सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि समझौता डिक्री से जुड़े मामले में कोई पक्षकार सीधे अपीलीय न्यायालय नहीं जा सकता। उसे पहले सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के ऑर्डर 23 नियम 3 के प्रावधान के अनुसार ट्रायल कोर्ट में इस मुद्दे को उठाना होगा।
"यदि कोई व्यक्ति, जो पहले से मुकदमे का पक्षकार है, यह इनकार करता है कि कोई वैध समझौता हुआ था, तो CPC उस व्यक्ति को ट्रायल कोर्ट के समक्ष जाना अनिवार्य करता है और ऑर्डर XXIII नियम 3 के प्रावधान के तहत यह तय कराना होता है कि समझौता वैध है या नहीं।" — सुप्रीम कोर्ट
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने यह टिप्पणी उस अपील की सुनवाई के दौरान की, जिसमें अपीलकर्ता ने यह दावा करते हुए कि उसे समझौते की जानकारी नहीं थी, सीधे हाईकोर्ट में ऑर्डर 43 नियम 1A के तहत अपील दाखिल की थी।
कोर्ट ने बताया कि ऑर्डर 43 नियम 1A केवल यह अनुमति देता है कि अपील के दौरान गैर-अपील योग्य आदेश को चुनौती दी जा सकती है यदि वह आदेश अंतिम निर्णय में योगदान देता है। लेकिन, यह स्वतंत्र रूप से समझौता डिक्री के खिलाफ अपील का अधिकार नहीं देता।
गुजरात हाईकोर्ट के एक एकल न्यायाधीश ने इस विषय में विभिन्न निर्णयों के बीच मतभेद देखते हुए तीन प्रश्नों को एक बड़ी पीठ के पास भेजा था। बड़ी पीठ ने निर्णय दिया कि यदि समझौते को चुनौती दी जाती है, तो पक्षकार को पहले ट्रायल कोर्ट के समक्ष ऑर्डर 23 नियम 3 के प्रावधान के अनुसार कार्यवाही करनी होगी। ऑर्डर 43 नियम 1A स्वयं कोई स्वतंत्र अपील का अधिकार नहीं देता।
बड़ी पीठ की राय के अनुसार, एकल न्यायाधीश ने अपीलकर्ता की अपील खारिज कर दी। इसके बाद अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
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न्यायमूर्ति वराले द्वारा लिखित निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के निर्णय की पुष्टि की। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि एक बार समझौता डिक्री पारित हो जाने के बाद, धारा 96(3) CPC के तहत इसके खिलाफ अपील नहीं की जा सकती।
"जो पक्ष समझौते को स्वीकार करता है, वह उससे बंधा होता है और वह अपील नहीं कर सकता (धारा 96(3))। जो पक्ष समझौते को नकारता है, उसे पहले ट्रायल कोर्ट में आपत्ति उठानी होगी (ऑर्डर XXIII नियम 3 का प्रावधान)।" — सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट ने आगे स्पष्ट किया कि यदि ट्रायल कोर्ट में आपत्ति निरस्त हो जाती है, तभी धारा 96(1) के तहत प्रथम अपील की जा सकती है। और उस अपील में, ऑर्डर 43 नियम 1A(2) के माध्यम से समझौते के रेकॉर्डिंग को चुनौती दी जा सकती है।
चूंकि इस मामले में अपीलकर्ता ने पहले ट्रायल कोर्ट में आपत्ति नहीं उठाई और सीधे ऑर्डर 43 नियम 1A(2) के तहत अपीलीय न्यायालय का रुख किया, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हाईकोर्ट द्वारा अपील खारिज करना सही था।
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कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण अंतर भी बताया:
"कोई ऐसा व्यक्ति जो मुकदमे का पक्षकार नहीं था लेकिन जिसकी अधिकारों पर सहमति डिक्री से प्रभाव पड़ा है, वह प्रथम अपील के माध्यम से अपीलीय न्यायालय जा सकता है, लेकिन केवल अनुमति प्राप्त करने के बाद। ऑर्डर 43 नियम 1A स्वतंत्र अपील का अधिकार नहीं देता।" — सुप्रीम कोर्ट
इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने अपील को खारिज कर दिया और यह स्पष्ट कर दिया कि समझौता डिक्री को चुनौती देने के लिए उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है।
मामले का शीर्षक:- सकीना सुलतानअली सुनेसरा (मोमिन) बनाम शिया इमामी इस्माइली मोमिन जमात समाज एवं अन्य
पेशी विवरण:
प्रतिवादी की ओर से: श्री राकेश उत्तमचंद्र उपाध्याय (एओआर), सुश्री आरती उपाध्याय मिश्रा, श्री हर्ष सोम, श्री पंकज बी. वेलानी।
अपीलकर्ता की ओर से: श्री हुज़ेफा अहमदी (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री अपूर्व वकील, सुश्री अनुश्री प्रशीत कपाड़िया (एओआर), सुश्री रश्मि सिंह।