Logo
Court Book - India Code App - Play Store

advertisement

चुनाव रिकॉर्ड्स तक जनता की पहुंच सीमित करने वाले संशोधन को चुनौती: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया

Shivam Y.

आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने चुनाव नियमों में संशोधन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। जानें कैसे यह संशोधन जनता के चुनावी रिकॉर्ड्स तक पहुंच को प्रतिबंधित करता है और संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ क्यों है।

चुनाव रिकॉर्ड्स तक जनता की पहुंच सीमित करने वाले संशोधन को चुनौती: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार और भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) को एक जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया है। यह याचिका पारदर्शिता कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने दाखिल की है, जो चुनाव संचालन नियम, 1961 में 2024 में किए गए संशोधन को चुनौती देती है। यह संशोधन चुनाव से जुड़े दस्तावेजों (जैसे सीसीटीवी फुटेज, अधिकारियों की रिपोर्ट्स) को जनता की नज़रों से दूर करता है। इस मामले को कांग्रेस नेता जयराम रमेश की समान याचिका के साथ जोड़ दिया गया है। अगली सुनवाई 17 मार्च, 2025 को होगी।

Read Also - सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में मामले लंबित होने पर जताई चिंता, तत्काल न्यायाधीशों की नियुक्ति पर दिया जोर

मामले की मुख्य बातें

दिसंबर 2024 में, चुनाव संचालन नियम के नियम 93(2)(a) में बदलाव किया गया। पहले यह नियम कहता था:

"चुनाव से संबंधित सभी अन्य कागजात जनता के निरीक्षण के लिए खुले रहेंगे।"
संशोधन के बाद अब यह है:
"इन नियमों में निर्दिष्ट चुनाव से संबंधित सभी अन्य कागजात जनता के निरीक्षण के लिए खुले रहेंगे।"

इस छोटे से बदलाव का मतलब है कि अब अधिकारी चुनावी रिकॉर्ड्स (जैसे पोलिंग स्टेशन का सीसीटीवी फुटेज, अधिकारियों की डायरी) को छिपा सकते हैं, जब तक कि वे नियमों में स्पष्ट रूप से नामित न हों। अंजलि भारद्वाज का कहना है कि यह संशोधन संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) का उल्लंघन है।

Read Also - सुप्रीम कोर्ट ने अपार्टमेंट खरीदार समझौतों में एकतरफा जब्ती खंड को अनुचित व्यापार व्यवहार घोषित किया

"यह संशोधन जनता के चुनावी दस्तावेजों तक पहुंच को अनुचित तरीके से सीमित करता है, जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।"
— याचिका में दावा

संशोधन क्यों है चिंता का विषय?

पारदर्शिता में कमी: 2023 के रिटर्निंग ऑफिसर हैंडबुक के मुताबिक, फॉर्म 17C (मतदान रिकॉर्ड) और सीसीटीवी फुटेज जैसे दस्तावेज पहले जनता को उपलब्ध कराए जाते थे। नए नियम में इन्हें "गोपनीय" बना दिया गया है।

जवाबदेही खत्म होना: चुनाव में धांधली के आरोपों की जांच के लिए ये दस्तावेज अहम सबूत होते हैं। इनके बिना आम नागरिक चुनाव प्रक्रिया पर सवाल नहीं उठा सकते।

ईसीआई के अपने नियमों से विरोधाभास: चुनाव आयोग ने पहले ही अपने हैंडबुक में इन दस्तावेजों के संरक्षण का निर्देश दिया था, लेकिन नया संशोधन इसके उलट है।

Read Also - सुप्रीम कोर्ट ने गुरमीत राम रहीम की 2015 बेअदबी मामलों में ट्रायल रोकने की याचिका खारिज की

याचिका में क्या मांगें हैं?

याचिका में मुख्य रूप से चार प्रमुख मांगें रखी गई हैं। सबसे पहले, याचिकाकर्ता ने संशोधित नियम 93(2)(a) को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की है, क्योंकि यह नियम जनता के चुनावी दस्तावेजों तक पहुंच को अनुचित तरीके से सीमित करता है। दूसरी मांग यह है कि चुनावी दस्तावेजों, जैसे सीसीटीवी फुटेज और अधिकारियों की रिपोर्ट्स, की प्रतियां जनता को उपलब्ध कराई जाएं ताकि चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रहे। तीसरी मांग में दस्तावेजों के सार्वजनिक निरीक्षण के लिए एक स्पष्ट समयसीमा तय करने का अनुरोध किया गया है, ताकि जानकारी देने में अनावश्यक देरी न हो। अंत में, याचिका में रिटर्निंग ऑफिसर हैंडबुक से उन अनावश्यक प्रतिबंधों को हटाने की मांग की गई है, जो जनता के चुनावी जानकारी तक पहुंच को रोकते हैं। ये मांगें चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

Read Also - अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को अनिश्चितकाल तक हिरासत में रखने के बजाय निर्वासित क्यों नहीं किया जा रहा? – सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। यह फैसला भविष्य में चुनावी पारदर्शिता और प्रशासनिक छूट के बीच संतुलन तय करेगा।

मामला: अंजलि भारद्वाज बनाम भारत संघ | डब्ल्यूपी(सी) नंबर 000083/2025


Advertisment

Recommended Posts