राजस्थान हाईकोर्ट ने कोटा में विशेष रूप से बढ़ती छात्र आत्महत्याओं के मामले में स्वप्रेरित जनहित याचिका (सुओ मोटू केस) में गहरी चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा कि राज्य में कोचिंग सेंटरों को नियंत्रित करने के लिए अब तक कोई उचित कानून नहीं बनाया गया है, जबकि यह याचिका 2016 से लंबित है।
मुख्य न्यायाधीश मनीन्द्र मोहन श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति मुकेश राजपुरोहित की पीठ ने कहा कि कोर्ट ने समय-समय पर कोचिंग संस्थानों की दयनीय स्थिति में सुधार लाने के लिए कई निर्देश जारी किए हैं।
"हम यह भी पाते हैं कि वर्ष 2025 में ही लगभग 14 आत्महत्याएं हो चुकी हैं। यह हमारे लिए गंभीर चिंता का विषय है। यह कोर्ट समय-समय पर इस दयनीय स्थिति में बदलाव लाने के लिए विभिन्न आदेश पारित करता रहा है, जो इस कोर्ट द्वारा पूर्व में जारी किए गए कई निर्देशों से परिलक्षित होता है।"
— राजस्थान हाईकोर्ट
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पहले की सुनवाई में केंद्र सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों को तब तक लागू करने की प्रार्थना की गई थी जब तक कि उचित कानून नहीं बन जाता। हालांकि, कोर्ट को कोटा के एक कोचिंग संस्थान संचालक की ओर से इसका विरोध भी प्राप्त हुआ।
प्रतिवादी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले से ही शैक्षणिक संस्थानों/कोचिंग संस्थानों में आत्महत्याओं के मुद्दे पर सुनवाई कर रहा है और यह मामला 23 मई 2025 को फिर सूचीबद्ध है। इसके साथ ही प्रतिवादी इस सुओ मोटू याचिका को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने की अर्जी दायर करने की योजना भी बना रहा है। इस कारण कोर्ट से अनुरोध किया गया कि वह फिलहाल मामले में कोई कार्रवाई न करे और सुप्रीम कोर्ट के अगले आदेशों की प्रतीक्षा करे।
"चूंकि यह याचिका 2016 से लंबित है और अब तक कोई कानून नहीं बनाया गया है, यह कोर्ट आज ही एक विस्तृत आदेश पारित कर केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों को लागू करने का निर्देश देने के लिए इच्छुक था। लेकिन कोटा में हुई आत्महत्याओं के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा संज्ञान लिए जाने और 23.05.2025 को सुनवाई निर्धारित होने के कारण, तथा प्रतिवादी पक्ष द्वारा इसे सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने की योजना के मद्देनज़र हम अभी इस पर कोई आदेश पारित करने से रोकते हैं।"
— राजस्थान हाईकोर्ट
कोर्ट ने अब इस मामले को दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।
शीर्षक: स्वप्रेरणा बनाम राजस्थान राज्य, तथा अन्य संबंधित याचिका