सुप्रीम कोर्ट ने देवेंद्र कुमार बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली) मामले में एक अहम फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट किया है कि जब सार्वजनिक सेवकों के कार्य में बाधा पहुँचाने के आरोप लगते हैं तो अदालतों को किस तरह कार्यवाही करनी चाहिए।
यह मामला 2013 की एक घटना से जुड़ा है, जिसमें एक प्रक्रियासर्वर (Process Server) ने नंद नगरी थाने के तत्कालीन SHO पर समन तामील करने के दौरान गलत तरीके से हिरासत में रखने और अपमानित करने का आरोप लगाया था।
शिकायत के अनुसार, प्रक्रियासर्वर के साथ गाली-गलौज की गई, उसे हाथ उठाकर खड़े रहने के लिए मजबूर किया गया और घंटों तक जमीन पर बैठाए रखा गया। इसके बाद ही वारंट स्वीकार किए गए। मुख्य महानगरीय मजिस्ट्रेट ने इस पर पुलिस अधिकारी के खिलाफ आईपीसी की धारा 186 और 341 के तहत एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया। सेशंस कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट में दायर अपीलें खारिज होने के बाद अधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि केवल बाधा डालना, जब तक उसमें आपराधिक बल (criminal force) का इस्तेमाल न हो, धारा 186 आईपीसी के तहत अपराध नहीं बनता। यह भी कहा गया कि बिना धारा 195 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत विधिवत शिकायत दर्ज किए एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती। बचाव पक्ष का कहना था कि मजिस्ट्रेट ने गलत तरीके से धारा 156(3) सीआरपीसी के तहत पुलिस जांच का आदेश दिया, जबकि उन्हें सीधे संज्ञान लेना चाहिए था।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारडीवाला ने फैसला सुनाते हुए कहा:
"अदालत की गरिमा दांव पर थी। किसी सिविल जज द्वारा दर्ज की गई शिकायत में बहुत पवित्रता जुड़ी होती है। ऐसे हालात में मजिस्ट्रेट को सीधे संज्ञान लेकर कार्यवाही करनी चाहिए थी, पुलिस जांच का आदेश देना गंभीर भूल थी।"
अदालत ने स्पष्ट किया कि धारा 186 आईपीसी के तहत बाधा केवल शारीरिक प्रतिरोध तक सीमित नहीं है। धमकी, अपमान या कोई भी ऐसा कृत्य जो सार्वजनिक सेवक को अपने कर्तव्य निभाने से रोके, वह भी अपराध है। साथ ही, कोर्ट ने यह भी दोहराया कि धारा 195 सीआरपीसी के तहत लिखित शिकायत अनिवार्य है और इसके बिना की गई कार्यवाही शून्य मानी जाएगी।
पीठ: न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन
केस का शीर्षक: देवेंद्र कुमार बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली) एवं अन्य
केस संख्या: विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) संख्या 12373/2025