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सुप्रीम कोर्ट: एनआईए एक्ट के तहत 90 दिनों की देरी के कारण अपील खारिज नहीं की जा सकती

Shivam Y.

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि एनआईए एक्ट के तहत आरोपी या पीड़ित द्वारा दायर की गई अपील को केवल 90 दिनों से अधिक देरी के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता। पूरी जानकारी पढ़ें।

सुप्रीम कोर्ट: एनआईए एक्ट के तहत 90 दिनों की देरी के कारण अपील खारिज नहीं की जा सकती

4 जनवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने फैसला सुनाया कि नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) एक्ट, 2008 के तहत आरोपी या पीड़ित द्वारा दायर की गई अपील को केवल इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि उसकी 90 दिनों से अधिक की देरी को माफ नहीं किया जा सकता।

इस महत्वपूर्ण फैसले से उन व्यक्तियों को राहत मिलेगी जो एनआईए अधिनियम के तहत आदेशों को चुनौती देना चाहते हैं।

यह निर्णय मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार, और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ द्वारा सुनाया गया, जो कि एनआईए अधिनियम, 2008 की धारा 21(5) को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी।

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कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा:

"आरोपी या पीड़ित द्वारा दायर की गई अपील को केवल इस आधार पर खारिज नहीं किया जाएगा कि देरी 90 दिनों से अधिक हो गई है।"

इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को निर्देश दिया कि वे अगली सुनवाई से पहले तीन पृष्ठों से अधिक की लिखित प्रस्तुतियाँ दाखिल न करें।

एनआईए अधिनियम, 2008 की धारा 21(5) क्या कहती है?

एनआईए अधिनियम की धारा 21(5) के अनुसार:

  • अपील 30 दिनों के भीतर दाखिल की जानी चाहिए, जो उस निर्णय, सजा, या आदेश की तिथि से शुरू होगी।
  • यदि उचित कारण हो तो उच्च न्यायालय 30 दिनों की अवधि के बाद भी अपील स्वीकार कर सकता है।
  • हालांकि, 90 दिनों की अवधि समाप्त होने के बाद कोई अपील स्वीकार नहीं की जाएगी।

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यह धारा अपील दाखिल करने के लिए कठोर समय सीमा निर्धारित करती है, जिससे आरोपी या पीड़ितों के लिए न्याय पाने में कठिनाई हो सकती है यदि वे 90 दिनों की समय सीमा चूक जाते हैं।

यह निर्णय क्यों महत्वपूर्ण है?

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान दिया गया, जिसमें "गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन (UAPA) अधिनियम, 2019" को भी चुनौती दी गई थी। इस फैसले से यह सुनिश्चित होगा कि न्याय तक पहुंच केवल प्रक्रिया संबंधी देरी के कारण बाधित न हो।

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न्याय तक व्यापक पहुंच: अब प्रक्रियागत देरी के कारण अपील खारिज नहीं की जाएगी, जिससे अधिक लोगों को न्याय पाने का अवसर मिलेगा।

न्यायिक विवेक का विस्तार: उच्च न्यायालयों को अब 90 दिनों से अधिक की देरी को भी माफ करने का अधिकार मिलेगा।

यूएपीए मामलों पर असर: यह निर्णय एनआईए अधिनियम के साथ-साथ यूएपीए कानून के तहत दर्ज मामलों पर भी प्रभाव डाल सकता है।

मामले का विवरण : सजल अवस्थी बनाम भारत संघ W.P.(C) No. 1076/20

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