भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण याचिका पर गौर किया है, जिसमें पीओसीएसओ एक्ट, 2012 के तहत बाल यौन शोषण के शिकार बच्चों के लिए उचित मुआवजे की मांग की गई है। न्यायालय ने केंद्र सरकार, कानून और न्याय मंत्रालय, और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को इस याचिका पर जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया है। यह याचिका इन असहाय पीड़ितों की मानसिक, भावनात्मक, शैक्षिक और वित्तीय जरूरतों को पूरा करने वाली एक स्पष्ट मुआवजा योजना की तत्काल आवश्यकता पर केंद्रित है।
यह मामला न्यायमूर्ति बीवी नागरथना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ के समक्ष आया। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रज्ञान प्रदीप शर्मा, जो याचिकाकर्ताओं के प्रतिनिधि हैं, ने एक पहले निस्तारित मामले का हवाला दिया जिसमें बाल यौन अपराधों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताई गई थी। उस मामले के बाद, सर्वोच्च न्यायालय की रजिस्ट्री ने “पीओसीएसओ पीड़ितों के मुआवजा, पुनर्वास, कल्याण और शिक्षा योजना, 2019” नामक एक योजना का मसौदा तैयार किया था। यह योजना बाल यौन शोषण से प्रभावित बच्चों को समग्र सहायता देने के लिए बनाई गई थी।
लेकिन, शर्मा के अनुसार, इस मसौदा योजना के बाद भी केंद्र सरकार ने इसे औपचारिक रूप देने या पूरे देश में लागू करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। कई राज्य अभी तक बाल पीड़ितों को राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नलसा) योजना, 2018 के अनुरूप मुआवजा नहीं दे पाए हैं, जिसे एक अस्थायी उपाय के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था।
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शर्मा ने एक महत्वपूर्ण समस्या को उजागर किया:
"निपुण सक्सेना मामले में यह देखा गया कि नलसा योजना बाल पीड़ितों की आवश्यकताओं को पूरी तरह से पूरा नहीं करती। इसे केवल अस्थायी तौर पर लागू किया गया था, जब तक कि कोई औपचारिक मुआवजा योजना लागू नहीं हो जाती।"
न्यायमूर्ति नागरथना ने पूछा कि क्या भारतीय दंड संहिता या दंड प्रक्रिया संहिता के तहत कोई मुआवजा योजना बाल पीड़ितों पर लागू होती है। शर्मा ने पुष्टि की कि बाल यौन शोषण पीड़ितों के लिए ऐसी कोई योजना मौजूद नहीं है, जिससे वे बिना किसी औपचारिक मुआवजा व्यवस्था के रह गए हैं।
न्यायालय ने इस मामले में याचिकाकर्ता 12 बाल पीड़ितों की सूची मांगी और पूछा कि क्या उन्हें अब तक कोई मुआवजा मिला है। शर्मा ने दुख के साथ जवाब दिया:
"एक भी पैसा नहीं दिया गया। ये बच्चे केवल 4 और 8 साल के हैं, जो भयानक शोषण के शिकार हुए हैं। राज्य सरकारों को कई बार ज्ञापन दिए गए, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। यह स्थिति सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप की जरूरत है।"
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न्यायालय ने पहले तीन उत्तरदाताओं—केंद्र सरकार, कानून और न्याय मंत्रालय, तथा राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग—को नोटिस जारी किया, लेकिन याचिकाकर्ताओं द्वारा शामिल किए गए राज्य और उत्तर प्रदेश को नोटिस जारी नहीं किया।
इस महत्वपूर्ण मामले की अगली सुनवाई 18 अगस्त को निर्धारित की गई है।
केस विवरण: जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन एलायंस एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य | WP (C) संख्या 516/2025