केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि तेजी से हो रहे शहरीकरण के दौर में रिहायशी और व्यावसायिक क्षेत्रों के बीच स्पष्ट सीमा तय करना अब बेहद कठिन हो गया है। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति पी.एम. मनोज ने कोच्चि की गिरी नगर हाउसिंग कॉलोनी में व्यवसायीकरण को लेकर दायर एक याचिका को खारिज करते हुए की।
कोर्ट ने कहा:
"वैश्वीकरण और तेजी से शहरी विकास के संदर्भ में... कस्बों, शहरों और महानगरों में रिहायशी और गैर-रिहायशी परिसरों के बीच स्पष्ट अंतर करना अब बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया है... रिहायशी क्षेत्रों में भी व्यावसायिक प्रतिष्ठान अनिवार्य रूप से उभर कर सामने आए हैं... ऐसा उपयोग अब कोई अपवाद नहीं बल्कि आधुनिक शहरी जीवन की व्यावहारिक आवश्यकता बन गया है।"
यह याचिका उन निवासियों द्वारा दायर की गई थी जो रिहायशी घरों के व्यावसायिक उपयोग का विरोध कर रहे थे। उनका तर्क था कि यह ज़मीन सरकार द्वारा एर्नाकुलम को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी को केवल रिहायशी उपयोग के लिए दी गई थी, जैसा कि पट्टा और बिक्री विलेख में स्पष्ट है। ये मकान निम्न और मध्यम आय वर्ग के परिवारों के लिए बनाए गए थे और किसी भी तरह की व्यावसायिक गतिविधि इस उद्देश्य का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि समय के साथ कई मकानों को कार्यालयों और व्यावसायिक स्थानों में बदल दिया गया और स्थानीय अधिकारियों ने इसकी अनुमति दी, जो भूमि आवंटन नियमों के खिलाफ है। उन्होंने शिकायत की कि यह परिवर्तन उनके शांतिपूर्ण जीवन के अधिकार को प्रभावित करता है और शोर, ट्रैफिक, और प्रदूषण जैसी समस्याएं पैदा करता है।
वहीं प्रतिवादियों ने बताया कि सोसाइटी पहले ही केरल भूमि आवंटन नियम 1964 के नियम 24 के तहत छूट मांगने के लिए सरकार से अनुरोध कर चुकी है। उन्होंने कहा कि कई परिवार अपने भवन किराये से मिलने वाली आमदनी पर निर्भर हैं और उनके लिए यह उपयोग जीवन यापन के लिए आवश्यक है।
कोर्ट ने संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए कहा:
"इस मानवीय पक्ष को ध्यान में रखना ज़रूरी है... याचिकाकर्ता जो आर्थिक रूप से बेहतर स्थिति में हैं, वे प्रभावित नहीं हो सकते, लेकिन अन्य लोग अपने किरायेदारों पर निर्भर हैं।"
कोर्ट ने कहा कि जब एक बार सोसाइटी ने इमारतों को अपने सदस्यों को सौंप दिया, तो ज़मीन आवंटन का उद्देश्य पूरा हो गया। कोर्ट ने यह भी माना कि आज की जीवनशैली में मध्यम वर्ग के लिए बिना वैकल्पिक आमदनी के जीना मुश्किल हो गया है।
कोर्ट ने कहा:
"रिहायशी सोसाइटी में गैर-रिहायशी उपयोग का विरोध करना आज के शहरी जीवन की व्यावहारिक सच्चाई से आँखें मूंदना है... ऐसे विरोध व्यक्तिगत नाराज़गी या निहित स्वार्थ से प्रेरित लगते हैं, न कि किसी सामुदायिक चिंता से।"
कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि यह विवाद मुख्य रूप से सोसाइटी और उसके सदस्यों के बीच का मामला है और याचिकाकर्ताओं को उच्च न्यायालय आने से पहले सहकारी समिति अधिनियम के तहत उपाय अपनाने चाहिए थे।
हालांकि कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी, लेकिन चेतावनी भी दी:
"यह निर्णय व्यावसायिक उपयोग की खुलेआम अनुमति नहीं देता... सरकार और कोच्चि निगम को सतर्क रहना चाहिए कि आगे कोई परिवर्तन निवासियों के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमामय जीवन के अधिकार को प्रभावित न करे।"
केस संख्या: WP(C) 1816 of 2025 और COC751 of 2022
केस का शीर्षक: कुरियन अब्राहम और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य और संबंधित मामले