हाल ही में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि महाराष्ट्र रेंट कंट्रोल एक्ट, 1999 के तहत मकान मालिक और किरायेदार के बीच का कानूनी संबंध तभी समाप्त होता है जब अदालत बेदखली की डिक्री पारित करती है, न कि मुकदमा दर्ज करने की तारीख पर।
न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा:
"चूंकि बेदखली की डिक्री महाराष्ट्र रेंट कंट्रोल एक्ट, 1999 के तहत पारित की गई थी, इसलिए कानून की स्थापित स्थिति यह है कि केवल डिक्री पारित होने पर ही मकान मालिक और किरायेदार के बीच का संबंध समाप्त होता है।"
यह निर्णय 1 अप्रैल 2025 को न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान की पीठ ने अमृतपाल जगमोहन सेठी बनाम हरीभाऊ पुंडलिक इंगोले मामले में सुनाया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद तब शुरू हुआ जब प्रतिवादी (मकान मालिक) ने अपीलकर्ता (किरायेदार) के खिलाफ महाराष्ट्र रेंट कंट्रोल एक्ट, 1999 के तहत बेदखली का मुकदमा दायर किया। ट्रायल कोर्ट ने मकान मालिक के पक्ष में डिक्री पारित की, जो अंतिम हो गई, और किरायेदार को संपत्ति से बेदखल कर दिया गया।
हालाँकि, विवाद का विषय मेसने प्रॉफिट (Mesne Profits) की अवधि को लेकर था।
दीवानी प्रक्रिया संहिता (CPC), 1908 की धारा 2(12) के अनुसार, मेसने प्रॉफिट का अर्थ है:
"वे लाभ जो किसी व्यक्ति ने संपत्ति पर अवैध कब्जे के दौरान वास्तव में प्राप्त किए या थोड़ी सी सावधानी से प्राप्त कर सकता था।"
सरल शब्दों में, यह उस क्षतिपूर्ति को दर्शाता है जो संपत्ति के वैध स्वामी को तब दी जाती है जब कोई और व्यक्ति उनकी संपत्ति पर अनधिकृत रूप से कब्जा करता है।
इस मामले में, ट्रायल कोर्ट ने CPC की आदेश XX नियम 12(1)(c) के तहत, मुकदमा दर्ज होने की तारीख से लेकर संपत्ति का शांतिपूर्वक खाली कब्जा देने तक मेसने प्रॉफिट की जांच करने का निर्देश दिया था।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट इस निर्देश से सहमत नहीं थी।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ओका ने स्पष्ट किया:
"यह मुकदमा रेंट एक्ट के तहत है; किरायेदारी का अंत उस दिन होता है जब डिक्री पारित की जाती है। इसलिए, मेसने प्रॉफिट की गणना डिक्री की तारीख से की जानी चाहिए। आपको मेसने प्रॉफिट उस दिन से मिलेगा जब उसका कब्जा अवैध बनता है। उसका कब्जा तब अवैध होता है जब किरायेदारी समाप्त होती है।"
कानून की इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश में दिए गए मूल निर्देश को संशोधित किया।
ट्रायल कोर्ट के आदेश के परिचालन भाग की धारा (4) में कहा गया था:
"सीपीसी के आदेश XX नियम 12(1)(c) के तहत, भविष्य के मेसने प्रॉफिट की जांच मुकदमा दर्ज करने की तारीख से लेकर प्रतिवादी द्वारा वादी को संपत्ति का शांतिपूर्वक खाली कब्जा देने तक की जाए।"
सुप्रीम कोर्ट ने इसे इस प्रकार संशोधित किया:
"सीपीसी, 1908 के आदेश XX नियम 12(1)(c) के तहत, भविष्य के मेसने प्रॉफिट की जांच 29 मार्च, 2014 से लेकर प्रतिवादी द्वारा वादी को संपत्ति का खाली कब्जा देने तक की जाए।"
यह संशोधन महत्वपूर्ण है क्योंकि यह स्पष्ट करता है कि मेसने प्रॉफिट की गणना केवल बेदखली डिक्री की तारीख (29 मार्च, 2014) से ही की जा सकती है — मुकदमा दायर करने की तारीख से नहीं।
केस नं. - 2025 की सिविल अपील संख्या 4595-4596
केस का शीर्षक - अमृतपाल जगमोहन सेठी बनाम हरिभाऊ पुंडलिक इंगोले