18 जुलाई 2025 को दिए गए एक महत्वपूर्ण निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जब कोई संयुक्त और अविभाज्य डिक्री कई पक्षकारों को लेकर दी जाती है और उनमें से किसी मृत व्यक्ति के कानूनी उत्तराधिकारी (LRs) को समय पर प्रतिस्थापित नहीं किया जाता, तो पूरी अपील निरस्त (abatement) हो जाती है। कोर्ट ने कहा कि ऐसी स्थिति में विरोधाभासी या अमल में नहीं आने योग्य निर्णय की संभावना बन जाती है, जो कि विधिक रूप से अस्वीकार्य है।
“संयुक्त और अविभाज्य डिक्री के मामले में... यदि किसी या अधिक अपीलकर्ताओं या प्रतिवादियों के विधिक प्रतिनिधियों को समय पर प्रतिस्थापित नहीं किया गया, तो पूरी अपील विफल हो जाएगी।”
— सुप्रीम कोर्ट (न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा)
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मामले की पृष्ठभूमि
यह निर्णय सुरेश चंद्र (मृतक) उनके विधिक उत्तराधिकारियों द्वारा बनाम परसराम व अन्य मामले में आया। यह मामला 1983 से चला आ रहा था, जब वादी परसराम ने एक संपत्ति पर स्वामित्व और कब्जे की घोषणा हेतु मुकदमा दायर किया था। प्रतिवादी सुरेश चंद्र और राम बाबू ने किरायेदारी के आरोप को नकारते हुए वंशानुक्रम से स्वामित्व का दावा किया।
ट्रायल कोर्ट ने प्रारंभ में वादी का मुकदमा खारिज कर दिया, लेकिन प्रथम अपीलीय न्यायालय ने निर्णय पलटते हुए वादी के पक्ष में डिक्री पारित की। जब प्रतिवादियों ने दूसरी अपील की, उसी दौरान राम बाबू का निधन 2015 में हो गया, लेकिन उनके विधिक उत्तराधिकारियों को रिकॉर्ड में नहीं लाया गया। इसके चलते मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 2022 में पूरी अपील को निरस्त घोषित कर दिया।
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सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिंहा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश को सही ठहराया। कोर्ट ने कहा:
- चूंकि यह डिक्री संयुक्त और अविभाज्य थी, इसलिए दोनों प्रतिवादियों के अधिकार आपस में जुड़े हुए थे।
- यदि केवल सुरेश चंद्र के LRs के माध्यम से अपील को आगे बढ़ाया जाता, तो इससे विरोधाभासी निर्णय आने का खतरा होता।
“यदि मृत पक्षकार के उत्तराधिकारियों को प्रतिस्थापित नहीं किया गया और डिक्री उनके खिलाफ अंतिम रूप से मान ली गई, तो अपील को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।”
— सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने इस संदर्भ में कई प्रमुख मामलों का हवाला दिया, जिनमें शामिल हैं:
- सरदार अमरजीत सिंह कालरा बनाम प्रमोद गुप्ता (2003) 3 SCC 272
- स्टेट ऑफ पंजाब बनाम नथू राम, AIR 1962 SC 89
- राम सरूप बनाम मुंशी, AIR 1963 SC 553
- बुध राम बनाम बंसी, (2010) 11 SCC 476
इन मामलों में यह तय हुआ कि यदि कोई डिक्री संयुक्त और अविभाज्य है और किसी पक्षकार के मृत्यु के बाद LRs को प्रतिस्थापित नहीं किया गया, तो पूरी अपील स्वतः निरस्त हो जाती है।
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सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए प्रमुख निष्कर्ष
- अपील पूर्ण रूप से निरस्त मानी जाएगी यदि पक्षकारों के अधिकार एक-दूसरे पर निर्भर हों और एक पक्षकार के निधन के बाद प्रतिस्थापन न किया गया हो।
- यदि अपील को जारी रखने से विरोधाभासी निर्णय आने की संभावना है, तो अदालत आगे नहीं बढ़ सकती।
- यदि दो डिक्री एक-दूसरे के संपादन योग्य नहीं हों तो वे विरोधाभासी मानी जाती हैं।
- यदि पक्षकारों के स्वतंत्र और अलग अधिकार हों, तो डिक्री विभाज्य हो सकती है; अन्यथा नहीं।
- डिक्री की प्रकृति यह तय करती है कि वह संयुक्त और अविभाज्य है या नहीं — न कि केवल पक्षकारों का आपसी संबंध।
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“CPC की Order XLI Rule 4 मृत पक्षकार की अपील को बचा नहीं सकती, यदि विधिक प्रतिनिधि समय पर प्रतिस्थापित नहीं किए गए। ऐसी स्थिति में पूरी अपील निरस्त हो जाएगी।”
— सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने अपील को पूरी तरह से खारिज करते हुए कहा:
- राम बाबू के विधिक प्रतिनिधियों को रिकॉर्ड में नहीं लाने के कारण डिक्री उनके खिलाफ अंतिम रूप से मान ली गई।
- 7 वर्षों की देरी को वैध कारणों के अभाव में खारिज किया गया, जिससे पूरी अपील अस्वीकार्य हो गई।
वाद शीर्षक: सुरेश चंद्र (मृतक) वरिष्ठ नागरिक एवं अन्य बनाम परसराम एवं अन्य