पर असंतोष जताया।

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मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने कहा कि सरकार और पुलिस ने आवश्यक कदम नहीं उठाए, जो इन सेंटरों के प्रभावी संचालन के लिए जरूरी थे। ये सेंटर महिलाओं और बच्चों को कानूनी मदद, चिकित्सा सहायता और पुलिस सहायता देने के लिए बनाए गए थे।

“इस मामले में जो आवश्यक कदम और कार्यवाही उठाई जानी चाहिए थी, वह दिल्ली सरकार और पुलिस द्वारा नहीं उठाई गई,”
— दिल्ली हाईकोर्ट की पीठ

एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन द्वारा दाखिल लोकहित याचिका (PIL) पर सुनवाई के दौरान वकील प्रभसहाय कौर ने कोर्ट को इस समस्या से अवगत कराया। याचिका में स्टाफ की कमी और अव्यवस्थित ढांचे का मुद्दा उठाया गया। वकील कौर ने 24 जून को हिंदुस्तान टाइम्स में छपी रिपोर्ट का भी हवाला दिया, जिसमें इन सेंटरों की खामियों को उजागर किया गया था।

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इसके जवाब में, कोर्ट ने दिल्ली सरकार और पुलिस को कई सख्त निर्देश दिए:

1. जन-जागरूकता और पहुंच

कोर्ट ने आदेश दिया कि लोगों को इन सेंटरों के बारे में जागरूक करने के लिए व्यापक अभियान चलाया जाए। इसमें शामिल हैं:

  • दो प्रमुख अखबारों (हिंदी और अंग्रेज़ी) में विज्ञापन प्रकाशित करना।
  • स्कूल, अस्पताल, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, पुलिस स्टेशन, बाजार और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर स्पष्ट और दृश्य संकेत बोर्ड लगाना।

“इन बोर्ड और विज्ञापनों में उपलब्ध सुविधाओं के साथ-साथ आपातकालीन हेल्पलाइन नंबर भी स्पष्ट रूप से दर्शाया जाए,”
— दिल्ली हाईकोर्ट

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2. मानक संचालन प्रक्रिया (SOPs)

कोर्ट ने कहा कि बाल गर्भावस्था और बाल विवाह से संबंधित जो SOPs विकसित की गई हैं, उन्हें सभी संबंधित कर्मियों, पुलिस और सेंटर स्टाफ के साथ साझा किया जाए। इसके लिए आवश्यक सर्कुलर जारी किए जाएं ताकि इन प्रक्रियाओं का पालन सुनिश्चित किया जा सके।

3. स्टाफिंग और नियुक्तियां

कोर्ट ने स्टाफ की भारी कमी को देखते हुए निर्देश दिया:

  • सभी रिक्त पदों को तुरंत भरा जाए।
  • यदि नियमित नियुक्तियों में समय लगे, तो ठेका (contract) पर नियुक्ति की जाए।
  • लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि ऐसे ठेके पर नियुक्त व्यक्ति को नियमित सेवा का दावा करने का अधिकार नहीं होगा।

“किसी भी वन स्टॉप सेंटर में पर्याप्त स्टाफ न होने से, उस उद्देश्य की पूर्ति नहीं होगी जिसके लिए ये सेंटर बनाए गए हैं,”
— दिल्ली हाईकोर्ट

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4. वेतन और आधारभूत ढांचा

कोर्ट ने दिल्ली सरकार को निर्देशित किया कि:

  • OSC में कार्यरत कर्मियों को समय पर वेतन दिया जाए।
  • सेंटरों के बुनियादी ढांचे की सभी कमियों को तत्काल दूर किया जाए।

“सुनिश्चित किया जाए कि सेंटर किसी भी आवश्यक ढांचे की कमी से ग्रस्त न रहें,”
— दिल्ली हाईकोर्ट

5. नोडल अधिकारी की नियुक्ति

कोर्ट ने निर्देश दिया कि महिला एवं बाल विकास विभाग के प्रमुख सचिव द्वारा एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति की जाए, जो सभी विभागों और संबंधित पक्षों के बीच समन्वय स्थापित करे ताकि सेंटरों का कार्य प्रभावी रूप से हो सके।

अंत में, कोर्ट ने दिल्ली सरकार को आदेश दिया कि वह आज के आदेश के अनुपालन में उठाए गए कदमों का विस्तृत हलफनामा दाखिल करे। इस मामले की अगली सुनवाई अब 15 अक्टूबर को होगी।

मामले का नाम: बचपन बचाओ आंदोलन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य