सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में भारतीय वायुसेना (IAF) से यह गंभीर सवाल उठाया कि उसने एक सौतेली मां को फैमिली पेंशन का लाभ क्यों नहीं दिया, जबकि उसने दिवंगत अधिकारी को छह साल की उम्र से पाला था।
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने वायुसेना के वकील से महत्वपूर्ण सवाल किया,
"मान लीजिए एक बच्चे का जन्म होता है और कुछ दिनों या महीनों में मां की किसी जटिलता के कारण मृत्यु हो जाती है। फिर पिता दोबारा विवाह करता है और सौतेली मां बच्चे को पालती है — दूध पिलाने की अवस्था से लेकर उसके वायुसेना, नौसेना आदि का अधिकारी बनने तक। अगर उसने वास्तव में बच्चे की परवरिश की है, तो क्या वह मां नहीं है?"
Read Also:- सुप्रीम कोर्ट : आईबीसी समाधान योजना में शामिल नहीं किए गए दावों के लिए पंचाट पुरस्कार लागू नहीं किया जा सकता
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने इस मामले में दोनों पक्षों को अपना पक्ष विस्तार से रखने का समय देते हुए कार्यवाही स्थगित कर दी।
जस्टिस सूर्यकांत ने आगे निर्देश दिया,
"ऐसे तुलनात्मक क़ानून, नियम और विनियम ढूंढिए जहां अदालतों ने 'मां' की परिभाषा को विस्तृत किया है। देखें कि सामाजिक और कल्याणकारी क़ानूनों के तहत यह किस तरह जरूरी बन जाता है कि परिभाषा को उदार दृष्टिकोण से देखा जाए।"
दलीलों के दौरान वायुसेना के वकील ने कहा कि जैविक मां स्वाभाविक रूप से सौतेली मां से अलग होती है। उन्होंने यह भी कहा कि वायुसेना के 1961 के पेंशन विनियमों में यह स्पष्ट है कि कौन-कौन पेंशन के लिए पात्र हैं और उसमें सौतेली मां शामिल नहीं है।
हालांकि, जस्टिस सूर्यकांत ने इस पर कहा कि ये नियम संविधान द्वारा निर्धारित नहीं हैं।
"यह भारत के संविधान की बात नहीं है। यह नियम आपने खुद बनाए हैं। इस नियम के पीछे क्या तर्क है? आप किस आधार पर तकनीकी रूप से सौतेली मां को विशेष पेंशन या फैमिली पेंशन से वंचित करना चाहते हैं?"
वायुसेना के वकील ने धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) से जुड़े कुछ सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि सौतेली मां को 'मां' के रूप में मान्यता नहीं दी गई है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने स्पष्ट किया कि धारा 125 CrPC का संदर्भ
"कुछ अलग"
है और इसे इस मामले से नहीं जोड़ा जा सकता।
कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के कुछ फैसलों में 'मां' की परिभाषा का विस्तार किया गया है और लाभ प्रदान किए गए हैं।
मामला उस समय से जुड़ा है जब दिवंगत अधिकारी की जैविक मां का निधन तब हुआ जब वह मात्र छह वर्ष का था। इसके बाद उसके पिता ने दोबारा विवाह किया और अपीलकर्ता (सौतेली मां) ने उसे पूरा पालन-पोषण दिया। 2008 तक वह वायुसेना के कैंप में 'एयरमैन' के रूप में सेवा कर रहा था।
लेकिन 30 अप्रैल 2008 को उसकी मृत्यु हो गई। कारण एलुमिनियम फॉस्फाइड विषाक्तता (aluminium phosphide poisoning) बताया गया, जिसे आंतरिक जांच के बाद 'आत्महत्या' करार दिया गया।
2010 में वायुसेना रिकॉर्ड कार्यालय ने अपीलकर्ता के 'विशेष पारिवारिक पेंशन' के दावे को खारिज कर दिया। उसे 'सामान्य पारिवारिक पेंशन' भी नहीं दी गई क्योंकि उसके माता-पिता की संयुक्त आय तय सीमा (करीब 30,000 रुपये वार्षिक) से अधिक (करीब 84,000 रुपये वार्षिक) थी।
अपनी याचिका खारिज होने के बाद अपीलकर्ता ने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण, कोच्चि का रुख किया। लेकिन वहां भी उसकी याचिका अस्वीकार कर दी गई, यह कहते हुए कि पेंशन देने के मामले में सौतेली मां को 'मां' नहीं माना जा सकता। साथ ही उसकी आय सीमा भी तय मानकों से अधिक पाई गई।
इसके बाद अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में न्याय की गुहार लगाई।
केस का शीर्षक: जयश्री वाई जोगी बनाम भारत संघ और अन्य, डायरी संख्या 53874-2023
अपीलकर्ता की ओर से उपस्थित वकील: सिद्धार्थ सांगल (एओआर) के साथ अधिवक्ता ऋचा मिश्रा, हर्षिता अग्रवाल और मुस्कान मंगला।
प्रतिवादी पक्ष की ओर से उपस्थित: एएसजी केएम नटराज, वरिष्ठ अधिवक्ता शैलेश मडियाल, एओआर मुकेश कुमार मारोरिया और अधिवक्तागण एस एस रेबेलो, देबाशीष भरूखा, रमन यादव, प्रसंजीत महापात्रा और अनुज श्रीनिवास उदुपा।