भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A के दुरुपयोग को रोकने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा तय की गई गाइडलाइंस को मंजूरी दे दी है। शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि इन गाइडलाइंस को सभी जिलों में लागू किया जाए, जिनमें दो महीने का "कूलिंग-ऑफ" पीरियड और फैमिली वेलफेयर कमेटी (FWC) की अनिवार्य भागीदारी शामिल है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ ने कहा:
“इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 13.06.2022 को पारित फैसले में धारा 498A IPC के दुरुपयोग से बचाव हेतु ‘फैमिली वेलफेयर कमेटी’ के गठन से संबंधित जो गाइडलाइंस बनाई गई हैं, वे प्रभावी रहेंगी और संबंधित अधिकारी इन्हें लागू करेंगे।”
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्रिमिनल रिवीजन नंबर 1126 ऑफ 2022 की सुनवाई के दौरान ये निर्देश जारी किए थे। यह गाइडलाइंस सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले सोशल एक्शन फोरम फॉर मानव अधिकार बनाम यूनियन ऑफ इंडिया से प्रेरित हैं।
“498A IPC के अंतर्गत FIR दर्ज होने के बाद 2 महीने तक किसी भी आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, बल्कि मामला पहले फैमिली वेलफेयर कमेटी को भेजा जाएगा।”
- कूलिंग-ऑफ पीरियड: FIR दर्ज होने के बाद दो महीने तक गिरफ्तारी या जबरन कोई कार्रवाई नहीं होगी।
- FWC को रेफरल: सभी योग्य मामलों को FWC के पास मध्यस्थता के लिए भेजा जाएगा।
- उपयुक्त मामले: केवल 498A IPC के तहत दर्ज मामले, जिनमें IPC की धारा 307 जैसी गंभीर धाराएं न हों।
- FWC की संरचना: हर जिले में कम से कम 3 सदस्यों की कमेटी होगी—जिनमें युवा वकील, सामाजिक कार्यकर्ता, रिटायर्ड जज या वरिष्ठ अधिकारियों की शिक्षित पत्नियां शामिल हो सकती हैं।
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- साक्ष्य नहीं बन सकते: कमेटी के सदस्य कभी भी कोर्ट में गवाह नहीं बनेंगे।
- अनिवार्य बातचीत: दोनों पक्षों को 4 बुजुर्ग सदस्यों के साथ उपस्थित होकर संवाद करना अनिवार्य होगा।
- समाप्ति के बाद रिपोर्ट: दो महीने की प्रक्रिया के बाद विस्तृत रिपोर्ट मजिस्ट्रेट या पुलिस को सौंपी जाएगी।
- पुलिस की सीमित भूमिका: पुलिस केवल प्रारंभिक जांच जैसे मेडिकल रिपोर्ट या गवाहों के बयान ले सकती है, गिरफ्तारी नहीं कर सकती।
- विशेष प्रशिक्षण: लीगल सर्विस अथॉरिटी समय-समय पर FWC सदस्यों को प्रशिक्षण देगी।
- सेवा प्रकृति: FWC सदस्य समाजसेवा के रूप में कार्य करेंगे या न्यूनतम मानदेय लेंगे।
- मामलों का निपटारा: समझौता होने की स्थिति में जिला न्यायाधीश आपराधिक मामले बंद कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट जिस केस की सुनवाई कर रही थी उसमें पत्नी ने पति और उसके परिवार पर झूठे आपराधिक मामले दर्ज कराए थे, जिसके कारण पति को 109 दिन और उसके पिता को 103 दिन जेल में रहना पड़ा।
“जो पीड़ा उन्होंने झेली, उसकी भरपाई किसी भी रूप में नहीं की जा सकती,” कोर्ट ने कहा और यह भी जोड़ा कि इस प्रकार के मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप जरूरी है।
कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 का उपयोग करते हुए आपराधिक मामलों को खारिज किया और विवाह को समाप्त घोषित किया।
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“पत्नी और उसके माता-पिता को पति और उसके परिवार से सार्वजनिक माफी मांगनी होगी,” कोर्ट ने नैतिक आधार पर यह आदेश दिया।
केस शीर्षक: शिवांगी बंसल बनाम साहिब बंसल