गुरुवार, 17 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में एक सम्मान हत्या के मामले में हत्या की जगह "गैर-इरादतन हत्या" का आरोप लगाने को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट की कड़ी आलोचना की।
मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे अय्यूब अली नामक एक व्यक्ति ने दायर किया था। याचिकाकर्ता के 26 वर्षीय पुत्र ज़िया उर रहमान की कथित तौर पर उसकी प्रेमिका के परिवार वालों ने डंडों और रॉड से पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। दावा किया गया कि यह घटना अंतरधार्मिक संबंध के चलते हुई।
याचिकाकर्ता ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें पुलिस को भारतीय दंड संहिता की धारा 304 (गैर-इरादतन हत्या) के तहत आरोप लगाने की अनुमति दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस अपराध को कमतर श्रेणी में रखने को गलत ठहराया।
"क्या हमारे समाज में किसी को पसंद करना अपराध है? क्या उन्हें इसलिए छिपना चाहिए क्योंकि वे अलग-अलग धर्मों से हैं? .....किसी को डंडों से पीटा जाता है और कहा जाता है कि मारने की कोई नीयत नहीं थी?"
— मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना
जब राज्य की ओर से वकील ने तर्क दिया कि मृतक को मारने की कोई नीयत नहीं थी, तो सुप्रीम कोर्ट इससे सहमत नहीं हुआ। कोर्ट ने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का अवलोकन करने के बाद कहा कि ज़िया उर रहमान को 14 गंभीर चोटें आई थीं और उसकी मृत्यु शॉक और रक्तस्राव (haemorrhage) के कारण हुई थी।
"हमें आश्चर्य है कि चार्जशीट धारा 304 के तहत क्यों दायर की गई और फिर आरोप तय करते समय ट्रायल कोर्ट ने भी धारा 304 को ही लागू किया।"
— सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
कोर्ट ने यह भी देखा कि ट्रायल कोर्ट ने यह तर्क दिया था कि चूंकि मृतक को मारने में कोई धारदार हथियार इस्तेमाल नहीं हुआ था, इसलिए धारा 302 (हत्या) लागू नहीं होती। सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार को कमजोर और कानूनी दृष्टि से अनुचित बताया।
सुप्रीम कोर्ट ने इस घटना को एक “स्पष्ट सम्मान हत्या का मामला” बताया और इलाहाबाद हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट दोनों के फैसलों को रद्द कर दिया। कोर्ट ने आदेश दिया कि अब आरोपी पर धारा 302 और धारा 34 (साझा मंशा से अपराध) के तहत मुकदमा चलाया जाएगा।
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इसके साथ ही कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता से परामर्श करके एक विशेष लोक अभियोजक (Special Public Prosecutor) की नियुक्ति करे ताकि मामले की निष्पक्ष और प्रभावी सुनवाई हो सके। यह प्रक्रिया छह सप्ताह के भीतर पूरी की जानी चाहिए।
"मामले में अब धारा 302 पढ़ी गई धारा 34 आईपीसी के तहत नया आरोप तय किया जाएगा और ट्रायल उसी के अनुसार चलेगा।"
— सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस आदेश में की गई टिप्पणियों का प्रभाव ट्रायल पर नहीं पड़ेगा और यह निष्पक्षता के साथ ही आगे बढ़ेगा।
अंत में, कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव से यह सुनिश्चित करने के लिए पालना रिपोर्ट (Compliance Report) भी मांगी है कि उसके द्वारा दिए गए सभी निर्देशों का पालन हुआ है।
मामले का नाम: अय्यूब अली बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य
एसएलपी (क्रिमिनल) संख्या: 13433/2024